- प्रदेश भर में खरीदी जाती हैं लगभग 400 करोड़ की दवाएं

- करोड़ों के जीवन रक्षक इंजेक्शन सप्लाई के लिए कंपनियों ने दिए झूठे शपथ पत्र

- पिछले साल भी जांच में फंसी थी कंपनियां, लेकिन नहीं हुई कोई कार्रवाई

sunil.yadav@inext.co.in

LUCKNOW: एनआरएचएम घोटाले की तर्ज पर सूबे का स्वास्थ्य विभाग एक बार फिर से दागी फर्मो के हाथों मे दवा सप्लाई का काम देने की जुगत में है। कार्रवाई से बेखौफ इन फर्मो ने हमेशा की तरह ही टेंडर पाने के लिए झूठे शपथपत्र दाखिल कर दिए है। इनमें से कई के खिलाफ कोर्ट में मामले चल रहे हैं तो कई में घटिया और नकली दवाएं बनाने के मामलों में जांच पेंडिंग है। वहीं नियमों के मुताबिक दागी कंपनियां टेंडर नहीं डाल सकती है।

बिना जांच के ही कर दी संस्तुति

दरअसल प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने हाल ही में टेंडर संख्या-8 एफ-आरसी-752 निकाला है जिसमें लाइफ सेविंग इंजेक्शन प्रदेश भर के अस्पतालों में सप्लाई होने हैं। इसमें लगभग 22 फर्मो ने आवेदन किया, लेकिन इनमें से सात-आठ कंपनियां ऐसी हैं, जिनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। किसी पर नकली दवाएं सप्लाई करने का आरोप है तो किसी पर मिस ब्रांडिंग दवाएं बेचने का। जिसके कारण कई को कई राज्यों में ब्लैक लिस्ट भी किया गया है। स्वास्थ्य विभाग का सीएमएसडी टेंडर डालने वाली सभी कंपनियों के ब्लैक लिस्ट न होने और कोई मामला विचाराधीन न होने की जांच करता है। उसके बाद ही सेंट्रल पर्चेज कमेटी की बैठक कर उसे हाईपावर कमेटी के पास आरसी फाइनल करने के लिए भेजा जाता है, लेकिन इस टेंडर के लिए दो दिन पहले ही सेंट्रल परचेज कमेटी ने बैठक कर बिना जांच किए ही इन कंपनियों से दवाएं खरीदने की संस्तुति कर दी। फिलहाल मामला अब हाई पावर कमेटी के समक्ष रखा जाना है जिसके बाद इन कंपनियों को दवा सप्लाई करने की अनुमति मिल जाएगी।

कई कंपनियों के खिलाफ चल रहे मामले

इस टेंडर में भाग लेने वाली जिन कंपनियों के खिलाफ मामले पेंडिंग हैं उनमें क्वालिटी फार्मास्युटिकल्स, मान फार्मास्युटिकल्स, मॉडर्न लैबोरेटरी, स्काट एडिल, मीनोफार्मा, क्रिस्टल, जी लैबोरेटरी जैसी अन्य कई कंपनियां हैं। इनमें से कई के 10 या अधिक मुकदमे भी चल रहे हैं। सभी मामले कोर्ट में पेंडिंग हैं या फिर उनके खिलाफ जांच चल रही है। फिर भी इन कंपनियों ने झूठे शपथ पत्र दाखिल कर दिए। क्योंकि इन्हें मालूम है कि हर बार की तरह इस बार भी कोई कार्रवाई विभाग की ओर से नहीं होने जा रही।

सख्त हैं गाइडलाइंस

टेंडर की शर्तो में साफ लिखा है कि कोई भी ब्लैक लिस्टिड फर्म को टेंडर प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जा सकता। यही नहीं फर्मो को ऐसा शपथ पत्र भी देना होता है कि कोई कोर्ट केस, विजिलेंस केस, सीबीआई केस उन फर्मो या उनके डायरेक्टर के खिलाफ पेंडिंग नहीं है। अगर यह झूठा या नकली पाया जाता है तो शपथ पत्र देने वाला व्यक्ति जिम्मेदार होगा और उसके खिलाफ सरकार ब्लैक लिस्ट करने की कार्रवाई कर सकती है।

पिछले साल भी पकड़ी थी गड़बड़ी

स्वास्थ्य विभाग ने पिछले वर्ष भी दागी फर्मो को दवाएं सप्लाई करने का ठेका दे दिया था। आरसी जारी करने से पहले सीएमएसडी अधिकारियों ने सभी कंपनियों के प्रमाणपत्रों की जांच कर चहेती फर्मो से आरसी की लिस्ट शासन को भेज दी। बाद में प्रमुख सचिव ने महानिदेशालय के अधिकारियों का गोरखधंधा पकड़ लिया और सभी कंपनियों को नोटिस जारी करने के आदेश दिए। एक के बाद एक 50 से अधिक फर्मो को नोटिस जारी किए गए। जिसमें लगभग 42 से अधिक दागी फार्मो द्वारा झूठे हलफनामे दाखिल करने की बात सामने आई थी। सभी को नोटिस देने के बाद कार्रवाई की बात कही गई लेकिन किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। नियम कानून को ताक पर रखकर स्वास्थ्य विभाग ने उन्हीं कंपनियों को दवा खरीद के लिए आरसी जारी कर दी। जबकि उस दौरान एनआरएचएम व अन्य मामलों में फंसने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने पांच दवा कंपनियों को ब्लैक लिस्ट किया था।

हर साल 400 करोड़ की दवाएं

स्वास्थ्य विभाग हर साल लगभग 400 करोड़ की दवाएं व उपकरण खरीदता है। जिसके लिए स्वास्थ्य महानिदेशालय स्थित सीएमएसडी के द्वारा टेंडर निकाले जाते हैं और रेट कांट्रैक्ट किया जाता है। इस कांट्रैक्ट के आधार पर ही जिलों में सीएमओ, सीएमएस दवाओं, एक्विपमेंट की खरीददारी करते हैं। इस साल भी ऐसे ही रेट कांट्रैक्ट की प्रक्रिया बड़े स्तर पर की जा रही है।

फर्मे सही जानकारी दे रही हैं इसी को सुनिश्चित करने के लिए शपथ पत्र लिया जाता है। शपथ पत्र की सत्यता जांचने के लिए हमारे पास मैनपावर नहीं है। कोई शिकायत मिलती है तो कार्रवाई की जाएगी।

- डॉ। सुरेश चंद्रा, डायरेक्टर, सीएमएसडी

अगर जांच में या फिर शिकायत के बाद कोई ऐसा मामला मिलता है जिसका शपथ पत्र फर्जी है तो उसे ब्लैक लिस्ट कर दिया जाएगा।

- अरविंद कुमार, प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य