आई टॉक-

देहरादून: सरकार को समर्थन दे रहे प्रोगेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी पीडीएफ और कांग्रेस के बीच तल्खियां एक बार फिर खुलकर सामने आ गई हैं। पहले सिर्फ कांग्रेस संगठन पीडीएफ के खिलाफ बोलता था लेकिन अब पीडीएफ ने भी खुलकर मोर्चा खोल लिया है। खासकर, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय के खिलाफ। पीडीएफ और कांग्रेस की लड़ाई आर-पार वाले मोड में आ चुकी है। पीडीएफ के सबसे कद्दावर नेता और कैबिनेट मंत्री दिनेश धनै इस लड़ाई में सबसे आगे होकर मोर्चा खोल रखा है। 2012 के चुनाव में टिहरी सीट पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को पटखनी दे चुके धनै खुलकर किशोर की मुखालफत कर रहे हैं। कांग्रेस और पीडीएफ के दरकते रिश्तों पर दिनेश धनै ने आई नेक्स्ट ने की एक्सक्लूसिव बातचीत।

-किशोर उपाध्याय ने साफ कहा है कि वे पीडीएफ के कारण कांग्रेस को बर्बाद नहीं होने देंगे। क्या कहेंगे आप?

-कांग्रेस के एक आध ऐसे शुभचिंतक और हो जाएं तो फिर कहना ही क्या। यूपी की तर्ज पर पार्टी को उत्तराखंड में भी नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। किशोर उपाध्याय तो उस कालीदास की तरह हो गए हैं, जिस पर वह बैठे हैं उसे ही काटने का प्रयास कर रहे हैं।

-जब से किशोर उपाध्याय प्रदेश अध्यक्ष बने हैं तब से पीडीएफ के साथ कांग्रेस के रिश्तों में खटास आई। आप क्या मानते हैं?

-किशोर उपाध्याय की क्या तकलीफ है, वो ही बता सकते हैं, लेकिन मेरी तकलीफ तो विकास की है। मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि टिहरी क्षेत्र के विकास के लिए मैं किसी को बाधक नहीं बनने दूंगा। चाहे इसके लिए जो कीमत चुकानी पड़े।

-आपने एक बार कहा था कि टिहरी सीट से आप आस-पास की दूसरी सीट पर शिफ्ट हो सकते हैं। क्या ये विकल्प अब भी खुला है?

-नहीं, अब ऐसा किसी सूरत में नहीं हो सकता। मैं चाहूं भी तो ये संभव नहीं है। ऐसा मुझे यहां की जनता नहीं करने देगी। अब तो चाहे जो स्थिति हो, मैं टिहरी सीट से ही चुनाव लडूंगा। जनता और कार्यकर्ताओं के सम्मान में मेरे लिए ये करना अनिवार्य हो गया है। किसी के लिए टिहरी सीट छोड़ने का अब सवाल ही नहीं रह गया है।

-वैसे पीडीएफ और कांग्रेस के रिश्ते का अंजाम क्या होगा?

-यह समय बताएगा कि क्या स्थिति बनती है। सीएम हरीश रावत कह चुके हैं कि कांग्रेस हाईकमान और उनमें सारे अधिकार निहित हैं। कांग्रेस में कोई सोनिया जी और हरीश रावत से बड़ा नहीं हो गया है। दस जनपथ में मैंने सोनिया जी के सामने सरकार को समर्थन देने की बात कही थी। हम तो मस्त हाथी हैं, अपनी चाल में चलते जा रहे हैं, कोई क्या कहता है, हमें इसकी परवाह नहीं। मेरा मानना है कि कोई किसी को नेता नहीं बनाता, जनता ही नेता बनाती है। नेताओं ने अपने बड़बोलेपन के कारण अपनी इमेज गिरा ली है।

-अगर पीडीएफ के नेता कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं तो क्या सबकी जीत पक्की मानी जाए?

-सौ फीसदी जीतेंगे पीडीएफ के सभी लोग। न सिर्फ कांग्रेस के टिकट की बात है, बल्कि किसी भी पार्टी से टिकट मिल जाए तो भी पीडीएफ का हर नेता चुनाव जीतने की कुव्वत रखता है।

-आपने विजय बहुगुणा सरकार में भी काम किया और अब हरीश रावत सरकार में भी कर रहे हैं। क्या अंतर पाते हैं, दोनों नेताओं के काम करने में।

-देखिए, मैं एक लाइन में कहना चाहूंगा। एक अनाड़ी था, दूसरा खिलाड़ी है।

-उत्तराखंड में नौकरशाही के रवैये पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। चिकित्सा शिक्षा मंत्री बनते ही आपको भी इस कड़वी हकीकत से दो चार होना पड़ा।

-ये सच्चाई है कि नौकरशाही बेलगाम होकर काम करती है। चाहे उत्तराखंड में किसी की भी सरकार रही हो, नौकरशाही अपने हिसाब से राजकाज चलाना चाहती है। हमारा छोटा राज्य है। यदि इस पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया, तो मैं कहना नहीं चाहता कि इस राज्य का भविष्य में क्या होगा। ये गंभीर विषय है, इस पर ठोस काम होना ही चाहिए।