Than why students pay union fees


Election  के बाद students के बीच से गायब हो गए leaders

Allahabad : फीस तो तब भी ली जाती थी जब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन पर रोक लगी हुई थी। तब भी छात्रों को इस फीस का भुगतान करने का कोई मतलब समझ में नहीं आता था और न ही अब आ रहा है क्योंकि पिछले साल हुए इलेक्शन में विजयी सभी चारों प्रमुख प्रत्याशी किसी न किसी कारण के चलते छात्रों के बीच से गायब रहे। अब एक बार फिर से इलेक्शन की तैयारियां छात्रों की ओर से शुरू हो चुकी हैं। इस चक्कर में आए दिन बवाल हो रहा है। माहौल गरम है। क्लासेज डिस्टर्ब हैं। ऐसे माहौल में एक बार फिर यह सवाल प्रासंगिक हो गया है कि क्या छात्र इसी के लिए हर साल पैसा देते हैं.

यूं ही नहीं मिला था यूनियन

सात साल लम्बे संघर्ष के बाद एयू में स्टूडेंट यूनियन की बहाली लास्ट इयर हुई थी। उस समय स्टूडेंट्स के सामने जितने मुंह उतने तरह के लोक लुभावने वादे स्टूडेंट्स लीडर ने किए थे। लेकिन, यूनियन बनने के बाद सभी वादे वक्त के साथ हवा होते गए। आलम यह है कि प्रेसिडेंट दिनेश सिंह यादव का चुनाव गलत तरीके से लड़े जाने के कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इललीगल ठहरा दिया। वाइस प्रेसिडेंट शालू यादव सस्पेंड हो गईं। जनरल सेक्रेटरी अभिषेक सिंह माइकल पूरे समय और अभी भी जेल में ही हैं। बाकी बचे ज्वाइंट सेक्रेटरी गया शंकर यादव और कल्चरल सेक्रेटरी देवमणि मिश्रा भी कुछ खास नहीं कर सके। चुने हुए फैकेल्टी रिप्रजेटेटिव का तो नाम भी स्टूडेंट्स को ढंग से नहीं पता है. 

कॉलेजों का भी यही हाल

एयू जैसा ही हाल सीएमपी डिग्री कालेज, इलाहाबाद डिग्री कालेज और ईश्वर शरण डिग्री कालेज में चुने गए यूनियन का भी हुआ। सीएमपी डिग्री कालेज में पूरे साल अराजकता का माहौल रहा। सीएमपी यूनियन के प्रेसिडेंट अजीत यादव पूरे टाइम फसाद की वजह से चर्चाओं के केन्द्र में रहे। करेंट में पुलिस को गैगेस्ट एक्ट में उनकी तलाश है। एडीसी के प्रेसिडेंट भी पूरे टाईम प्रेसिडेंट पोस्ट के लिए हुए चुनाव में खुद के क्वालीफिकेशन को लेकर उठे विवाद की जद में रहे तो ईश्वर शरण डिग्री कालेज की यूनियन भी फिसड्डी ही साबित हुई. 

सालाना चुकाते हैं लाखों रुपया

मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यूनियन के नाम पर ली जा रही फीस स्टूडेंट्स की जेब कटने के समान है। जानकार हैरानी होगी कि एयू और उससे एफिलेटेड कालेज में छात्र संख्या पैसठ हजार से ज्यादा हैं। यानि हर साल स्टूडेंट्स से साढ़े छह लाख के आसपास फीस ली जाती है. 

मची रही आपस में खींचतान

कुल मिलाकर देखा जाए तो यूनियन की फीस के नाम पर लास्ट इयर से अभी तक इलेक्शन और कुछ छोटे मोटे आयोजन ही हो सके हैं। इसमें भी आयोजनों के दौरान यूनियन मेम्बर्स में पैसे को लेकर ही आपस में खींचतान मची रही। यूनियन की कमजोरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी तक छात्रसंघ का एकाउंट ही नहीं खुल सका.

क्या था यूनियन का उद््देश्य एवं लक्ष्य
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-स्टूडेंट्स से जनतंत्र की संस्कृति, उसके अनुभव एवं सामाजिक सरोकारों के साथ रचनात्मक संवाद स्थापित करना
-स्टूडेंट्स में देशभक्ति, सामाजिक चेतना, मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता, विस्तृत मानसिकता, ह्दय की विशालता, सहयोग की भावना, अनुशासनप्रियता एवं आदर्श नागरिक आचरण डेवलप करना
-अकादमिक एवं सामाजिक विषयों पर वाद विवाद प्रतियोगिता, गोष्ठी एवं सांस्कृतिक आयोजन
-स्टूडेंट्स के शैक्षिक, साहित्यिक एवं सास्कृतिक गतिविधियों का उन्नयन  

वादे जो नहीं हुए पूरे
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-पुस्तकालय से किताबें दिलवाएंगे
-क्लासेस चलवाएंगे
-शौचालय बनवाएंगे
-मेडिकल कालेज और इंजिनियरिंग कालेज के लिए लड़ेगें
-मेडिकल फैसेलिटी 
-टीचर्स एप्वाइंटमेंट
-एडमिनिस्ट्रेशन और स्टूडेंट्स के बीच का माध्यम
-रिसर्च में फैसेलिटी
-सभी को हास्टल
-मेस की सुविधा एटसेक्ट्रा  

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और उससे सम्बद्ध कॉलेजों में छात्रों की संख्या
लगभग 65 हजार
प्रति छात्र स्टूडेंट यूनियन के नाम पर फीस वसूली जाती है
दस रुपए
हर साल जमा हो जाते हैं
साढ़े छह लाख रुपए
सात सालों तक स्टूडेंट यूनियन अस्तित्व में नहीं रहने से बचे
करीब 45 लाख रुपए
पिछले साल गठित स्टूडेंट यूनियन का अभी तक एकाउंट ही नहीं खुला है जबकि नए सत्र के लिए चुनाव इसी महीने संभव है.















