यहां बोतलों में बंद है दस हजार की मौत का राज!

-मेडिकल कॉलेज की मोर्चरी में धूल फांक रहे हैं हजारों बिसरा सैम्पल

-1979 से लेकर अब तक जांच के लिए नहीं भेजा गया है इन्हें

-पूर्व कमिश्नर के आदेश पर भी नहीं हो सकी कार्रवाई

द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र:

गोरखपुर में एक जगह हजारों लोगों की मौत का राज छोटी-छोटी बॉटल्स (शीशी) में कैद है। करीब 36 वर्षो से साल दर साल इसमें सौ-पचास बॉटल्स बढ़ जाती हैं। इन हजारों बॉटल्स में ज्यादातर अब किसी काम की नहीं रहीं। यूं कह लें कि मौत का राज अब बॉटल्स में ही दफन हो गया है। फिर भी इन्हें रखा गया है कि क्या पता कब किसकी मौत के राज की तफ्तीश में इनकी जरुरत पड़ ही जाए।

बॉटल्स में बंद है बिसरा

यदि आप अब तक कुछ नहीं समझे तो हम साफ शब्दों में बताते हैं। हम बात कर रहे हैं बीआरडी मेडिकल कॉलेज के पोस्टमार्टम हाउस में रखे गए बिसरा सैम्पल्स की। मेडिकल टर्म में बिसरा पोस्टमार्टम के दौरान इकठ्ठा किए जाने वाले बायो सैम्पल को कहते हैं। ये सैम्पल उन केसेज में इकठ्ठा किए जाते हैं जिसमें व्यक्ति की मौत किसी जहरीले पदार्थ से हुई हो और बिसरा परीक्षण के बाद ही ये कन्फर्म होता है कि वह जहरीला पदार्थ क्या था? कोर्ट ट्रायल में जब व्यक्ति की मौत का सही-सही पता करने का ऑर्डर होता है तब बिसरा को एडवांस लेबोटरीज में भेजा जाता है जहां से ये पता करना संभव होता है कि वह संदिग्ध पदार्थ क्या था जिससे व्यक्ति की मौत हुई।

जांच हुई न डिस्पोजल

जानकारों की माने तो पोस्टमार्टम हाउस के पास एक रूम में जमा बिसरा सैम्पल की संख्या 10 हजार के पार कर चुकी है। बिसरा कलेक्शन का यह सिलसिला 1979 से चल रहा है। हर साल सौ से ज्यादा नये सैम्पल यहां रखे जाते हैं। हर सैम्पल को इस उम्मीद के साथ रखा जाता है कि यदि आवश्यकता होगी तो उसे जांच के लिए भेजा जाएगा। मगर न ही किसी को जांच के लिए भेजा जाता है और ना ही पुराने का बेकार मान कर उनका डिस्पोजल किया जाता है। नतीजा, मौत राज बनकर अब तक बॉटल्स में कैद है।

नष्ट करने का है ऑर्डर

तीन साल पहले निवर्तमान कमिश्नर के। रवीन्द्र नायक ने बिसरा सैम्पल्स की बढ़ती तादाद पर मौका मुआयना किया और उन सभी सैम्पल्स को नष्ट करने का ऑर्डर दिया जिसने डेथ मामले में क्लोजर रिपोर्ट फाइल हो चकी है। मगर यहां भी आदेश का पालन सिर्फ इसलिए नहीं हो सका क्योंकि ये लेखा-जोखा मिला ही नहीं कि किस मौत के केस में फाइल बंद हो चुकी है। ऐसे में कमिश्नर का आदेश भी ठंडे बस्ते में गया और बिसरा सैम्पल भी ज्यों के त्यों पड़े रह गए।

हो सकता है विवाद

बिसरा के मामले में खास ये भी है कि इसे कलेक्ट करने और इसे संरक्षित रखने की जिम्मेदारी मेडिकल डिपार्टमेंट के पास है। जबकि इसके जांच रिपोर्ट की जरूरत पुलिस डिपार्टमेंट को पड़ती है। मेडिकल डिपार्टमेंट इसलिए बिसरा को नष्ट नहीं करता क्योंकि कल को पुलिस डिपार्टमेंट या कोर्ट में कहीं मामला फंस न जाए। जबकि पुलिस डिपार्टमेंट ये बताने की जहमत नहीं उठाता कि किस केस में अब बिसरा को सुरक्षित रखने की जरुरत नहीं।

जरुरत पर ही जांच

साल दर साल भले ही बिसरा सैम्पल्स की संख्या बढ़ रही है मगर शायद ही किसी सैम्पल को कभी उच्च स्तरीय प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा गया हो। रूटीन में बिसरा को जांच के लिए नहीं भेजा जाता मगर जहां कोर्ट केस में ऑर्डर होता है, उन्हीं सैम्पल्स को जांच के लिए भेजने का प्रावधान है। मेडिकल एक्सप‌र्ट्स की माने तो बिसरा को सुरक्षित रखने के कई नियम कानून है जिनका पालन नहीं होता। ऐसे में सभी सैम्पल्स अब किसी काम के नहीं। इनसे कुछ भी पता करना संभव नहीं। फिर भी कोई कानूनी पचड़ा न फंसे इसलिए इन्हें नष्ट भी नहीं किया जा रहा है। बोतलों में मौत के राज दफन हैं।

वर्जन

बिसरा डिस्पोजल की प्रक्रिया बहुत ही कठिन है। डीएम की अध्यक्षता में गठित टीम निर्णय लेती है। साथ ही इस प्रक्रिया में कई जिम्मेदार अफसरों को रिपोर्ट देना होता है। इसके बाद ही बिसरा नष्ट किया जा सकता है। प्रक्रिया पूरी न होने के कारण ही हम बिसरा को रखने के लिए मजबूर हैं।

-डॉ। एमके सिंह, सीएमओ