संजय उर्फ डॉली वैसे मूल रूप से मोदीनगर का रहने वाला है। लेकिन करियर मेरठ में ही बनाया। सातवीं पास संजय के सपने बड़े थे। कुछ-कुछ ओय लक्की जैसे। डिग्र्री नहीं थी, लेकिन हौसला था। संजय ने जुर्म के जरिये अपनी किस्मत बदलने की ठानी। डॉली से पूछो, पहली चेन कब लूटी तो याददाश्त पर जोर देते हुए कहता है, याद नहीं। बस इतना याद है बच्चा पार्क पर लूटी।

धंधे के गुर
हर गुर गुरू से सीखा जाता है। डॉली को भी शुरुआती दौर में गुरू मिले। पहली चेन लूटने से पहले उसे धंधे की सारी बारीकियां बताई गईं। सिखाने वालों ने बताया कि अगर फुर्ती से किया जाए, तो बहुत आसान काम है। महिला पैदल होगी, बस मछली की आंख की तरह उसकी चेन पर नजर रखनी है। गाड़ी इस स्पीड पर चलानी है कि न बहुत तेज हो और न बहुत धीमी। मोटरसाइकिल शिकार के बगल में लाकर बाइक चालक हलके से ब्रेक लेगा। सेकेंड के दसवें हिस्से के बराबर समय में चेन को एक बार में मुट्ठी में फंसाना है। चालक बाइक भगा देगा, तुम्हें चेन मुट्ठी में फंसते ही एक झटका मारना है। झटका कुछ इस अंदाज में मारना है कि चेन टूटे, लेकिन उसके दो टुकड़े न हो जाएं। इस सूरत में चेन का एक ही हिस्सा हाथ आएगा। बाकी बचा हिस्सा महिला के पास रह जाएगा। फरारी में एक अहम बात थी कि न ज्यादा भीड़ वाली सडक़ों पर जाना है, न सुनसान। बाइक बस जहां लूट की है, वहां तेजी से भगानी है। एक बार उस इलाके से बाहर आने के बाद स्पीड सामान्य हो, जिससे किसी का अनावश्यक ध्यान न जाए।

बस पहली बार
इन तमाम गुर को सीखने के बाद भी डॉली को पहली चेन लूटते समय थोड़ा डर लगा। उसने बच्चा पार्क पर एक महिला की चेन झपटी। ये उसकी पहली शिकार थी। चेन सोने की थी। कई तोले की। उसके बाद डॉली को लगा ये तो बहुत आसान है। खुद डॉली के शब्दों में, चेन लूट में एक वजह से और ज्यादा आसानी हुई। अधिकतर महिलाएं थोड़ा बहुत रोकर, शोर मचाकर घर चली जाती हैं। रिपोर्ट नहीं लिखाती।

कौन बनेगी शिकार
चेन लूट के लिए आइडियल शिकार की कुछ शर्तें हैं। गौर से पढि़ए क्योंकि अकेले डॉली इस तरह से शिकार नहीं पहचानता था। सभी चेन लुटेरे कमोबेश एक सी स्कूलिंग का नतीजा हैं। इनके गुर एक से, इनके वारदात को अंजाम देने का तरीका एक सा और शिकार को पहचानने का भी। डॉली ऐसी महिलाओं को अपना शिकार बनाता था जो पैदल होती थीं। खास बात ये कि डॉली या कोई भी लुटेरा मछली की आंख की तरह सिर्फ चेन देखता है। उसे महिला की कद-काठी से कोई मतलब नहीं। डॉली को सिर्फ चेन दिखने की देर होती। गले में जहां से चेन दिख रही होती वहीं झपट्टा मारता और चेन लूटकर फरार हो जाता।

रफ्तार जरूरी है
डॉली के धंधे में सारा काम रफ्तार का है। इसीलिए वो सिर्फ पॉवरफुल बाइकों का ही इस्तेमाल करता था। डॉली ने अधिकतर लूट में करिज्मा बाइक का इस्तेमाल किया। डॉली बताता है कि झपट्टा मारने के बाद तेजी से भागने के लिए ये बाइक सबसे मुफीद थी। हाई पिकअप के साथ गजब का बैलेंस भागने में मददगार साबित होता।

मुफीद वक्त
डॉली लूट के लिए सुबह का वक्त सबसे मुफीद मानता है। अमूमन सुबह नौ से 11 बजे तक वो अपना काम निपटा लेता था। डॉली बताता है कि इस वक्त सभी को काम पर जाने की जल्दी होती है। लूट के बाद पब्लिक ज्यादा ध्यान नहीं देती। इससे भागने में आसानी होती थी। वैसे सुबह-सुबह शरीर में फुर्ती भी रहती है। डॉली घर से पूजा करके निकलता था और ज्यादा से ज्यादा 12 बजे तक काम निपटाकर सीधा घर पहुंच जाता था। डॉली का ठिकाना सिर्फ एक ही था। मोदीनगर में उसका घर। लूट को अंजाम देकर वो सीधा घर भागता था।

लूट के बाद
लूट करने के बाद डॉली कुछ दिनों के लिए आराम करता था। उसका एक ही भरोसे का आदमी था जिसे वो चेन बेचता। मलियाना में लक्ष्मी ज्वेलर्स के यहां लूट का सारा माल खपा देता था। अमूमन एक तोले की चेन के यहां आठ से नौ हजार रुपए तक मिल जाते थे। डॉली ने कुछ चेन गंगानगर के सगुन ज्वेलर्स को भी बेचीं।

पांच सावधानियां
1- लुटेरे चेन दिखते ही उस पर झपट्टा मारते हैं। इसलिए गले को ढककर रखें। स्टोल या चुन्नी से गले को कवर रखें।
2- लूट होने के बाद घटना की रिपोर्ट जरूर लिखवाएं। मामले की रिपोर्ट दर्ज नहीं होने पर लुटेरा बेखौफ हो जाता है।
3- पैदल या रिक्शा से जाते वक्त ज्यादा सावधानी बरतें।
4- कीमती ज्वेलरी पहनने से बेहतर है आर्टिफिशियल पहनें। फंक्शन में जा रहे हैं तो ज्वेलरी रखकर ले जाएं.   
5- लूट होने के बाद घबराएं नहीं। बाइक को पहचानने की कोशिश करें। हो सके तो नंबर नोट कर लें। बदमाश का हुलिया देख पाएं तो और बेहतर होगा।