- कभी मदद तो कभी पनाह में बॉर्डर पर पनपते रहे रईस

- नकली नोटों के कारोबार और तस्करी को बनाया हथियार

GORAKHPUR: नेपाल बॉर्डर से सटे इलाकों में 'टेरर फंडिंग' का खेल नया नहीं है। वाया नेपाल इंडिया विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वाले संगठन दशकों से फंडिंग के हथियार का इस्तेमाल करते चले आ रहे हैं। नेपाल में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से जुड़कर करीब दो सौ लोग लोग चंद दिनों में रईस बन गए। कभी नकली नोटों की खेप पहुंचाने तो कभी सोने की तस्करी के रूप में 'टेरर फंडिंग' होती रही है। तीन दशकपूर्व शहर के थियेटर में हुए ब्लास्ट के बाद फंडिंग की जानकारी सामने आई थी। लेकिन तमाम कवायदों के बावजूद संदिग्ध गतिविधियों को नहीं रोका जा सका। हाल ही में आईएसआई एजेंट परवेज टांडा से जुड़े एक शातिर को पुलिस ने नकली नोटों और असलहों संग अरेस्ट किया था। पुलिस अधिकारियों का मानना है कि बॉर्डर से सटे जिलों में चंद दिनों के धनी हुए लोगों की देश विरोधी संगठनों में भूमिका रही है। तमाम गतिविधियों के बावजूद 'टेरर फंडिंग' की जानकारी जुटाने में खुफिया एजेंसियां नाकाम रही हैं। इसलिए शहर में इसका संचालन तेजी से होने लगा।

तीन दशक से टेरर फंडिंग, बदल गया तौर तरीका

यूपी एटीएस की टीम ने शनिवार को शहर में छापेमारी कर मोबाइल कारोबारी सगे भाइयों सहित 10 लोगों को अरेस्ट किया था। आरोप है कि कारोबारी भाइयों नसीम अहमद और अरशद नईम की पाकिस्तानी हैंडलर से सीधी बातचीत होती थी। पाकिस्तान में सक्रिय चरमपंथी संगठन लश्कर ए तैयब्बा से जुड़ा हैंडलर उनको सीधे फोन करके फर्जी खाते खुलवाने और रुपए जमा कराने का निर्देश देते थे। शहर में संचालित होने वाली देश विरोधी गतिविधियों पर एटीएस की कार्रवाई से हड़कंप मचा हुआ है। जांच में जुटी एजेंसियां कई लोगों को टारगेट पर लेकर पूछताछ में जुटी हैं। अभी इस नेटवर्क में कई चेहरों के बेनकाब होने संभावना बनी हुई है। एटीएस की कार्रवाई में टेरर फंडिंग का मामला सामने आया है। लेकिन शहर में इस तरह की गतिविधियां करीब तीन दशक से संचालित होती रही हैं। देवरिया जिले के मूल निवासी मिर्जा दिलशाद बेग के आईएसआई कनेक्शन से इसका खुलासा हुआ था। मिर्जा के नेपाल में स्थापित होने होने के बाद आतंकियों की राह आसान हो गई थी। तब इंडिया में एक्टिव छुटभैये बदमाशों को मुनाफे का लालच देकर आईएसआई संगठन नकली नोटों की खेप भारत में पहुंचाकर अर्थ व्यवस्था को चोट पहुंचाते थे। इंडिया में अपराध करने नेपाल में छिपने वाले बदमाशों को समुचित संरक्षण भी दिया जाता रहा है।

मेनका बम कांड से सामने आया सच

पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में आतंकवाद की आहट वर्ष 1991 में पहली बार महसूस की गई थी। सोनौली रोड पर आतंकी सुखविंदर सिंह उर्फ राजू खन्ना को गिरफ्तार किया गया। जांच में सामने आया कि लोकल लोगों को रुपए का लाभ देकर उसने टेरर फंडिंग कराई थी। आधुनिक असलहों की सप्लाई और आतंकियों के ठहरने का इंतजाम भी कर लिया था। इस सुगबुगाहट के महज दो साल बाद शहर के विजय चौक स्थित मेनका थियेटर में बम विस्फोट हुआ। 15 जनवरी 1993 को तिरंगा फिल्म का मैटनी शो चल रहा था। तभी ड्रेस सर्किल में पीछे की लाइन पर सीट के नीचे बम फूटा। घटना में एक व्यक्ति की मौके पर मौत हो गई। पांच से अधिक लोग घायल हुए। इस मामले में कोतवाली एरिया के छोटे काजीपुर निवासी नफीस उर्फ सुड्डू को अरेस्ट किया गया। तब जांच एजेंसियों ने बताया था कि दाउद इब्राहिम के इशारे पर मिर्जा दिलशाद बेग ने वारदात को अंजाम दिया। मामले की छानबीन में जुटी सुरक्षा एजेंसियों ने एक साल बाद तिवारीपुर एरिया के सूर्यकुंड मोहल्ले से एक कश्मीरी को भी अरेस्ट किया था। इसके कुछ दिनों बाद ही देवरिया के रुद्रपुर निवासी इकबाल अंसारी को अरेस्ट किया गया। वर्ष 1992 में दिल्ली में हुए सीरियल ब्लास्ट में बस्ती के निवासी डॉ। जलेश अंसारी को अरेस्ट किया गया। ठीक उसी समय चल रही कार्रवाई में हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़े होने के रूप में आजमगढ़ के डॉ। मोबिन को पकड़कर आतंकी संगठनों की सक्रियता का खुलासा किया गया।

2007 सीरियल ब्लास्ट में हुई थी फडिंग

भारत नेपाल की खुली सीमा और महज 90 किलोमीटर दूर स्थित गोरखपुर आतंकी गतिविधियों को संचालित करने के लिए मुफीद रहा है। ट्रांजिट प्वॉइंट के रूप में इस्तेमाल होने वाले गोरखपुर के जरिए आतंकी संगठन अपने मंसूबों को अंजाम देने में लगे हैं। 22 मई 2007 को शहर के गोलघर में सीरियल ब्लास्ट हुए थे। तब आतंकी संगठनों ने यह बताने का प्रयास किया था कि उनकी सक्रियता बढ़ती जा रही है। मामले की जांच में सामने आया था कि बाहरी धन का इस्तेमाल करके ब्लास्ट कराया गया था। इसके लिए दूसरे तरीके से रुपए पैसे इकट्ठा किए गए थे। 10 साल के भीतर नेपाल बॉर्डर से सुरक्षा एजेंसियां 14 से अधिक आतंकियों को अरेस्ट कर चुकी हैं। तीन दशकों में यह आंकड़ा 35 से अधिक हो चुका है। जबकि संदिग्ध गतिविधियों के मामले में करीब चार सौ लोगों को उठाया जा चुका है। 17 मार्च को राजघाट एरिया में पुलिस मुठभेड़ में पकड़े गए आईएसआई एजेंट परवेज टांडा के करीबी त्रिभुवन सिंह को पुलिस ने अरेस्ट किया था। उसके पास से पांच सौ रुपए की नकली नोट और असलहे बरामद हुए थे। इस मामले के सामने आने के बाद भी खुफिया एजेंसियों के कान में तेल पड़ा रहा।