आसान नहीं था बचपन
सात भाई-बहनों के किसान परिवार में जन्मे इमरान का बचपन आसान नहीं रहा। बाल मन साइंटिस्ट बनने का ख्वाब बुन रहा था। वह आगे पढ़ना चाहते थे। दूसरी ओर सीमित आमदनी वाला परिवार उन्हें सरकारी नौकरी में देखना चाहता था। कभी फार्म भरने तक के पैसे नहीं होते। शादी भी जल्दी ही हो गई। जबकि अभी वह जिंदगी को समझ ही रहे थे। बारहवीं पास करने के बाद 1999 में उन्होंने टीचर्स ट्रेनिंग परीक्षा पास की। फिर सरकारी स्कूल में टीचर हो गए। पढ़ाई जारी रही।

2009 में हुई कंप्यूटर से दोस्ती
इमरान की कंप्यूटर से करीबी मुलाकात और इंटरनेट से दोस्ती 2009 में हुई। छोटा भाई कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई पूरी होने के बाद किताबें व कंप्यूटर घर पर डाल गया था। फिर एक दिन भाई से उन्होंने कहा इसे लगा दे, जरा हम भी देख लिया करें, यह क्या है। वह बताते हैं, शुरू के छह महीने हमने खूब गेम खेले। फिर मन में वेबसाइट बनाने का ख्याल आया। भाई की किताबों व गूगल की मदद से यह कर भी लिया। टीचर होने के नाते लगा कि पढ़ाई-लिखाई से जुड़ा कुछ करना चाहिए। तो उन्होंने जीकेटॉक्स डॉट कॉम बनाई।  

कलक्टर ने बुलाया तो लगा डर
बात 2011 की है। उनके पास जिला कलक्टर आशुतोष जी पेडनेकर का बुलावा आया। इस पर इमरान पहली प्रतिक्रिया कुछ इस तरह थी। वह बताते हैं कि मैं तो डर गया था कि कलक्टर का फोन आया। कहीं कोई शिकायत तो नहीं। जबकि उन्हें शाबासी देने के लिए बुलाया गया था। बाद में उन्होंने ही इमरान को एंड्रायड एप्लीकेशन डेवलप करने के लिए प्रेरित किया।

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बच्चों के चहेते हैं इमरान सर
जब हमने उनसे यह सवाल किया कि वह स्कूल में कैसे मास्टर के तौर पर जाने जाते हैं, सख्त या फिर नरम दिल। वह हंसते हुए कहते हैं, सॉफ्ट। स्कूल में वह बच्चों के चहेते इमरान सर हैं। वह बताते हैं, उनके स्कूल में क्लास तीन या चार का बच्चा भी एक्सेल पर ग्राफ बनाकर दिखा देगा। कंप्यूटर क्लास वन का स्टूडेंट भी चला लेगा।

रोजमर्रा में काम आने वाली चीजों पर जोर

इमरान का जोर रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाली नॉलेज पर है। यह समझाने के लिए वह मैटरनल केयर पर बनाए अपने एप का जिक्र करते हैं। अपने काम व भविष्य की योजना के बारे में सवाल पर उनका जवाब था कि यह सिर्फ एक परसेंट है अभी 99 परसेंट काम बाकी है। उनका सपना ऑनलाइन फ्री ट्यूटोरियल उपलब्ध कराने वाली खान अकादमी जैसा लेकिन बेहतर हिंदी माध्यम में करने का है। उनके मुताबिक यह जरूरी नहीं कि बच्चा स्कूल जाकर ही कुछ सीखे।

पैर जमीन पर रखने का आदी

पैर जमीन पर रखने के आदी इस टीचर की निजी जिंदगी में आज भी कुछ नहीं बदला है। सिर्फ एक चीज को छोड़कर। वह बताते हैं कि पहले आसपास वाले सोचते रहते थे कि कंप्यूटर पर यह दिन भर करता क्या रहता है। अब वह भी मानते हैं कि जरूर, वह कुछ अच्छा कर रहे थे। लोग अब उनके साथ सेल्फी लेना चाहते हैं। बच्चों के बारे में सवाल पर तीन बच्चों के पिता इमरान कुछ देर सोचते हैं। फिर जवाब देते हुए कहते हैं कि अगर उनमें काबिलियत हुई तो कुछ बन जाएंगे। काबिल बनना जरूरी है।

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