यहां छिपे थे Bhatkal brothers
इंडियन मुजाहिदीन के मेंबर्स के रूप में अरेस्टेड सिटी के बरियातू निवासी दानिश उर्फ रियाज ने गुजरात क्राइम ब्रांच के कबूलनामे में यह कबूल किया था कि इंडियन मुजाहिदीन के किंगपिन रियाज भटकल उर्फ यासीन भटकल और इकबाल भटकल 2008 में अहमदाबाद ब्लास्ट के बाद रांची में भी छिपे थे।

रांची से ही IM को किया दुरुस्त
साल 2008 में अहमदाबाद ब्लास्ट के बाद इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) को तकरीबन नेस्तनाबूद कर दिया गया था। ऑर्गनाइजेशन उस दौरान काफी कमजोर हो चला था। ऐसे में रांची में बैठकर इंडियन मुजाहिदीन के आकाओं ने न सिर्फ ऑर्गनाइजेशन को दुरुस्त किया, बल्कि इसी दौरान दानिश को इस टेररिस्ट ऑर्गनाइजेशन का ट्रेजरर बनाया गया। दानिश तब से आईएम में ट्रेजरर के तौर पर ही काम कर रहा था। दानिश फंड के लिए पैसे जुगाड़ता था। वहीं, ऑर्गनाइजेशन के वैसे टेररिस्ट्स, जो पकड़े जाते थे, उनके फैमिली मेंबर्स को भी फाइनेंशियल हेल्प एक्सटेंड करता था। इस दौरान बीच-बीच में कई बार 2008 ब्लास्ट का एक आरोपी तौकीर भी रांची आया था। जांच एजेंसीज के मुताबिक, झारखंड और खासकर रांची में इंडियन मुजाहिदीन ने अपनी चहलकदमी बढ़ाई है। रांची में अपना नाम बदलकर रहते हुए ऑर्गनाइजेशन के लिए काम करते रहे हैं ये टेररिस्ट्स।

रामजी उर्फ रामचंद्र भी छिपा था रांची में
समझौता एक्सप्रेस बम ब्लास्ट केस के तार भी रांची से जुड़े थे। इस मामले की जांच में लगी नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी (एनआईए) को इस बात के प्रूफ मिले थे कि ब्लास्ट का फरार आरोपी रामजी उर्फ रामचंद्र कालसांगरा ब्लास्ट को अंजाम देने के बाद रांची में ही छुपा था। 12 अक्टूबर 2007 को ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर हुए ब्लास्ट के मामले में भी रामजी की भूमिका रही थी। जांच एजेंसीज को मिली इनफॉर्मेशन के मुताबिक, रामजी मई 2010 तक रांची में ही था। इस दौरान वह यहां रहकर बतौर इलेक्ट्रीशियन काम कर रहा था। समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट की जांच कर रही एनआईए के मुताबिक, ब्लास्ट को अंजाम देने के बाद रामजी और संदीप की मुलाकात 2009 में झारखंड में ही हुई थी। गौरतलब है कि रामजी और संदीप पर 10-10 लाख रुपए का इनाम रखा गया है।

झारखंड, बंगाल व नेपाल में छिपते थे
एनआईए की जांच के बाद जो फैक्ट्स सामने आए थे, उसके मुताबिक झारखंड में शरण लेने के बाद रामजी, संदीप और यासीन भटकल बंगाल जाते थे। वहां जाली नोटों का कारोबार करनेवाले के साथ दोस्ती कर नेपाल में दूसरे नाम से जाकर छिप जाया करते थे।

बचा था कोलकाता पुलिस के चंगुल से
कोलकाता के शेक्सपीयर सरानी पुलिस स्टेशन की पुलिस ने यासीन भटकल को 29 दिसंबर 2009 को अरेस्ट करने में सफलता पाई थी। पर, यासीन पुलिस के सामने खुद को बुल्ला मल्लिक बताया था। उसने अपने पिता का नाम कार्तिक मल्लिक और एड्रेस उत्तरी रेंज कोलकाता-17 बताया था। पुलिस ने जब छानबीन की थी, तो उसकी बातों को सही पाया गया था, तब उसे छोड़ दिया गया था।

तब  photo से हुई थी पहचान
अप्रैल 2010 में चेन्नई में चिन्नास्वामी स्टेडियम ब्लास्ट के
बाद यासीन भटकल की तस्वीरें जारी की गई थीं। इसके बाद शेक्सपीयर सरानी थाना पुलिस में छानबीन की गई थी। तब थानेके ऑफिसर्स ने यह कहकर टास्क फोर्स को लौटा दिया था कि उनलोगों ने किसी यासीन भटकल को अरेस्ट नहीं किया था.जब बेंगलुरु पुलिस द्वारा रिकॉर्ड में दर्ज तस्वीरें दिखाई गईं, तो कोलकाता पुलिस के होश उड़ गए थे। वह तस्वीर यासीन भटकल की ही थी।