VRINDAVAN (18 Jan.): वृंदावन में एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां विराजे ठाकुरजी साल में अनेक बार ब्याह रचाते हैं। विवाह का यह कार्यक्रम किसी उत्सव से कम नहीं होता है। हजारों लोगों की मौजूदगी में ठा। राधाबल्लभ पगड़ी बांध मंत्रों के साथ फेरे भी लेते हैं। जिन्हें देख भक्त निहाल हो उठते हैं।

चार सौ साल पुरानी है प्रथा

मंदिर के सेवायतों के अनुसार श्रीराधाबल्लभ लाल के ब्याह (व्याहुआ) की परंपरा चार सौ साल पुरानी है। इसमें ठाकुरजी अपने स्थान को बदलकर बाहर आते हैं। इस दौरान बाकायदे विवाह के अनुरूप मंत्रोच्चार आदि सारे कार्य होते हैं। विवाह के पूर्व इसका न्यौता (निमंत्रण) यजमानों को देश में और देश के बाहर विदेशों तक भेजा जाता है। हालांकि अधिकांशत: देशी भक्त ही इसमें शामिल होते हैं। कई यजमान स्वयं ठाकुरजी को दूल्हे के वेष में देखने को स्वयं अपनी ओर से भी विवाह आयोजन कराते हैं। सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार तिथि और नक्षत्रों के अनुसार विवाह का आयोजन किया जाता है।

कई बार मनती है होली

मंदिर की अन्य अनूठी परंपराओं में होली

और दीपावली का पर्व भी मनाया जाता

है। होली यहां साल में कई बार मनाया

जाता है। होली के अवसार पर हफ्ते भर

तक रंगों की बौछार ठाकुरजी (ठाकुरजी की ओर से सेवायत)करते हैं। दीपावली पर्व भी यहां कई-कई दिनों तक मनाया जाता है। बिना पर्व या पर्व के आसपास कभी भी यह उत्सव ठाकुरजी को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है।

बाल भाव में होती है सेवा

मंदिर के सेवायत मोहित मराल गोस्वामी का कहना हैं कि वृंदावन में ठा। राधाबल्लभ लाल की सेवा बाल भाव में होती हैं। उन्हें प्रसन्न रखने के लिए व्याहुआ, होली और दीपावली आदि अनेक पर्व साल में कई-कई बार महोत्सव के रूप में मनाये जाते हैं। होली मनाने को मंदिर में रंगीन फव्वारा भी लगाया जाता है। जब कि दीपावली पर फूलझड़ी, अनार, राकेट आदि बिना धमाके वाले पटाखे चलाए जाते हैं।