आगरा। खाने पीने के सामान से लेकर एक सुई पर भी सरकार ने जीएसटी लागू कर दिया है। जीएसटी ने अपना एक साल पूरा कर लिया है। बता दे कि कपड़ों पर पहली बार टैक्स लागू किया गया है। जिससे कपड़ो के बाजार में मंदी आ गई है। दुकानदार अपने सामान पर एमआरपी लगाकर भरपाई करने की कोशिश कर रहे है। वहीं ब्रांडेड अपने नाम से ग्राहको को खींचने में सफल है। इन सबसे परे कपड़े के छोटे कारोबारी नुकसान झेल रहे है। देश का खजाना भरने के लिए सरकार ने पहली बार कपड़ो पर जीएसटी लागू किया है। पांच प्रतिशत जीएसटी रेडीमेड कपड़ो पर अनिवार्य रूप से लागू है। कारोबारियों का कहना है कि अब लोग फैशन नहीं जेब के हिसाब से कपड़े खरीद रहे है।

तीन शादी सीजन गए ठंडे बस्ते में

जीएसटी लागू हुए तीन शादी सीजन बीत चुके है। लेकिन कपड़ा मंडी का कारोबार घाटे के दौर से गुजरा है। कारोबारियों के अनुसार 40 प्रतिशत की गिरावट बाजार में आई है। थोक के कपड़ो के साथ ही रेडीमेड कपड़ो पर भी जीएसटी पहली बार लगा है। जिससे कपड़ो के दाम मंहगे हो गए है। मंहगाई से ग्राहक दो की जगह एक कपड़ा ही खरीदकर दुकानों से चल देते है।

थोक की जगह पहुंच रहे रिटेलर पर

ग्राहक अब थोक के बाजार की जगह दुकानों से कपड़े खरीदना पसंद कर रहे है। जहां अभी तक थोक में थान से कटा हुआ कपड़ा सस्ता पड़ जाता था। अब उसी में 20 से 50 रूपए तक की बढ़ोत्तरी हुई है। लोग अब रेडीमेड की तरफ रूख कर रहे है।

मॉल दे रहे ऑफर

आउट ऑफ फैशन हुए या फिर पुराना स्टॉक पर ऑफर लगाकर बड़े मॉल अपना माल निकालने में लगे हुए है। इसी बहानें में बाई वन गेट वन फ्री और पचास प्रतिशत तक का ऑफर का लालच देकर मॉल अपना सामान बेच रहे है। जबकि नए माल पर उन्हे लागू जीएसटी का भुगतान करना पड़ रहा है।

50 हजार तक पर नहीं देना पड़ता ईवे बिल

कपड़ा व्यापरियों के लिए सरकार द्वारा ईवे बिल का प्रावधान रखा गया है। जिसके अंर्तगत कपड़ा व्यापारियों को 50 हजार तक का माल मंगवाने पर ईवे बिल नहीं देना पड़ता है। लेकिन इसमें भी शर्ते है यह प्रावधान दस किमी के दायरे में ही लागू होता है। ऐसे में व्यापारी ईवे बिल से बचने के लिए सामान को कई टुकड़ों में मंगवाते है लेकिन जब दूरदराज से उनका सामान आता है तो कॉगजों में ऑनलाइन गलतियां होने पर या फिर जीएसटी नंबर में गलती होने पर कई दिनों तक सामान से भरे उनके ट्रक आउटर में खड़े रहते है।