बनारस पीएम नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। ये शहर पहले से ही अन्नक्षेत्र माना जाता है। यानि यहां कोई भूखा नहीं रहता। मगर रामनगर के सूजाबाद में फांकाकशी से बेहाल एक फैमिली के तीन मेम्बर्स को एक साथ जहर खाने को मजबूर होना पड़ा। रोज-रोज रोटी का संघर्ष अब हॉस्पिटल में तीनों के लिए जिंदगी और मौत के बीच का संघर्ष बन चुका है। मोदी जी, अगर आप तक ये खबर पहुंचे तो आप भी देखिये कैसे गरीबी और भूख के आगे दम तोड़ रही है जिंदगी

-रामनगर के सूजाबाद में एक परिवार के तीन सदस्यों ने खाया जहर

-गंभीर हालत मां, बेटा और बहू मंडलीय हॉस्पिटल में एडमिट

-अच्छी जिंदगी का सपना लेकर गोरखपुर से आया था परिवार

VARANASI:

बनारस बड़ा शहर है। यहां कोई भूखे पेट नहीं सोता। मुफलिसी से जूझ रहे एक परिवार ने भी यह सुन रखा था। अच्छी जिंदगी की सपना पाले सभी गोरखपुर से बनारस आ पहुंचे। बदकिस्मती ने उनका यहां भी पीछा नहीं छोड़ा। दो वक्त की रोटी की मशक्कत यहां भी जारी रही। नंगी जमीन पर सोना नहीं छूटा। जिंदगी से हार मान चुके इस फैमिली ने अपने लिए बेहद खौफनाक रास्ता चुना। सोमवार को बेटे-बहू के बाद मां ने जहर खा लिया। पड़ोसियों की सूचना पर पहुंची पुलिस ने तीनों को मंडलीय हॉस्पिटल में एडमिट कराया है। पीएम के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा रामनगर के सूजाबाद में हुई इस घटना से पूरा एरिया अवाक है।

सपने लेकर आए थे शहर

गोरखपुर का रहन वाले शिव प्रकाश तिवारी गरीबी से जूझ रहा था। होटल में काम करने से चंद रुपये मिलते थे, जो परिवार का पेट भरने के पर्याप्त नहीं थे। पत्नी रत्नावली (भ्भ् वर्ष) और बेटा रोशन (फ्0 वर्ष) मजदूरी करके हाथ बंटाते थे। बहू प्रियंका तिवारी (ख्भ् वर्ष) और बेटी शिवानी (क्भ् वर्ष) भी अपनी तरह से सहयोग की कोशिश करतीं लेकिन गरीबी थी कि पीछा नहीं छोड़ रही थी। अच्छी जिंदगी का सपना संजोये दो साल पहले रोशन अपनी वाइफ प्रियंका, बेटी शिवानी और मां रत्‍‌नावली के साथ रामनगर के सूजाबाद में आ गया। ये सभी मदन झा के मकान में किराये का कमरा लेकर रहने लगे। रत्नावली आसपास के घरों में बर्तन साफ करने लगी। रोशन भी रोज मजदूरी करने लगा।

कोई न हुआ अपना तो टूटा सपना

इस फैमिली ने अपनी जरूरतों को बहुत समेट रखा था। आठ गुणे दस फिट के कच्ची जमीन और बिना प्लास्टर की दीवारों वाले एक कमरे में गुजर-बसर कर रहे थे। बाहर का होने की वजह से परिवार का राशन कार्ड नहीं बन पाया था। हर दाना महंगे दाम पर खरीदकर लाना पड़ता था। पड़ोसी भी मदद के नाम पर मुंह मोड़े रहते थे। लाखों की आबादी के बीच कोई ऐसा नहीं था जिसके सामने जरूरतों के लिए हाथ फैलाया जाए। वक्त बीतने के साथ परिवार का सब्र भी टूटने लगा। रुपये के लिए आपस में भी किचकिच शुरू हो गयी। रोशन को कई बार काम नहीं मिलता तो मां से रुपये मांगता था। उसके पास भी रुपये नहीं होते थे।

मौत से मुक्ति की आस

रविवार की रात एक बार फिर मां और बेटे की बीच रुपये को लेकर किचकिच हुई। बताते हैं कि रविवार की रात तंगहाली की वजह से सभी आधा पेट खाकर सोये थे। इस पर मां से हुई किचकिच से दु:खी रोशन ने आधी रात के वक्त जहरीली पदार्थ खा लिया। इसका पता चलते ही बेसुध हुई प्रियंका ने भी मौत को गले लगाने की नीयत जहर खा लिया। दोनों की हालत बिगड़ने लगी। प्रियंका ने ही अपनी सास रत्नावली को जहर खाने की जानकारी थी। इस पर रत्नावली ने भी पुडि़या में बचे जहरीले पदार्थ को हलक के नीचे उतार लिया। तीनों जमीन पर गिर तड़पने लगे। शिवानी उनकी हालत को देखकर घबरा गयी। शिवानी ने शोर मचाकर पड़ोसियों को बुलाया।

रोशन की हालत बेहद नाजुक

(लेटेस्ट अपडेट)

जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रहे तीन लोगों के देखने के बावजूद किसी ने मदद करने के बजाय पुलिस को कंट्रोल रूम में इंफार्मेशन दी। थोड़ी देर में रामनगर पुलिस पहुंची। तीनों को एम्बुलेंस से कबीरचौरा स्थित मंडलीय हॉस्पिटल में एडमिट कराया। डॉक्टर्स का कहना है कि रोशन की हालत सबसे ज्यादा नाजुक है। क्योंकि सबसे पहले उसने ही जहर खाया था। प्रियंका की हालत भी बहुत अच्छी नहीं।

मासूम शिवानी पर आई बड़ी जिम्मेदारी

(द अदर साइड)

मां-बाप के साथ दादी की तीमारदारी की जिम्मेदारी अब क्भ् साल की शिवानी पर है। उसे कोई ढांढस बंधाने वाला भी नहीं। वह बेड के पास जमीन पर बेसुध पड़ी है। बिस्तर पर पड़ी मां, भाई और भाभी को निहारती रहती है। हॉस्पिटल स्टाफ को नम आंखों से इस उम्मीद से देखती है कि काश वो उसके परिवार को बचाने का करिश्मा कर दें। रामनगर स्थित में कमरे पर ताला चढ़ा हुआ है। शिवानी के पास इतने रुपये भी नहीं कि खुद का पेट भरने का इंतजाम कर सके। थोड़ा बहुत अनाज घर में रखा है लेकिन वहां तक जाने के लिए भी उसके पास रुपये भी नहीं हैं।