-मनोकामना पूरी होने पर पहुंचे श्रद्धालुओं ने पुल पर बांधा गेंदा का फूल

-गंगोत्री-शिवाला और ओल्ड जीटी रोड पुल पर दिखाई दिया नजारा

ALLAHABAD: संगम की रेती पर कुंभ हो या माघ मेला हर कोई अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए संगम स्नान के लिए जरूर आता है। जब श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी हो जाती है तो मां के चरणों में गेंदे के फूल की माला चढ़ाना भी नहीं भूलते हैं। कुछ ऐसा ही नजारा मकर संक्रांति स्नान पर्व के दौरान मेला क्षेत्र में दिखाई दिया। जब ओल्ड जीटी रोड और गंगोत्री-शिवाला पुल पर एक या दो नहीं बल्कि एक दर्जन माला में से गेंदे के फूल को निकालकर पुल पर मां गंगा का सेहरा बांधने का काम किया गया।

पुत्र कामना की मांगी थी मनौती

मध्य प्रदेश के रीवां जिले से संक्रांति का स्नान करने के लिए राम निहोर प्रजापति अपने परिजनों के संग पहुंचे। वे गंगोत्री-शिवाला पुल के पास बने घाट पर अपनी पत्‍‌नी सुलोचना के साथ स्नान करने के बाद सीधे पुल पर पहुंच गए और करीब एक किमी लम्बे पुल की रेलिंग पर फूल बांधने लगे। ऐसा ही नजारा ओल्ड जीटी रोड पुल पर भी दिखाई दिया जहां पर चित्रकूट से आएं रामराज पटेल ने फूल से गंगा मइया को सेहरा बांधा। श्री प्रजापति ने बताया कि पिछले वर्ष संक्रांति स्नान के समय मइया से पुत्र की प्राप्ति की मनोकामना मांगी थी वह पूरी हो गई तो इस बार सेहरा बांधने के लिए आएं हैं। श्री पटेल ने अपने छोटे भाई आकाश की सरकारी नौकरी की कामना की थी। उनकी मनोकामना पूरी हो गई तो उन्होंने भी पत्‍‌नी के संग मां के चरणों में सेहरा का फूल चढ़ाया।

खूब चला खिचड़ी का भंडारा

मेला क्षेत्र में संक्रांति के मुख्य स्नान पर भी संत-महात्माओं के शिविर में सुबह सात बजे से खिचड़ी का प्रसाद वितरित किया जाने लगा था। नागेश्वर धाम, चरखी दादरी अन्न क्षेत्र, ओउम वाहे गुरु आश्रम व साकेत धाम जैसे अन्न क्षेत्र में दिनभर श्रद्धालुओं को पंगत में बैठाकर प्रसाद खिलाया गया। विश्व हिन्दू परिषद के शिविर के बाहर उधर से जाने वाले श्रद्धालुओं को रोक रोकर खिचड़ी खिलाई गई। संगम नोज के आसपास तो स्वयंसेवी संस्थाओं ने स्टॉल लगाकर श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया।

बच्चों से ज्यादा बिछड़े सयाने

माघ मेले का दो प्रमुख स्नान पर्व समाप्त हो चुका है लेकिन भूले भटके शिविर के आंकड़ों पर गौर करें तो बच्चों से ज्यादा बड़े-बुजुर्ग अपना रास्ता भटक गए थे। पहला प्रमुख स्नान पर्व दो जनवरी को पौष पूर्णिमा का था जिसमें भटकने वालों में 52 महिला व पुरुष थे तो सिर्फ दो बच्चे ही अपने परिजनों से भटक गए थे। पारंपरिक संक्रांति पर्व के पहले दिन 285 महिला व पुरुष व दो बच्चे मेला क्षेत्र में भटक गए थे। सोमवार को भी संक्रांति के मुख्य स्नान पर्व के दिन क्षेत्र में 4773 महिला व पुरुष और नौ बच्चे अपनों से बिछड़ गए थे। जिन्हें उनके परिजनों से शाम तक मिलाया जाता रहा।