-महिलाओं ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल

-दो दिवसीय महिला आयामी फिल्म फेस्टिवल संपन्न

DEHRADUN : महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को कम करने के लिए समाज की पितृसत्तात्मक सोच को बदलने के साथ ही महिलाओं को भी संगठित होकर काम करने की जरूरत है। तभी जाकर महिला उत्पीड़न पर अंकुश लगाया जा सकता है। सैटरडे को महिला आयामी फिल्म फेस्टिवल के दौरान पैनल डिस्कशन में वक्ताओं ने ये बाते कहीं। महिला समाख्या व उत्तराखंड वायलेंस अगेंस्ट वुमेन नेटवर्क द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम संपन्न हो गया। कार्यक्रम में विभिन्न सामाजिक संगठन और पुलिस विभाग के अधिकारी माैजूद रहे।

पुलिस का रवैया बढ़ाता है तकलीफ

सैटरडे को पैनल डिस्कशन में एएसपी ममता बोहरा से पुलिस के रवैये को लेकर कई प्रश्न किए गए। महिलाओं ने कहा कि अक्सर पुलिस का रवैया पीडि़त महिला की तकलीफ और बढ़ा देता है। पुलिस द्वारा समय पर एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है। इस पर एसपी ममता बोहरा ने कहा कि ऐसा नहीं है कि पुलिस पीडि़तों की मदद नहीं करना चाहती है, लेकिन नियम-कानूनों में बंधे होने के कारण कई बार देरी हो जाती है। पैनल डिस्कशन में पौड़ी की कार्यकर्ता गंगा देवी, सिद्धि देवी, सुशीला और जाह्नवी तिवारी भी शिमल रही।

गुलाबी गैंग व मृत्युदंड फिल्म

ऑडिटोरियम में सैटरडे को निष्ठा जैन द्वारा संपत पाल के गुलाबी गैंग पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री फिल्म दिखाई गई। इसके बाद मृत्युदंड फिल्म दिखाई गई। इसके जरिए मैसेज दिया गया कि यदि महिलाएं संगठित होकर कार्य करें, तो उसके सकारात्मक प्रभाव जरूर दिखाई देंगे। महिला समाख्या की स्टेट प्रोजेक्ट डायरेक्टर गीता गैरोला ने कहा कि अक्सर लोग जल्द ही फिल्म्स के पात्रों के साथ खुद को जोड़ लेते हैं। इसलिए फिल्म्स के माध्यम से महिलाओं को अवेयर करने और उनके साथ होने वाले अपराधों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया गया।

स्पेशल गेस्ट रहे मौजूद

बवंडर फिल्म की स्क्रिन प्ले राइटर सुधा अरोड़ा, टीवी एक्ट्रेस असीमा भट्ट, महिला केंद्रित डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए प्रसिद्ध माधवी व विकास नारायण, पूर्व प्रोटेक्शन ऑफिसर रमिंद्री मंद्रवाल, कवि अतुल शर्मा, साहित्यकार वीणा पाणी जोशी, कृष्णा खुराना सहित कई अन्य सामाजिक संगठनों से जुड़े सदस्य मौजूद रहे।