टॉवल चोर
भारतीय रेल में एसी कोच के फस्र्ट, सेकेंड और थर्ड क्लास में मिलने वाले बेड रोल में दो चादरें, एक तकिया, एक कंबल और एक हैंड टॉवल शामिल होती हैं। लेकिन फस्र्ट एसी को छोडक़र बाकी कैटेगरीज में टॉवल देना तकरीबन बंद कर दिया गया है। क्योंकि पैसेंजर्स कोच में मिलने वाली टॉवल को अपने साथ ही लेकर चलते बनते हैं। और उसकी भरपाई कोच अटेंडेंट को अपनी सैलरी कटवाकर करनी पड़ती है.
जो मिल गया सो अपना
टॉवल तो थोड़ा छोटा है, कुछ समझदार यात्री चादरों पर भी हाथ साफ कर देते हैं। मेरठ सिटी स्टेशन से नौचंदी और नीमच एक्सप्रेस में बेडिंग चढ़ाई जाती है। ट्रेन के हर फेरे में 4-5 बेडशीट्स, 2-3 पिलो कवर और तकरीबन 10-15 हैंड टॉवल कम हो जाते हैं। यहां तक की फस्र्ट एसी में लगी पेंटिंग्स भी चोरी चली जाती हैं। बेडिंग की पूरी जिम्मेदारी कोच अटेंडेंट की होती है। इसलिए उसे अपनी सैलरी कटवाकर इस नुकसान की भरपाई करनी पड़ती है.
मॉल में चोर
पीवीएस मॉल स्थित बिग बाजार भी चोरियों से अछूता नहीं है। यहां भी चोर अपने कारनामे करने से बाज नहीं आते। यहां सबसे ज्यादा चोरी की मार पड़ती है कॉस्मेटिक्स और टीशर्ट पर। महिलाएं छोटे-छोटे कॉस्मेटिक्स पर्स में डाल कर चलती बनती हैं तो लडक़े अपनी शर्ट के नीचे टीशर्ट को पहन कर निकल लेते हैं। हालांकि अब चेंजिंग रूम में घुसने से पहले टोकन दिया जाता है। जिससे पता चल जाता है कि आप कितने कपड़े लेकर अंदर गए और बाहर आकर कितने वापस किए। उसी तरह गढ़ रोड स्थित विशाल मेगामार्ट भी चोरियों का शिकार है। स्टोर में कस्टमर्स पर नजर रखने के लिए जगह-जगह सर्विलांस कैमरे लगाए गए हैं और मेटल डिटेक्टर है। लेकिन फिर भी चोरियां हो ही जाती हैं.
पैंठ बाजार के चोर
लालकुर्ती पैंठ बाजार के व्यापारी हर रोज अपने यहां होने वाली चोरियों से जूझते हैं। जरा सी निगाह बची नहीं कि सामान गायब। छोटे-मोटे कपड़ों से लेकर बड़ी-बड़ी साडिय़ों तक सब एक झटके में साफ हो जाते हैं। संयुक्त पैंठ व्यापार समिति के सचिव राजेंद्र कुमार की पैंठ में अपनी साडिय़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि बातों-बातों में ग्राहक साडिय़ों के कई-कई डिब्बे एक साथ पार कर देते हैं। पैंठ में चोरी करने वालों में महिलाएं ज्यादा होती हैं। कई बार पकड़ी भी जाती हैं, लेकिन चोरियों में कोई सुधार नहीं आया है। हर रोज पैंठ में आठ-दस चोरियां हो ही जाती हैं.
आखिर क्यों करते हैं चोरी
मजे के लिए चोरी: अच्छे घरों के अधिकांश लोग सिर्फ मजे के लिए चोरी करते हैं। उन्हें ऐसा करने में एक सैटिस्फैक्शन मिलता है। जबकि कॉलेज गोइंग यूथ अपनी हाई-फाई लाइफ स्टाइल को मेनटेन करने के लिए चोरी करता है.
साइकोलॉजिकल डिस्ऑर्डर: चोरी करना एक साइकोलॉजिकल डिस्ऑर्डर भी है जिसे क्लेप्टोमेनिया कहते हैं। इसमें पेशेंट को कुछ न कुछ चुराने की आदत पड़ जाती है। अगर उसके कुछ दिन बिना चोरी के बीत जाएं तो वो असहज महसूस करने लगता है। ये बीमारी बचपन में हो जाती है और अगर इस पर ध्यान न दिया जाए तो बड़े होने तक बनी रहती है।
अनजाने में चोरी: कुछ चोरियां अनजाने में हो जाती हैं। इसमें व्यक्ति किसी चीज को देखते-देखते अपने साथ लेकर चल देता है। उसे इस बात का आभास नहीं हो पाता कि उसने चोरी कर ली है। पकड़े जाने पर वो काफी शर्मिंदा महसूस करता है.

'एसी कंपार्टमेंट्स की बेडिंग अक्सर घट जाती है। इसमें कोच अटेंडेंट की गलती मानी जाती है, लेकिन असल कारण यही है कि पैसेंजर्स बेडिंग की चोरी कर लेते हैं.'
-टीपी सिंह, कोचिंग डिपो ऑफिसर, सिटी स्टेशन

'टैग सेंसर से चोरों को पकडऩा आसान हुआ है, लेकिन फिर भी चोरियों पर सौ फीसदी रोक नहीं लग पाई है.'
-संदीप कुमार, एडमिनिस्टे्रटर, बिग बाजार, पीवीएस मॉल

'अक्सर चोरी करने वाले अच्छे घरों के ही लोग होते हैं, लेकिन उन्हें ऐसा करने में एक सैटिस्फैक्शन मिलता है और मजा आता है.'
-अरुण दास, स्टोर मैनेजर, विशाल मेगामार्ट, गढ़ रोड