तमाम जायदाद और धन कर दी दान

तुर्की में तीसरी शताब्दी के दौरान एक संत निकोलस हुए. वे अपने दयालु प्रवृत्ति के कारण लोकप्रिय थे. उन्होंने अपनी तमाम पुश्तैनी धन-दौलत दान कर दी थी. वे दुखी लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाना चाहते थे. वे जगह-जगह घूम कर उनकी समस्याओं को दूर करके उन्हें खुश करने की कोशिश करते रहते थे. गरीबों और दुखी लोगों की मदद के कारण वे किंवदंती बन चुके थे. उनका बच्चों के प्रति कुछ खास लगाव था.

joy of giving ने एक संत को बनाया सांता

मददगार संत की कहानी बनी प्रेरणा

उनकी मदद अब कहानी के रूप में लोगों की प्रेरणा स्रोत बन चुकी थी. लोग 6 दिसंबर को उनकी पुण्यतिथि मनाने लगे. जबान और जगह की वजह से उनका नाम पहले सिंतर क्लॉस और अब सांता क्लॉज के रूप में सामने आ गया. मॉडर्न सांता से उनकी वेशभूषा काफी मिलती थी. लोग उनके बर्थडे पर सफेद दाढ़ी लगाकर लाल कपड़े पहनकर बच्चों को गिफ्ट बांटते, जो आज भी प्रचलन में है. आज भी सांता हर जबान और जगह के बच्चों के लिए उत्सुकता, खुशी और जॉय ऑफ गिविंग का सिंबल बना हुआ है.

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कवि और कार्टूनिस्ट ने बनाया सांता

धीरे-धीरे सांता पूरे यूरोप में छा गए. लोग 6 दिसंबर को सांता बनते और बच्चों के बीच गिफ्ट बांटने का सिलसिला जो शुरू होता वह प्रभु यीशु मसीह के जन्म दिन क्रिसमस तक चलता. क्लेमेंट क्लार्क मूर ने अपनी तीन बेटियों के लिए 1822 में एक लंबी कविता लिखी `एन अकाउंट ऑफ ए विजिट फ्रॉम सेंट निकोलस'. कविता में सांता को लाल परिधान में सफेद दाढ़ी वाला हंसमुख बुजुर्ग बताया, जो रेंडियर स्लेज पर सवार होकर चिमनियों से घर में चुपके से आता है और दीवार पर टंगे जुराबों में बच्चों के लिए गिफ्ट छोड़ जाता है. यह कविता प्रकाशित हुई तो सांता अमेरिका में छा गए. बाद में जर्मन मूल के अमेरिकी कार्टूनिस्ट थॉमस नेस्ट 1863 की छवि गढ़ी. 1880 तक सांता के उस रूप से दुनिया परिचित हो चुकी, जिस रूप में आज हम उन्हें देखते हैं.