-विधानसभा के मानसून सत्र में बदला दिखेगा सदन का नजारा

-14 विधायक बदल चुके हैं पाला, कांग्रेस के सबसे ज्यादा

-विधानसभा सदस्यता भी खतरे में, पार्टियां कर सकती है किनारा

LUCKNOW: सोमवार से शुरू होने वाले विधानसभा के मानसून सत्र में सदन का नजारा इस बार बदला नजर आएगा। पिछले कुछ दिनों के दौरान जिस तरह विधायकों ने बागी रुख अपनाते हुए दलबदल किया है, उसका असर देखने को मिल सकता है। दिल और दल बदलने वाले तमाम विधायक विरोधी पार्टियों के खेमे में दिखेंगे तो सत्र के दौरान इनकी विधायकी पर खतरा मंडराने के संकेत भी मिलने लगे हैं।

विधान परिषद चुनाव से पड़ी नींव

विधानसभा चुनाव से पहले नेताओं की निष्ठा बदलने का सिलसिला दो माह पहले हुए विधान परिषद चुनाव से शुरू हुआ था। क्रॉस वोटिंग से इसकी नींव पड़ी, बाद में दल बदलने का सिलसिला शुरू हो गया। अब तक 14 विधायक अपनी पार्टी को अलविदा बोलकर नये खेमे में आ चुके हैं। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस और बसपा को हुआ है। सत्र के दौरान ही विधानसभा में नेता विरोधी दल रहे स्वामी प्रसाद मौर्य की सदस्यता पर भी फैसला लिया जाना है। बसपा के नये विधायक दल के नेता गयाचरण दिनकर ने इस बाबत विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय से शिकायत की है।

कांग्रेस सबसे ज्यादा घाटे में

कांग्रेस पार्टी के सबसे अधिक छह विधायकों ने पाला बदला है। इसमें तीन बसपा में और तीन भाजपा में शामिल हुए हैं। 2012 में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 27 थी। दो सीटें कांग्रेस को उपचुनाव में मिलीं। 2012 में प्रतापगढ़ से जीत हासिल करने वाले प्रमोद तिवारी राज्यसभा गये तो उनकी बेटी आराधना मिश्रा उर्फ मोना उस सीट से निर्विरोध चुनकर आ गयीं। सहारनपुर की देवबंद सीट सपा के विधायक की मौत के बाद खाली हुई तो यहां से माविया अली जीत कर विधान सभा पहुंच गये। 2016 में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 27 से बढ़कर 28 हुई। लेकिन छह विधायकों के जाने के बाद यह संख्या 22 पर आकर रुक गयी है।

बीजेपी अभी दो के नुकसान में

बात अगर 2012 के इलेक्शन की हो तो बीजेपी को 47 सीटें मिलीं थीं। लेकिन 2014 के लोकसभा इलेक्शन में बीजेपी के नौ विधायक चुनाव लड़े और सांसद बन गये। बीजेपी विधायकों की संख्या घटकर 38 हो गयी। उप चुनाव में बीजेपी की नौ सीटों में से सात सीट पर सपा ने कब्जा कर लिया। बाद में सहारनपुर में हुए उपचुनाव में बीजेपी ने बाजी मारी जिससे उसकी सीटों की संख्या 41 हो गयी। लेकिन अब कांग्रेस के तीन, बीएसपी के दो और समाजवादी पार्टी के एक विधायक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। वहीं बीजेपी के विधायक विजय बहादुर यादव सपा में शामिल हो चुके हैं। वैसे तो इनकी सदस्यता दल बदल कानून के तहत चैलेंज की जाएंगी लेकिन पहले दिन यह सभी मेंबर में बीजेपी के खैमे में बैठकर बीजेपी की 2012 की स्थिति वापस ला देंगे।

बीएसपी के खेमे में खलबली

पिछले पांच साल में बीएसपी एक भी उपचुनाव नहीं लड़ीं। 2012 में बीएसपी के विधायकों की संख्या 80 थी। बीच में एक विधायक की सदस्यता राज्यपाल ने निरस्त कर दी थी लेकिन बाद में कोर्ट ने उस पर स्टे दे दिया। पिछले जून महीने में तृणमूल कांग्रेस के नेता सुदेश कुमार शर्मा बीएसपी में शामिल हो गये थे। जिससे बीएसपी की संख्या 81 हो गयी थी। अब स्थितियां बदल गयी हैं। बीएसपी ने लगभग आधा दर्जन विधायकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। स्वामी प्रसाद मौर्या पाला बदल चुके हैं वह अपने साथ दो और विधायकों को लेकर गये हैं। वहीं तीन दिन पहले नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कांग्रेस के चार विधायकों और समाजवादी पार्टी के एक विधायक को अपनी पाले में कर लिया। जिससे उनके विधायकों की संख्या 76 हो गयी। निकाले गये बागी विधायक जिन्होंने बीजेपी जॉइन नहीं की है वह फिलहाल निर्दल विधायकों के साथ बैठे दिखायी देंगे।

