पेरेंट्स की एब्सेंस में बच्चे वीडियो गेम खेलने लगते हैं, लेकिन ये एडिक्शन मां के लाडले को बिगाड़ रहा है। एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार विडियो गेम्स से बच्चे वॉयलेंट होते जा रहे हैं।

यहां हुआ सर्वे
दिल्ली और एनसीआर, मुम्बई, गोवा, कोचीन, चेन्नई, अहमदाबाद, हैदराबाद, इंदौर, पटना, पूना, चंडीगढ़ और देहरादून में एसोचैम की तरफ से एक हजार टीन एजर्स और एक हजार पेरेंट्स पर ये सर्वे किया गया।

दिन में चार घंटे
रिपोर्ट के अनुसार पेरेंट्स के घर पर न होने से एनसीआर सिटीज के 75 परसेंट बच्चे वॉयलेंट वीडियो गेम्स खेलते हैं। जिससे वो एग्रेसिव और वॉयलेंट होते जा रहे हैं। पांच साल की उम्र तक के बच्चे दिन में दो घंटे और 15 साल की उम्र के बच्चे दिन में कम से कम चार घंटे गेम्स को दे रहे हैं।

ऑनलाइन गेम्स
66 परसेंट बच्चों के पास खेलने के लिए कोई साथी नहीं है। इसलिए वो अकेलेपन का शिकार होकर हिंसक गेम्स खेलते हैं। 32 परसेंट घर में मौजूद अन्य लोगों के साथ खेलते हैं। दो परसेंट बच्चे हफ्ते में कम से कम एक बार ऑन लाइन गेम खेलते हैं।

संवेदनहीनता
एसोचैम के सेकेट्री जनरल डीएस रावत का कहना है कि वॉयलेंस एक्सपोजर से बच्चों में इमोशंस कम हो रहे हैं। और वॉयलेंट चीजों की तरफ बच्चे आसानी से एट्रेक्ट हो जाते हैं। एसोचैम हेल्थ कमेटी के चेयरमेन डॉ। बीके राव का कहना है कि टीनएर्जस असलियत और फैंटेसी में भेद नहीं कर पाते है। इस कारण बच्चे संवेदनहीन होते जा रहे हैं।

ये हैं मोस्ट वॉयलेंट गेम
ग्रेंड थेफ्ट ऑटो
मोर्टल कॉमबेट
मॉर्डन वॉरफेयर
पोस्टल टू
मेन हंट
मेड वल्र्ड
थ्रील किल
गियर्स ऑफ वार टू
गॉड ऑफ
सॉल्जर ऑफ फॉर्चयून
एनएफएस

जो बच्चा देखता है वही सीखता है। गेम्स में भी वही होता है। वॉयलेंट गेम्स देखकर वो भी वॉयलेंट हो जाते है। इसी वजह से सोसाइटी में वॉयलेंस बढ़ती जा रही है। छोटे-छोटे बच्चों को इन सब चीजों से दूर रखना चाहिए। ये बिलकुल भी अच्छा नहीं है न ही बच्चों के लिए ना ही सोसाइटी के लिए।
पूनम देवदत्त, मनोवैज्ञानिक और सीबीएसई काउंसलर

बच्चे वॉयलेंट गेम्स ही पसंद करते हैं। इनमें स्कोरिंग भी विलेन को मारने पर ही बढ़ती है। स्कोर बढऩे पर बच्चे को मजा आता है। और धीरे-धीरे यही वॉयलेंस बच्चों के बिहेवियर में आती है। कार्टून, गेम्स, मूवी का बच्चों पर इंपैक्ट बहुत होता है। पेरेंट्स को इन सब चीजों से बच्चों को दूर रखना चाहिए। गेम्स खेलने भी हो तो कार या बाइक गेम्स तक ही रखना चाहिए।
डॉ। विकास सैनी, मनोवैज्ञानिक

ये हैं मेन प्वाइंट
- 65 परसेंट बच्चों के कमरे में कंप्यूटर है।
- 66 बच्चे अकेले खेलते हैं।
- 2 परसेंट हर हफ्ते ऑन लाइन गेम खेलते है।
- 60-80 परसेंट बच्चे एग्रेसिव हो चुके हैं।
- 86 परसेंट पेरेंट्स का कहना है कि नई टेक्नोलाजी के कारण हिंसक गेम्स ज्यादा बिक रहे हैं।
- बच्चे जबरन दिन में दो से चार घंटे तक गेम खेलते हैं।
- इस कारण 52 परसेंट बच्चे चिड़चिड़े हो गए।
- करीब 70 परसेंट बच्चों ने आउट डोर गेम खेलना बंद कर दिया है।
- 42 परसेंट बच्चे तो होम वर्क छोड़ सिर्फ कार्टून देखते हैं या गेम खेलते हैं
- रिपोर्ट के मुताबिक 90 परसेंट ने कहा कि ऑन लाइन गेम्स दिन पर दिन और हिंसक होते जा रहे है।
- 48 परसेंट बच्चों ने कहा कि वो वॉयलेंट गेम्स खेलना नहीं चाहते पर वो खुद कर रोक नहीं पाते।
- 68 परसेंट बच्चों ने आउट डोर गेम्स खेलना बंद कर दिया है।
- 56 परसेंट बच्चे मानते हैं कि वो खेलना शुरु करते हैं तो कई घंटे तक खेलते रहते हैं।