PRAYAGRAJ: युवाओं के नाम पर ही सरकारें सत्ता में आती हैं. सरकार बनने के बाद युवाओं को जाति, धर्म और क्षेत्रवाद के नाम पर अलग-थलग कर दिया जाता है. यह सिलसिला दशकों से नासूर बना हुआ है. युवाओं को बरगलाया जाता है आधी-आबादी की बात करने वाली पार्टियां किसी भी लेवल पर लड़कियों या महिलाओं के साथ हो रही घटनाओं को रोकने के लिए कारगर उपाय नहीं निकालती है. इसके चलते इस देश के युवाओं की दशा बिगड़ जाती है और उन्हें दिशा दिखाने के नाम पर सत्ता हासिल करने का खेल खेला जाता है. यह दर्द रविवार को ममफोर्डगंज स्थित द काउंसिल संस्थान में आयोजित दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के मिलेनियल्स स्पीक में प्रतियोगी युवाओं ने रोजगार, उनके भविष्य और क्वालिटी एजुकेशन जैसे मुद्दे पर उभर कर सामने आया.

लागू हो यूपीएससी का सिस्टम

बातचीत में युवाओं ने सिविल सर्विसेज से लेकर बैंक, एसएससी व स्टेट लेवल की अन्य भर्ती परीक्षाओं में पिछले बीस वर्षो से लेट-लतीफी पर सरकारी सिस्टम पर निशाना साधा. युवाओं ने दो-टूक कहा कि युवाओं को दिशा नहीं दिखाई जाएगी तो उनकी दशा खराब हो सकती है. कोर इश्यू यही है कि इस देश में युवा बहुत ज्यादा है. क्या सरकार ऐसे युवाओं का डाटा बेस नहीं तैयार कर सकती है. इस पर आज तक किसी भी राजनीतिक पार्टी ने मंथन नहीं किया है.

सतमोला खाओ, कुछ भी पचाओ

आम जनमानस की न तो आय में वृद्धि होती है और न उनका आशियाना ठीक से तैयार हो पाता है. इसके विपरीत जो व्यक्ति किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ता उसकी हैसियत पांच वर्षो में कई गुना बढ़ जाती है. प्रतियोगी छात्र पवन कुमार त्रिपाठी ने कहा कि यह ऐसा मसला है जो सीधे जनता को प्रभावित करता है. उसके मन में सवाल कौंधता रहता है कि फलां व्यक्ति किस मशीन के सहारे पांच वर्षो में करोड़ों का आदमी बन जाता है.

वर्जन

हम एजुकेटेड हैं तो हमें खुद आगे बढ़कर मंच ढूंढना चाहिए. यही हम सब नहीं कर पाते हैं. देश की युवा पीढ़ी इसी परेशानी से जूझ रही है. हर कोई अपने-अपने हिसाब से सोचता है. जिसका फायदा वर्षो से राजनैतिक पार्टियां उठाती आई हैं.

शालिनी साहू

संघ लोक सेवा आयोग के पैटर्न पर क्यों नहीं अन्य भर्ती परीक्षाएं आयोजित कराई जाती है. इस देश में जितना मजाक युवाओं के साथ पार्टियां करती आ रही है. उसका अंत होता नहीं दिख रहा है. सिर्फ चुनावों के समय ही पारदर्शिता, जांच कराना जैसी बातों से युवाओं को बरगलाया जाता है.

कौशल सिंह

हम खुद राजनैतिक दलों के चक्रव्यूह में फंसने का काम करते हैं. जिस उम्र में अपना भविष्य बनाने की सोचना चाहिए उस दौर में युवाओं को कभी धर्म तो कभी जाति के नाम पर बांटकर पार्टियां अपना उल्लू सीधा करने का काम करती है. इस देश में राइट टू रिकाल का अधिकार दिया जाना चाहिए.

सतीश कुमार

क्वॉलिटी एजुकेशन के नाम पर मोटी फीस वसूलने का काम होता है. यह आम आदमी के वश के बाहर होती है. अगर प्राइमरी स्तर से ही ढांचा दुरुस्त कर दिया जाए शिक्षा का स्तर बेहतर हो सकता है. खासतौर से शिक्षकों से शिक्षण कार्य के अतिरिक्त कोई अन्य कार्य न कराया जाए.

महेश सिंह

योजना बनाने और उसका ढिंढोरा पीटने से इस देश में सुधार नहीं आने वाला है. ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य और पानी की समस्या का समाचार दिखाई देता है. सत्ता हासिल करने की चाह में पार्टियों ने हमेशा जनमानस के साथ खिलवाड़ किया है.

विनोद कुमार पाल

इस देश में युवाओं को सबसे ज्यादा छलने का काम राजनैतिक पार्टियों ने किया है. चाहे रोजगार देने की बात हो या फिर मूलभूत सुविधाएं देने का मसला हो. बातें लम्बी चौड़ी और हकीकत में इतना कि जो कार्य किया जाता है उसमें भी भ्रष्टाचार सामने आ जाता है.

अमित रावत