2012 से बेहतर सपा की सेहत

समाजवादी पार्टी 224 विधायकों के साथ सत्ता में आयी थी। सत्ता में आने के बाद उसे निर्दल विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया और रूबी सिंह के अलावा बरेली से इत्तेहाद ए मिल्लत काउंसिल के इकलौते विधायक शहजिल इस्लाम भी सपा के पाले में आ गये, जिससे उनकी संख्या 227 हो गयी। विधान परिषद चुनाव में सपा के चार विधायकों ने क्रास वोटिंग की। इसमें गुड्डू पंडित और उनके भाई मुकेश शर्मा, सीतापुर से विधायक रामपाल यादव और शेर बहादुर सिंह शामिल हैं। शेर बहादुर ने बीजेपी ज्वाइन कर ली है जबकि बाकी के तीन नेताओं ने अभी अपना पत्ता नहीं खोला है। मौजूदा स्थिति में सपा के विधायकों की संख्या तीन निर्दलीयों और दो पीस पार्टी के विधायकों को मिलाकर 230 है।

इनकी सदस्यता खतरे में

अब तक कांग्रेस के 6, बीएसपी के पांच,सपा के दो और बीजेपी के एक विधायक खुले तौर पर पाला बदल चुके हैं और अलग अलग पार्टियां जॉइन कर चुके हैं। इसमें स्वामी प्रसाद मौर्य भी शामिल हैं। अब इन नेताओं की सदस्यता खतरे में है। दलबदल कानून के तहत एक तिहाई से अधिक सदस्य अगर किसी दल से टूटकर दूसरे दल में जाते हैं तो वह दल बदल के कानून में नहीं आता है। अगर संख्या इससे कम होती है तो उसकी सदस्यता को खत्म करने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष के पास होता है। इसके लिए सम्बंधित सदस्य से स्पष्टीकरण लेने के बाद विधानसभा अध्यक्ष फैसला लेता है। जिन विधायकों की सदस्यता खतरे में है उनमें ये विधायक शामिल हैं।

1. स्वामी प्रसाद मौर्य (बसपा)

2. बाला प्रसाद अवस्थी (बसपा)

3. राजेश त्रिपाठी (बसपा)

4. छोटे लाल (बसपा)

5. विनय शाक्य (बसपा)

6. संजय जायसवाल (कांग्रेस)

7. विजय दूबे (कांग्रेस)

8. माधुरी वर्मा (कांग्रेस)

9. नवाब काजिम अली खां (कांग्रेस)

10. मोहम्मद मुस्लिम खां (कांग्रेस)

11 दिलनवाज आलम (कांग्रेस)

12. नवाजिश आलम (सपा)

13. शेर बहादुर सिंह (सपा)

14. विजय बहादुर यादव (बीजेपी)

2012 चुनाव के बाद की दलगत स्थिति

सपा-227

बसपा-80

भाजपा-47

कांग्रेस 28

आरएलडी 9

पीस पार्टी 4

निर्दल-4

अन्य 4

आज की स्थिति

सपा- 230

बसपा-76 (पांच निकाले गये पांच, पांच ने पार्टी छोड़ी और पांच ने ज्वाइन किया)

भाजपा-47 (2014 लोकसभा चुनाव में 9 सीट खाली हुई, उपचुनाव में दो पर ही जीत सकी, मौर्या समेत कांग्रेस,बीएसपी और एसपी के 6 विधायकों ने पार्टी ज्वाइन की)

कांग्रेस-23 (तीन विधायकों ने बीएसपी और तीन ने बीजेपी ज्वाइन की)

आरएलडी 8

पीसपार्टी 2

निर्दल 4

अन्य 4

बागी या पार्टी से निष्कासित-9 (बीएसपी से निकाले गये पांच और सपा के चार विधायकों ने अभी कोई पार्टी ज्वाइन नहीं की है)