शिष्य गुरु से ज्यादा योग्य

नगर सेठ को जवाब देते हुए लाओत्स ने कहा, 'पहला शिष्य मुझसे ज्यादा मेहनती है, दूसरा मुझसे ज्यादा मीठा बोलता है और तीसरा मुझसे ज्यादा बहादुर है.' इस पर नगर सेठ ने कहा, 'ये सब आपसे ज्यादा गुणवान और योग्य हैं तो इन्हें आपका गुरु होना चाहिए और आपको इनका शिष्य.' लाओत्स नगर सेठ की बातें शांति से सुनते रहे फिर काफी देर तक हंसते रहे. नगर सेठ आश्चर्य से बोला, 'क्या मैंने कुछ गलत बोल दिया. वही कहा जो आपने मुझे बताया. आपके शिष्य ज्यादा योग्य हैं. इन्हें गुरु होना ही चाहिए. मैं यह बात लोगों से चर्चा करुंगा.' लाओत्स ने कहा, 'आप शौक से लोगों से चर्चा करें. किसी की योग्यता और प्रतिभा की चर्चा होनी ही चाहिए.'

गुरु में गुणों का संतुलन

इस पर नगर सेठ ने कहा, 'लेकिन आपका क्या?' इस पर लाओत्स बोले, 'देखिए किसी क्षेत्र में पारंगत होने का यह मतलब नहीं होता कि आपमें किसी दूसरे को सिखाने की क्षमता विकसित हो गई. ये शिष्य किसी ना किसी चीज में मुझसे ज्यादा योग्य हैं. और उन्होंने मुझे इसलिए गुरु माना है क्योंकि वो जानते हैं कि किसी गुण में सर्वश्रेष्ठ होने का मतलब यह नहीं होता कि वह जानकार या विद्वान भी हो.' अब नगर सेठ हैरान. उसने पूछा तो असली विद्वान कौन है? लाओत्स ने कहा, 'असली विद्वान वह होता है जो सभी गुणों में संतुलन स्थापित करने में सफलता हासिल कर लिया हो. एक संतुलित व्यक्ति ही अच्छा गुरु हो सकता है.'