डर के आगे जीत

स्वामी विवेकानंद अकसर अपने संबोधन में युवाओं से कहते थे कि डर के आगे ही जीत होती है। मुसीबत से डर कर भागने की बजाए उसका डट कर सामना करना चाहिए। इसके लिए वे अपना एक अनुभव भी साझा करते थे। एक बार बनारस में उन्हें बंदरों ने घेर लिया था। वे डर कर भागने लगे तो बंदर पीछे पड़ गए। तभी एक संन्यासी ने उन्हें टोका और कहा कि रुको और उनका सामना करो। बस फिर क्या था स्वामी विवेकानंद रुक गए और पलट कर बंदरों की ओर दौड़ पड़े। अब डरने की बारी बंदरों की थी और वे पलट कर तितर-बितर हो गए।

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मां से बढ़कर इस संसार में कुछ नहीं

अभी हाल ही में गुजरे जमाने की एक मशहूर एक्ट्रेस को उसका बेटा अस्पताल के बाहर छोड़ कर चला गया। एक अन्य मामले में सीसीटीवी से खुलासा हुआ एक इंजीनियर बेटे ने अपनी बीमार मां को सीढि़यों से नीचे ढकेल कर जान ले ली थी। दोनों मामलों में उन युवा बेटों की खूब आलोचना हुई और दूसरे को तो पुलिस ने अरेस्ट भी कर लिया। जबकि स्वामी जी अकसर अपने प्रवचन में यह कहते थे कि मां से बढ़कर इस संसार में और कुछ नहीं हो सकता। एक बार स्वामी जी से एक व्यक्ति ने पूछा कि दुनिया में मां का इतना गुणगान क्यों किया जाता है। स्वामी जी ने उसे कोई जवाब देने की बजाए एक तीन किलो का पत्थर उसके पेट से बांध दिया और कहा कि इसे बंधे रहने दो कल आना तो तुम्हारा जवाब दूंगा। वह युवक दोपहर तक तो पत्थर बांध अपना काम करता रहा लेकिन शाम होते ही उसके बर्दाश्त से बाहर हो गया तो वह स्वामी जी के पास आया और बोला कि स्वामी जी यह पत्थर खोल दीजिए अब मुझसे नहीं ढोया जा रहा। स्वामी जी ने कहा कि तुम कुछ घंटे यह तीन किलो का पत्थर नहीं ढो सके जबकि तुम्हारी मां ही नहीं दुनिया की हर मां अपने बच्चे को पेट में नौ महीने तक खुशी-खुशी ढोती है। इसलिए मां से बढ़कर दुनिया में कुछ और नहीं हो सकता। युवक अब तक मां की महिमा समझ चुका था।

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नजर ही नहीं ध्यान भी लक्ष्य पर

आजकल युवा कई तरह की डिग्रिया बटोरने में लगे रहते हैं। सफलता उन्हें मिलती नहीं और मिलती भी है तो बहुत देर से। इसके लिए स्वामी विवेकानंद युवाओं से कहा करते थे लक्ष्य पर नजर ही नहीं ध्यान भी होना चाहिए। इससे जुड़ी अमेरिका में उनके साथ एक घटना घटी थी। एक बार वे अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे कि उन्होंने देखा कि एक नदी के किनारे कुछ बच्चे एयरगन से अंडों के छिलकों पर निशाना लगा रहे थे। बच्चों के हर बार निशाना चूक जाते थे। स्वामी जी ने उनसे बंदूक ली और एक के बाद एक 12 सटीक निशाने लगाए। बच्चों ने आश्चर्य से पूछा आपने यह कैसे किया। इसपर स्वामी जी ने कहा आपकी नजर तो अंडों पर थी लेकिन ध्यान कहीं और था। सफलता के लिए नजर ही नहीं ध्यान भी लक्ष्य पर ही होना चाहिए। फिर क्या था सभी ने निशाना लगाया और सबके निशाने लक्ष्य भेदी साबित हुए।

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आनंद तो देने में है, जितना दे सको दो

आज लोग मुनाफा दर मुनाफा कमाने के लिए कोशिश में जुटे रहते हैं। दुनिया में 99 फीसदी संपत्ति सिर्फ 1 प्रतिशत लोगों के पास संचित है। कई देश ऐसे हैं जहां लोग गरीबी और भुखमरी के शिकार हैं। स्वामी विवेकानंद हमेशा कहा करते थे कि जो सुख देने में वह आनंद किसी और चीज में नहीं। उनके एक जानने वाले ने अपने संस्मरण में लिखा है कि प्रवचन के बाद थक कर चूर स्वामी जी अमेरिका स्थित एक महिला के यहां जहां वे ठहरे थे गए और अपना भोजन बनाने लगे। वे अपना भोजन स्वयं बनाते थे। तभी कुछ भूखे बच्चे उनके आसपास जहां हो गए। स्वामी जी ने भोजन बनाने के बाद सब बच्चों को खिला दिया। तब महिला ने पूछा कि अब आप क्या खाएंगे। तो स्वामी जी ने कहा मां भोजन तो पेट भरने के लिए होता है मेरा न सही उन बच्चों का तो भरा। भोजन ने अपना काम बखूबी कर दिया। और जो आनंद देने में है वह खुद पाने में नहीं है।

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आपकी संस्कृति दर्जी बनाता है और हमारा चरित्र

आज हर कोई चरित्र से ज्यादा अपने लुक पर ध्यान देता है। लेकिन स्वामी विवेकानंद हमेशा चरित्र निर्माण पर जोर देते थे। उनका मानना था कि अच्छे चरित्र से ही देश की संस्कृति का निर्माण होता है। इसके लिए उन्होंने अपना एक अनुभव बताया। एक बार वे विदेश गए थे। वहां उनके भगवा वस्त्रों को देखकर लोग हंसने लगे और कुछ तो उनके पीछे-पीछे चलकर उन्हें ऐसे घूरने और चिढ़ाने लगे जैसे वे किसी दूसरे ग्रह से आ गए हों। तभी एक ने अपने कॉलर को हाथ से उठाते हुए व्यंग्य किया कि आपके कपड़े कहां हैं। ये आपने क्या पहना है। इस पर स्वामी जी ने विचलित हुए बिना कहा कि भाइयों-बहनों आपकी संस्कृति दर्जी बनाता है और हमारी संस्कृति को लोगों का चरित्र बनाता है। इस बात पर सबक चुप हो गए। तभी एक बुजुर्ग ने आगे बढ़कर स्वामी जी का परिचय कराया तो लोगों ने उनका अभिवादन किया और अपने किए के लिए क्षमा भी मांगी।

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