- दवा छूटने व प्रोएक्टिव अप्रोच नहीं होने से बढ़ रही है परेशानी

- बिहार में डॉट्स प्लस नहीं हो पाया चालू, घातक बना बीमारी

PATNA: बिहार में टीबी के पेशेंट्स की संख्या पिछले दो साल में तेजी से बढ़ी है। इस बात की पुष्टि टीबीडीसी की रिपोर्ट से हुई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि यहां एमडीआर यानी मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट के केसेज बढ़ते जा रहे हैं। वर्ष ख्0क्फ्-ख्0क्ब् में एमडीआर के पेशेंट्स की संख्या क्क्0ब् थी, लेकिन इस साल के पहले दो माह में ही इसकी संख्या क्क्7 तक पहुंच गई है। जानकारी हो कि एक एमडीआर के केस में एक बार दवा के डिसकंटीन्यू हो जाने पर वह और खतरनाक बन जाता है। इसे एक्सट्रीम ड्रग्स रेसिस्टेंट कहा जाता है, जो एंड स्टेज होता है।

प्राइमरी स्टेज से ही प्रॉब्लम

बिहार में टीबी पेशेंट्स की संख्या में वृद्धि होने का कारण यहां जांच के प्रति लोगों का अवेयरनेस नहीं होना है। लोग खांसते-छींकते रहते हैं, लेकिन वे जांच नहीं कराते। इसमें हर तबके के लोग शामिल हैं। ध्यान देने की बात यह है कि कोई नहीं जानता कि टीबी से प्रभावित कौन हैं और कौन नहीं। जानकारी हो कि साल ख्0क्ब् में ही सामान्य टीबी के करीब म्8 हजार पेशेंट की जांच की गई थी।

अनजाने में फैल रहा इनफेक्शन

पीएमसीएच के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के हेड डॉ अशोक शंकर सिंह ने बताया कि जांच इसमें बेहद महत्वपूर्ण है। सरकारी अस्पतालों में यह जांच मुफ्त में होता है, लेकिन अवेयरनेस के अभाव में जब लोग जांच नहीं कराते हैं, तो यह अन्य लोगों तक संक्रमित होने लगता है।

प्रोएक्टिव अप्रोच के बिना उपाय नहीं

अगर बिहार को टीबी मुक्त बनाना है तो यहंा भी प्रोएक्टिव अप्रोच की जरूरत होगी। डॉ अशोक ने बताया कि इसमें ऐसे लोगों की पहचान को एक अभियान के तौर पर लेना होगा। जो इससे संक्रमित हैं, उन्हें नियमित दवा देना होगा। यदि दो हफ्ते की खांसी हो तो बलगम की जांच जरूर करा लेना चाहिए।

बिहार में अभी तक शुरुआत भी नहीं

आज से करीब पांच साल पहले पीएमसीएच व अन्य हॉस्पीटलों के डॉक्टर्स की टीम ने गुजरात विजिट किया था। तब वहां डॉट्स प्लस नाम से एक राष्ट्रीय प्रोग्राम चलाया जा रहा था, लेकिन आज भी बिहार को ऐसे प्रोग्राम संचालित करने के लिए अभी तक माकूल मौका नहीं मिला है।

सौ में क्7 परसेंट एमडीआर

जानकारी हो कि टीबी के दो कैटेगरी में इलाज होने के बाद भी क्भ्-क्7 परसेंट लोग इसके पेशेंट रह ही जाते हैं। यह बात राष्ट्रीय स्तर पर जांच में सामने आयी है। पहले कैटेगरी में सामान्य टीबी का इलाज छह माह किया जाता है। इसके बाद दूसरी कैटेगरी में आठ माह तक दवा चलाया जाता है। इसके बाद भी क्7 परसेंट तक बचे पेशेंट एमडीआर में आने लगते हैं। ऐसे पेशेंट का ट्रीटमेंट डॉट्स प्लस में किया जाता है। इसमें प्रोएक्टिव तरीके से ट्रीटमेंट चलता है।

एक पेशेंट से क्ब् नए पेशेंट

जानकारी हो कि एक टीबी पेशेंट से क्ब् न्यू पेशेंट साल भर में हो जाते हैं। इसलिए इसके बचाव पक्ष पर सबसे अधिक ध्यान देने की जरूरत है। इसके साथ ही जो पेशेंट्स इसकी दवा या ट्रीटमेंट छोड़ देते हैं वे आगे न्यू केस को स्प्रेड करते हैं।