जे. कृष्णमूर्ति हम सोचते हैं कि सजगता, ध्यान आदि रहस्यमयी चीजें हैं, जिनका अभ्यास हमें जरूर करना चाहिए। इसके लिए हम बार-बार एक जगह इकट्ठे होते हैं, लेकिन हम ध्यान नहीं कर पाते हैं। इस तरीके से व्यक्ति कभी होशयुक्त नहीं हो पाता है। यदि आप बाहरी चीजों के प्रति होशयुक्त हो जाते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप ध्यान लगाने में समर्थ हो रहे हैं। यहां बाहरी चीजों का मतलब है-दूर तक जा रही सड़क के सर्पीले घुमावदार लहराव, वृक्ष का आकार, किसी के पहनावे का रंग, नीले आसमान की पृष्ठभूमि में किसी पर्वत का रेखाचित्र, किसी फूल का सौंदर्य, पृथ्वी की सुंदरता, किसी पास से गुजरते व्यक्ति के चेहरे पर दुखदर्द के चिह्न आदि। 

इन सभी को बिना किसी आलोचना के पहचानने में हमें समर्थ होना होगा। इससे आप आंतरिक अंतर्मुखी सजगता की लहर पर सवार हो जाते हैं। आप अपनी ही प्रतिक्रियाओं, क्षुद्रता, ईष्र्यालुपन के प्रति भी होशवान हो सकते हैं। बाहरी सजगता से आप आंतरिक सजगता की ओर बढ़ते हैं। यदि आप बाह्य चीजों के प्रति सजग नहीं होते हैं, तो आपका अंातरिक सजगता को हासिल करना असंभव है।

जे. कृष्णमूर्ति हम सोचते हैं कि सजगता, ध्यान आदि रहस्यमयी चीजें हैं, जिनका अभ्यास हमें जरूर करना चाहिए। इसके लिए हम बार-बार एक जगह इकट्ठे होते हैं, लेकिन हम ध्यान नहीं कर पाते हैं। इस तरीके से व्यक्ति कभी होशयुक्त नहीं हो पाता है। यदि आप बाहरी चीजों के प्रति होशयुक्त हो जाते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप ध्यान लगाने में समर्थ हो रहे हैं। यहां बाहरी चीजों का मतलब है-दूर तक जा रही सड़क के सर्पीले घुमावदार लहराव, वृक्ष का आकार, किसी के पहनावे का रंग, नीले आसमान की पृष्ठभूमि में किसी पर्वत का रेखाचित्र, किसी फूल का सौंदर्य, पृथ्वी की सुंदरता, किसी पास से गुजरते व्यक्ति के चेहरे पर दुखदर्द के चिह्न आदि। 

इन सभी को बिना किसी आलोचना के पहचानने में हमें समर्थ होना होगा। इससे आप आंतरिक अंतर्मुखी सजगता की लहर पर सवार हो जाते हैं। आप अपनी ही प्रतिक्रियाओं, क्षुद्रता, ईष्र्यालुपन के प्रति भी होशवान हो सकते हैं। बाहरी सजगता से आप आंतरिक सजगता की ओर बढ़ते हैं। यदि आप बाह्य चीजों के प्रति सजग नहीं होते हैं, तो आपका अंातरिक सजगता को हासिल करना असंभव है।

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