इस समीक्षा को लेकर जहां एक ओर उद्योग समूहों ने केन्द्रीय बैंक के नए मुखिया से ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद जताई है, वहीं दूसरी ओर अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रिजर्व बैंक को एक संतुलित नज़रिए के साथ आगे बढ़ाना चाहिए.

इससे पहले  अमरीकी फेडरल रिजर्व ने अपने यहां दिए जा रहे प्रोत्साहन पैकेज को जारी रखने का निर्णय लिया था. इससे रघुराम राजन को काफी राहत मिली है और वह मौद्रिक नीति की दिशा तय करते हुए बाहरी दबावों से काफी हद तक मुक्त रहेंगे.

ब्याज दरों में कटौती की आस

"अमरीकी फेडरल रिजर्व ने प्रोत्साहन पैकेज को जारी रखने बात कही है, ऐसे में रिजर्व बैंक को विकास को बढ़ावा देने की काफी गुंजाइश मिलती है."

-चरणजीत बनर्जी, महानिदेशक, सीआईआई

उद्योग समूह सीआईआई के महानिदेशक चरणजीत बनर्जी ने बीबीसी संवाददाता वर्तिका को बताया कि  रिजर्व बैंक के नए गवर्नर का काम अभी तक काफी उत्साहजनक रहा है और उद्योगों को उनसे काफी उम्मीदें हैं.

उन्होंने कहा कि, "अमरीकी फेडरल रिजर्व ने प्रोत्साहन पैकेज को जारी रखने बात कही है, ऐसे में रिजर्व बैंक को विकास को बढ़ावा देने की काफी गुंजाइश मिलती है. "

बनर्जी ने कहा कि, "इस समय औद्योगिक प्रदर्शन की स्थिति काफी खराब है. इसलिए सीआईआई को उम्मीद है कि रिजर्व बैंक मौद्रिक सख्ती को थोड़ा आसान करेगा और हम ब्याज दरों में कटौती देखना चाहेंगे. "

उन्होंने कहा कि हालांकि इस समय खाद्य उत्पादों की महंगाई दर अधिक है, लेकिन औद्योगिक उत्पादों की कीमते काबू में हैं. इसलिए ब्याज दरों में कटौती कर निवेश को प्रोत्साहित किया जाए.

संतुलित नज़रिए की ज़रूरत

मौद्रिक समीक्षा: रघुराम राजन की पहली परीक्षा दूसरी ओर जानेमाने अर्थशास्त्री रोहित बंसल का मानना है कि रघुराम राजन की बड़ी प्राथमिकता कीमतों में नियंत्रण को लेकर होगी.

उन्होंने कहा कि, "उनके (रघुराम राजन) सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि बाजार में इतना पैसा न जाए कि कीमतें बढ़ें. ऐसे में कीमतों में काबू शायद उनकी बड़ी प्राथमिकता होगी. लेकिन जिन उद्योगों की वजह से  आर्थिक विकास होता है. उन्हें भी पैसे देना ज़रूरी है. "

रोहित बंसल ने कहा कि भारत जैसे विकासशील और चुनौतीपूर्ण देश की मौद्रिक नीति के लिए समन्वय सबसे महत्वपूर्ण आधार होता है. इसलिए रिजर्व बैंक को बीच के रास्ते पर चलना चाहिए.

उन्होंने कहा कि थोक मूल्यों पर आधार मुद्रास्फीति की दर महंगाई की सही तस्वीर नहीं पेश करती है. इसलिए आम लोगों को सोशल मीडिया और दूसरे माध्यमों के जरिए सरकार से मांग करनी चाहिए कि वह महंगाई की सही तस्वीर पेश करे और उसके आधार पर बैंकों की जमा दरें तय की जानी चाहिए..

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