भ्रष्टाचार तो यहीं है, वहां तो दूध का दूध पानी का पानी

दो दिनों बाद मंत्री ने दरबार में राजा के सवालों का जवाब देना शुरू किया. उसने पहले सवाल के जवाब में कहा, 'महाराज! भ्रष्टाचारी, चोर या अन्य पापी यहीं सुखी रह सकता है. मरने के बाद ऊपर जाने पर वहां उसके साथ पूरा न्याय किया जाता है मतलब उसे अपने किए की सजा भुगतनी पड़ती है. वहां उसे कष्ट ही मिलते हैं. हालांकि कई बार ऐसे अधम लोगों को पकड़े जाने पर यहां सजा मिल जाती है लेकिन उसे परलोक में भी अपने किए की सजा भुगतनी पड़ती है. यानी वह यहां तो है लेकिन वहां नहीं है.'

अपने हिस्से से दूसरों को सुख देना ही है परोपकार

दूसरे सवाल के जवाब में मंत्री ने कहा, 'यहां ज्यादातर लोग अपना काम ईमानदारी से करते हुए अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. यथा शक्ति देश और समाज के लिए चंदा भी देते हैं. टैक्स भी टाइम पर चुकाते हैं. ऐसे लोग हमेशा कष्ट में रहते हैं. क्योंकि उनपर देनदारियां और जिम्मेदारियां इतनी होती हैं कि वे ईमानदारी से काम करके या तो खुद सुखी रह सकते हैं या दूसरों को सुखी रख सकते हैं. गलत काम करके पैसा कमाने की बजाए अपने को कष्ट में रखकर दूसरों को सुखी रखने का विकल्प चुनते हैं. ऐसे लोग यहां तो कष्ट में जीवन गुजारते हैं लेकिन परलोक में उन्हें सुख मिलता है. यानी वे यहां तो नहीं हैं लेकिन वहां हैं.'

बेकार से बेगार भला

तीसरे सवाल का जवाब देते हुए मंत्री ने कहा, 'बेकार से बेगार भला. महाराज! यह तो सब लोगों ने सुना होगा. बेगार करने वाले यहां तो दुखी रहते हैं लेकिन परलोक में सुखी रहते हैं. लेकिन जो लोग कुछ नहीं करते और दूसरों की कमाई पर जीवन यापन करते हैं. भीख मांग कर किसी तरह गुजारा करते हैं ऐसे लोगों को न यहां सुख मिलता है और ना ही वहां. मतलब वे यहां भी सुखी नहीं रहते उनकी जरूरतें पूरी नहीं होती और यहां कुछ ना करने की वजह से परलोक में उनका एकाउंट बैलेंस निल रहता है जिसकी वजह से उन्हें वहां भी कष्ट ही भोगने पड़ते हैं. भीख मांगने वाले न यहां हैं और ना ही वहां.'

...मैं भी भूखा ना रहूं साधु ना भूखा जाए

चौथे और अंतिम सवाल का जवाब देते हुए मंत्री ने कहा, 'महाराज! यह तो सबने सुना होगा साईं इतना दीजिए जामे कुटुंब समाय, मैं भी भूखा ना रहूं और साधु ना भूखा जाए. यानी अपनी बुद्धि से ईमानदारी से व्यवसाय करने वाले सेठ अपनी जरूरत का छोड़ कर अपना धन दूसरे जरूरतमंद लोगों को दान-पुण्य करें, ऐसे लोग यहां भी हैं और वहां भी. बोले तो ऐसे लोगों का जीवन यहां भी सुखमय बीतता है और परलोक में भी इनका जीवन सुखी ही रहता है. ऐसे लोग श्रेष्ठ होते हैं.' मंत्री का उत्तर सुनकर सभी दरबारी प्रसन्न हो गए. राजा ने कहा, 'मंत्री जी आपने बिलकुल ठीक कहा. हम सभी की कोशिश यही होनी चाहिए कि खुद के विकास के साथ देश और समाज के विकास में योगदान दें. जीवन की यही उत्तम और अंतिम लक्ष्य है.'