  

 

यूं ही नहीं मिला था यूनियन

सात साल लम्बे संघर्ष के बाद एयू में स्टूडेंट यूनियन की बहाली लास्ट इयर हुई थी। उस समय स्टूडेंट्स के सामने जितने मुंह उतने तरह के लोक लुभावने वादे स्टूडेंट्स लीडर ने किए थे। लेकिन, यूनियन बनने के बाद सभी वादे वक्त के साथ हवा होते गए। आलम यह है कि प्रेसिडेंट दिनेश सिंह यादव का चुनाव गलत तरीके से लड़े जाने के कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इललीगल ठहरा दिया। वाइस प्रेसिडेंट शालू यादव सस्पेंड हो गईं। जनरल सेक्रेटरी अभिषेक सिंह माइकल पूरे समय और अभी भी जेल में ही हैं। बाकी बचे ज्वाइंट सेक्रेटरी गया शंकर यादव और कल्चरल सेक्रेटरी देवमणि मिश्रा भी कुछ खास नहीं कर सके। चुने हुए फैकेल्टी रिप्रजेटेटिव का तो नाम भी स्टूडेंट्स को ढंग से नहीं पता है. 

कॉलेजों का भी यही हाल

एयू जैसा ही हाल सीएमपी डिग्री कालेज, इलाहाबाद डिग्री कालेज और ईश्वर शरण डिग्री कालेज में चुने गए यूनियन का भी हुआ। सीएमपी डिग्री कालेज में पूरे साल अराजकता का माहौल रहा। सीएमपी यूनियन के प्रेसिडेंट अजीत यादव पूरे टाइम फसाद की वजह से चर्चाओं के केन्द्र में रहे। करेंट में पुलिस को गैगेस्ट एक्ट में उनकी तलाश है। एडीसी के प्रेसिडेंट भी पूरे टाईम प्रेसिडेंट पोस्ट के लिए हुए चुनाव में खुद के क्वालीफिकेशन को लेकर उठे विवाद की जद में रहे तो ईश्वर शरण डिग्री कालेज की यूनियन भी फिसड्डी ही साबित हुई. 

सालाना चुकाते हैं लाखों रुपया

मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यूनियन के नाम पर ली जा रही फीस स्टूडेंट्स की जेब कटने के समान है। जानकार हैरानी होगी कि एयू और उससे एफिलेटेड कालेज में छात्र संख्या पैसठ हजार से ज्यादा हैं। यानि हर साल स्टूडेंट्स से साढ़े छह लाख के आसपास फीस ली जाती है. 

मची रही आपस में खींचतान

कुल मिलाकर देखा जाए तो यूनियन की फीस के नाम पर लास्ट इयर से अभी तक इलेक्शन और कुछ छोटे मोटे आयोजन ही हो सके हैं। इसमें भी आयोजनों के दौरान यूनियन मेम्बर्स में पैसे को लेकर ही आपस में खींचतान मची रही। यूनियन की कमजोरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी तक छात्रसंघ का एकाउंट ही नहीं खुल सका।

क्या था यूनियन का उद््देश्य एवं लक्ष्य

-स्टूडेंट्स से जनतंत्र की संस्कृति, उसके अनुभव एवं सामाजिक सरोकारों के साथ रचनात्मक संवाद स्थापित करना

-स्टूडेंट्स में देशभक्ति, सामाजिक चेतना, मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता, विस्तृत मानसिकता, ह्दय की विशालता, सहयोग की भावना, अनुशासनप्रियता एवं आदर्श नागरिक आचरण डेवलप करना

-अकादमिक एवं सामाजिक विषयों पर वाद विवाद प्रतियोगिता, गोष्ठी एवं सांस्कृतिक आयोजन

-स्टूडेंट्स के शैक्षिक, साहित्यिक एवं सास्कृतिक गतिविधियों का उन्नयन  

वादे जो नहीं हुए पूरे

-पुस्तकालय से किताबें दिलवाएंगे

-क्लासेस चलवाएंगे

-शौचालय बनवाएंगे

-मेडिकल कालेज और इंजिनियरिंग कालेज के लिए लड़ेगें

-मेडिकल फैसेलिटी 

-टीचर्स एप्वाइंटमेंट

-एडमिनिस्ट्रेशन और स्टूडेंट्स के बीच का माध्यम

-रिसर्च में फैसेलिटी

-सभी को हास्टल

-मेस की सुविधा एटसेक्ट्रा  

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और उससे सम्बद्ध कॉलेजों में छात्रों की संख्या

लगभग 65 हजार

प्रति छात्र स्टूडेंट यूनियन के नाम पर फीस वसूली जाती है

दस रुपए

हर साल जमा हो जाते हैं

साढ़े छह लाख रुपए

सात सालों तक स्टूडेंट यूनियन अस्तित्व में नहीं रहने से बचे

करीब 45 लाख रुपए

पिछले साल गठित स्टूडेंट यूनियन का अभी तक एकाउंट ही नहीं खुला है जबकि नए सत्र के लिए चुनाव इसी महीने संभव है।