इस बार बाहर से कम आए लोग

कान्हा की नगरी में देश और दुनिया के हर हिस्से से श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला लगा रहता है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव से कई दिन पहले ही ये आमद और तेज होने लगती थी. बाजारों में भी रौनक छा जाती थी. पिछले वर्ष को ही लें. गुजराती श्रद्धालुओं की संख्या सबसे ज्यादा रही थी. डीलक्स बसों की कतारें उनकी मौजूदगी की गवाह बनी रही हैं. गुजराती श्रद्धालु धामों की यात्रा करते हुए ब्रज में आते थे. कान्हा के जन्मोत्सव से पहले गोकुल, वृंदावन और गोवर्धन में दर्शन करते थे. मगर, इस बार ये बसें न के बराबर आई हैं. इक्का-दुक्का ही नजर आ रही हैं. उड़ीसा, मणिपुर, असोम, पश्चिम बंगाल, बिहार से भी श्रद्धालुओं की भागीदारी अच्छी रहती थी. श्रीकृष्ण जन्मस्थान ही नहीं, मथुरा शहर में भी कई दिन पहले से ही रौनक शुरू हो जाती थी.1इस बार स्थितियां अलग हैं.

दिख नहीं रही रौनक

बुधवार को जन्माष्टमी है, लेकिन अभी तक पहले जैसी रौनक कहीं नहीं दिख रही. जानकारों की मानें, तो ये स्थिति अयोध्या में 84 कोसी परिक्रमा आंदोलन के कारण बनी हुई है. बाजार सूत्र बताते हैं कि दूसरे राज्यों के श्रद्धालु या तो इस आंदोलन से जुड़े हुए हैं या फिर आवाजाही में रोकटोक के कारण इधर आने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं. श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में एक कोना साधुओं के लिए आरक्षित सा रहता है. मगर, इस कोने में एक भी साधु नजर नहीं आ रहा है. श्रीकृष्ण जन्मस्थान ही नहीं, मथुरा, वृंदावन शहर और रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर भी पीले वस्त्रधारी नदारद हैं. समझा जा रहा है कि ये किसी न किसी रूप में अयोध्या आंदोलन से जुड़ गए हैं.

40 फीसदी कम आएंगे श्रद्धालु

दूसरे राज्यों के श्रद्धालुओं की इस स्थिति के आधार पर अनुमान लगाया जा रहा है कि श्रीकृष्ण जन्मोत्सव में करीब 40 फीसद श्रद्धालु कम आएंगे. श्रीकृष्ण जन्मस्थान संस्थान के आंकड़ों के आधार पर देखा जाए, तो पिछले वर्ष करीब 35 लाख श्रद्धालु आए थे, जबकि खुफिया रिपोर्ट का यही आंकड़ा तकरीबन 25 लाख था. ऐसी स्थिति में दिल्ली, एनसीआर और ब्रजवासियों पर ही जन्मोत्सव के उल्लास का दारोमदार होगा.

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