सपना ही रह गया ऑडिटोरियम

'रंगाश्रम' को एशिया लेवल ऑडिटोरियम देने की नींव स्व। वीर बहादुर सिंह ने 28 जनवरी 1987 को रखी। इसमें दो ऑडिटोरियम और आर्ट गैलरी बनाने का प्रपोजल था। एक करोड़ 20 लाख खर्च करके काम शुरू कराया गया। जब कंस्ट्रक्शन शुरू हो गया, तब जीडीए ने बताया कि जिला न्यायालय ने कंस्ट्रक्शन पर रोक लगा दी है। नजूल के भूमि से संबंधी पट्टाधारी विठ्ठलदास ने जनपद न्यायालय में 1989 में याचिका दायर की थी। उसी याचिका के चलते कंस्ट्रक्शन पर रोक लगा दी गई। फिर यह मामला विवादों में उलझ गया। तब से लेकर अभी तक काम ठप पड़ा हुआ है, लेकिन बगल में खाली पड़ी जमीन पर पेड़ के नीचे मंच बनाकर कलाकार रोजाना प्रैक्ट्सि करते हैं।

1082 नाटक कर चुका है 'रंगाश्रम'

सिटी के यूथ को फ्री में एक्टिंग सिखाने वाले 'रंगाश्रम' की स्थापना 27 मार्च 1993 को 'विश्व रंगमंच दिवस' के मौके पर हुई थी। तभी यह डिसिजन लिया गया था कि यहां हर शनिवार सुबह सात बजे एक नाटक का मंचन किया जाएगा। तब से शुरू हुआ नाटकों के प्रदर्शन आज भी जारी है। 5 मई 2012 को 'रंगाश्रम' परिवार एक हजार नाटक पूरे कर चुका है। सैटर्डे को इसके मंच पर 1082वें नाटक 'दफन ख्वाहिशों' का का मंचन किया गया।

बड़े आयोजन के लिए जुटाते हैं चंदा

तारामंडल एरिया में खुले ओपन थियेटर में जहां कल्चरल डिपार्टमेंट की तरफ से कभी-कभार ही प्रोग्राम किए जाते हैं। वहीं अधूरे पड़े ऑडिटोरियम को पूरा कराने के लिए कभी पहल नहीं की गई। रंगाश्रम से टूटकर करीब आधा दर्जन संस्थाएं बनीं जिनके कलाकार आज भी सिटी में नाटकों का आयोजन करते हैं। लेकिन रंगाश्रम के मंच पर कभी-कभार ही बड़े आयोजन होते हैं। इसके लिए कलाकार चंदा जुटाते हैं। कलाकारों का कहना है कि सरकारी सुविधाओं के अभाव में यहां पर कोई बड़ा आयोजन नहीं हो पाता है। यदि ऑडिटोरियम बन जाता तो शायद यहां के कलाकारों को बाहर का रास्ता नहीं देखना पड़ता।

यहीं सीखे और बढ़ गए आगे

रंगाश्रम से टूटकर विभिन्न संस्थाएं बनीं। अक्टूबर 1993 में यहां से जुड़े रहे लोगों ने भूमिका आट्र्स, अगस्त 1996 में प्रतिबिंब नाट्य संस्था, इसी साल कला संगम और मार्च 1997 में संपर्क नाट्य संस्था बनाई गई। इस संस्थाओं से जुड़े आर्टिस्ट भी नाटक का मंचन करते रहते हैं। 'रंगाश्रम' से जुड़े कई कलाकारों ने सीरियल, फिल्म और नाट्य संस्थाओं में काम किया। अनिल कपूर, अजय देवगन जैसे कलाकारों के साथ काम करने वाले हेमंत मिश्रा, कला निर्देशक राकेश यादव, धर्मेंद्र श्रीवास्तव, सतीश कुमार वर्मा, पारितोष, धर्मेंद्र भारती, कल्याण सेन, राजेश राज, ओम प्रकाश बच्चा, संजय सिन्हा, शशिभूषण, एम दत्ता, मोहम्मद असलम, डॉ प्रदीप मिश्रा, सायरा सिद्दीकी, पानमती शर्मा, ममता, राधाकांत मिश्रा, मुकेश प्रधान सहित कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने रंगाश्रम का नाम रोशन किया है।

 

रंगाश्रम एक्टिंग की पाठशाला है। यहां उस कलाकार को भी मौका मिलता है जिसकी कोई पहचान नहीं है। धीरे-धीरे वह एक्टिंग के गुर सीख जाता है।

राधाकांत मिश्रा, आर्टिस्ट

नाटक के लिए कलाकार चंदा जुटाते हैं। उसके बाद नाटक हो पाता है। इसमें यदि लोगों का सहयोग मिले तो उभरते कलाकारों को मौका मिलेगा।

डॉ। प्रदीप मिश्रा, आर्टिस्ट

हमारे प्रयासों का कुछ लोग मजाक उडा़ते हैं। रंगाश्रम के प्रयास पर अंगुली उठाई जाती है। नुक्कड़ नाटकों के जरिए एक संदेश देने का प्रयास किया जाता है। इससे कम से कम रंगकर्मियों की भावनाएं तो आहत नहीं होती।

राजेश राज, आर्टिस्ट

अधूरे प्रेक्षागृह को पूरा कराने में मुकदमें का पेंच फंसा हुआ है, लेकिन कलाकारों को भटकने नहीं दिया जा रहा है। यहां पर एक्टिंग को जिंदा रखने के लिए ऐसे प्रयास की जरूरत है जिससे कलाकारों को सीखने में दिक्कत न हो। इसके लिए शासन-प्रशासन के अफसरों को ध्यान देना होगा।

केसी सेन, संस्थापक सचिव, रंगाश्रम

report by : arun.kumar@inext.co.in