चुनाव आयोग ने शुरू की थी मामले की सुनवाई
यह मामला मार्च 2015 का है। अरविंद केजरीवाल सरकार ने आप के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। इसे लाभ का पद बताते हुए राष्ट्रपति से इन विधायकों की सदस्यता रद करने की मांग की गई थी। राष्ट्रपति ने यह मामला चुनाव आयोग को भेज दिया था। आयोग ने मार्च 2016 में इन विधायकों को नोटिस भेजकर इस मामले की सुनवाई शुरू की थी।
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कानून में संशोधन को नहीं मिली राष्ट्रपति से मंजूरी
इसके बाद दिल्ली सरकार द्वारा संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से निकालने के लिए कानून में संशोधन करने का प्रयास किया गया। लेकिन, इसे उस वक्त के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मंजूरी नहीं मिल सकी थी। दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने के फैसले का दिल्ली हाई कोर्ट में विरोध किया था। केंद्र सरकार का कहना था कि दिल्ली में सिर्फ एक संसदीय सचिव हो सकता है, जो मुख्यमंत्री के पास होगा। इन विधायकों को यह पद देने का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है।
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विधायकों के जवाब से चुनाव आयोग असंतुष्ट
-चुनाव आयोग विधायकों के जवाब से संतुष्ट नहीं है। आयोग के मुताबिक दो वर्षों में कई बार विधायकों को अपनी बात रखने का मौका दिया गया।
-दूसरी तरफ, आप का कहना है कि चुनाव आयोग में किसी विधायक की गवाही नहीं हुई है। फैसला पूरी तरह पक्षपातपूर्ण है।
-आगामी 14 फरवरी को आम आदमी पार्टी सरकार के तीन वर्ष पूरे हो रहे हैं। ऐसे में यह केजरीवाल सरकार के लिए बड़ा झटका है।
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