हर देश का एक अलग कल्चर होता है, लेकिन जब बात लड़कियों की आती है तो पेरिस से लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान से लेकर अमेरिका तक उन्हें एक ही नियम में बांधने की कोशिश की जाती है. उनके लिए दायरे तय कर दिए गए हैं.

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अगर वो इन दायरों से बाहर आने की कोशिश करती हैं, तो उन्हें ‘स्लट’ या ‘बेशर्म’ बताया जाता है. उनके साथ होने वाली टीजिंग के लिए उन्हें ही दोषी बताया जाता है, लेकिन अब लड़कियों ने इसी को हथियार बनाते हुए टीजर्स के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है. टोरंटो में इसे ‘स्लट वॉक’ का नाम दिया गया है तो इंडिया में लोग इसे ‘बेशर्मी मोर्चा’ कह रहे हैं.

Stop dressing like  a ‘slut’

तारीख 24 जनवरी 2011, टोरंटो की यॉर्क यूनिवर्सिटी में एक सेफ्टी फोरम प्रोग्राम चल रहा था. यहां एक पुलिस ऑफिसर माइकल सैंग्यूएनिटी ने कहा कि लड़कियों को ऐसी ड्रेसेज नहीं पहननी चाहिए जिनमें वो किसी स्लट की तरह नजर आएं. अगर वो नहीं मानेंगी तो फिर रेप जैसे हादसों का शिकार बनती रहेंगी. उस समय शायद माइकल को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसका यह बयान पूरी दुनिया में एक नई बहस छेड़ देगा. माइकल के इस कमेंट के विरोध में टोरंटो में ंमहिलाओं ने स्लट वॉक निकाली.

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वॉक के जरिए वह मैसेज दे रहीं थीं कि हां वे स्लट हैं. स्लट होने के बावजूद उन्हें पूरे सम्मान के साथ रहने का हक है. दरअसल, यह एक गुस्सा था, जिसके जरिए वह लोगों को इस बात का अहसास दिलाना चाहती थीं कि किसी लडक़ी के आउटफिट पर किसी को कमेंट करने का कोई हक नहीं है. स्लट कहकर समाज में उनके खिलाफ हो रही घटनाओं से पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता.

Every woman need respect

बात चाहे टोरंटो की हो, लंदन की हो या फिर भारत की, लड़कियों के लिए सिचुएशंस हर जगह शायद एक जैसी ही हैं. ‘स्लट’ का मतलब होता है वेश्या, लेकिन जब टोरंटो ने अप्रैल में पहली ‘स्लटवॉक’ होस्ट की तो इस शब्द के मायने ही बदल गए.

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तीन अप्रैल 2011 को टोरंटो में पहली स्लटवॉक ऑर्गनाइज हुई. टोरंटो के बाद स्लटवॉक लंदन, मेलबर्न, मांट्रियाल, शिकागो, वैंकुवर, हैमिल्टन, सैन डियागो और सिडनी में भी ऑर्गनाइज की जा चुकी हैं. टोरंटो में स्लटवॉक का आइडिया सोनिया बर्नेट और हीथर जार्विस का था. उन्होंने इस वॉक को स्लटवॉक का नाम दिया, क्योंकि उनका कहना था कि हर तबके की महिलाओं को सम्मान का पूरा हक है फिर वो चाहे स्लट ही क्यों न हो. सोनिया के मुताबिक अगर कोई लडक़ी स्लट है तो भी उसके खिलाफ वॉयलेंस का लाइसेंस किसी को नहीं मिल जाता. न ही उसके सम्मान को ठेस पहुंचाने का हक किसी को है.

भारत पहुंची मुहिम

भारत में भी हालात टोरंटो से अलग नहीं हैं. 7 जुलाई 2011, दिल्ली में एक इवेंट के दौरान दिल्ली पुलिस कमिश्नर बीके गुप्ता ने लड़कियों को सिक्योरिटी के टिप्स दिए. उन्होंने कहा कि अगर लड़कियां रात में दो बजे बाहर निकलती हैं और उनके साथ कुछ होता है तो इसके लिए दिल्ली जिम्मेदार नहीं होगी. इस बयान के बाद यहां भी कमिश्नर को आड़े हाथों लिया गया. अब दिल्ली में जंतर मंतर पर 31 जुलाई को देश की दूसरी स्लटवॉक ऑर्गनाइज हो रही है. इस स्लटवॉक को इंडिया में बेशर्मी मोर्चा का नाम दिया गया है.

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From Toronto to India

टोरंटो में हुई स्लटवॉक को करीब 3,000 लोगों ने अटैंड किया था. लंदन में करीब 2,000, शिकागों में 1500 से ज्यादा, बोस्टन में 2,000 और बाकी जगहों पर इस कैंपेन में हजारों लोगों ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी. ऐसे में क्या भारत में भी 31 जुलाई को होने वाले ‘बेशर्मी मोर्चा’ में इतने ही लोग शामिल होंगे, कहना थोड़ा मुश्किल है. भोपाल में हुई स्लटवॉक में शामिल लड़कियों की संख्या 100 से कुछ ज्यादा थी. उमंग की साथी और स्लटवॉक की एक और ऑर्गनाइजर मिश्का सिंह के मुताबिक उन्हें पूरी उम्मीद है कि दिल्ली में रविवार की सुबह देश में एक नई शुरुआत होगी. इस इवेंट को लोगों ने काफी अच्छा रिस्पांस अभी तक दिया है.

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