Syllabus ही ऐसा है
यूपी बोर्ड हो या सीबीएसई या फिर आईसीएसई बोर्ड सभी का सिलेबस ही ऐसा है कि अच्छे माक्र्स के लिए बच्चों पर पढ़ाई का प्रेशर बनाना जरूरी हो गया है। बोर्ड ने ग्रेडिंग सिस्टम जरूर लागू कर दिया, लेकिन कोर्स में कोई तब्दीली नहीं की। नतीजा एग्जाम पास करने के लिए स्टूडेंट्स पर प्रेशर पहले की तरह ही है। सेंटर ऑफ बिहैवियरल एंड कॉग्नेटिव साइंस की न्यूरो साइकोलॉजी की एक्सपर्ट डॉ। भूमिका भी इस बात से इत्तेफाक रखती हैं। फिर भी वे बच्चों पर पढ़ाई के लिए प्रेशर बनाने से बचने का राय देती हैं.

पहले बच्चे का attitude समझें
डॉ। भूमिका पैरेंट्स को सजेस्ट करती हैं कि पूरी कोशिश करें कि बच्चे पर पढ़ाई का प्रेशर न बढ़े। वह एग्जाम की प्रिपरेशन किस तरह से कर रहा है? इसके लिए केवल उस पर नजर रखें। समय-समय पर उसे केवल सजेस्ट करें। ऐसा लगता है कि इससे काम नहीं चलेगा तो फिर पढ़ाई का प्रेशर बनाने से पहले बच्चे की पर्सनैलिटी व उसके एटीट्यूड को समझें। उसके बाद ही उस पर पढ़ाई का प्रेशर बनाएं। ऐसा भी हो सकता है कि उस पर निगेटिव इफेक्ट पड़े और उसके पेपर और खराब हो जाएं.

Friend बनें dictator नहीं 
स्कूल और कोचिंग में ज्यादातर टाइम बिताने के बाद बच्चे खुद इस स्थिति में नहीं रह जाते कि वे घर पर बहुत अधिक पढ़ाई कर सकें। ऐसे में एग्जाम टाइम में बच्चों की प्रिपरेशन अच्छे हो सके, इसके लिए उनके साथ खुद पैरेंट्स को इन्वॉल्व हो जाना चाहिए। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की प्रो। दीपा पुनेठा बताती हैं कि रिसर्च में भी ये प्रूव हुआ है कि ये स्थिति बच्चे के लिए एक बेहतर माहौल बनाता है। पढ़ाई के दौरान बच्चे के पास बैठ जाना, उसका बुक ठीक कर देना, खाने पीने पर विशेष ध्यान देना जैसे अन्य कई एक्टिविटी हैं, जिससे बच्चे की हेल्प करने के साथ ही उन्हें फील कराने के लिए काफी होती हैं कि बच्चे के साथ उसके खुद उसके पैरेंट्स भी मेहनत कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें मोरल सपोर्ट के साथ आत्मबल मिलता है, जो उन्हें मेंटली और भी हेल्दी बनाता है। इसके विपरीत उन पर घर में किताबों में उलझे रहने का प्रेशर बनाने, उन्हें रुटीन एक्टिविटी से दूर कर देने से उनका दिमाग डायवर्ट हो जाएगा। डिक्टेटर जैसा विहैब करने पर वे डिप्रेशन में भी जा सकते हैं जो ज्यादा खतरनाक स्थिति होती है। ऐसे में सबसे जरूरी है कि बच्चे की मानसिकता को पढऩे की कोशिश जाए और उसी के अनुसार उसे सपोर्ट दिया जाय ताकि वह वही काम खुशी-खुशी अपनी मर्जी से करे.

बच्चों पर पढ़ाई के लिए प्रेशर बनाने से बेहतर होगा कि पैरेंट्स एग्जाम की प्रिपरेशन के लिए बच्चे के साथ खुद इन्वॉल्व हो जाएं। ऐसे में बच्चा खुद ब खुद पढऩे लगेगा। पैरेंट्स की जरा सी चूक भी बच्चे के एग्जाम के लिए नुकसानदेय साबित हो सकती है.
प्रो। दीपा पुनेठा, 
साइकोलॉजिस्ट

घर में बच्चों के पास पढ़ाई के लिए बहुत कम टाइम बचता है। स्कूल और कोचिंग की पढ़ाई के बाद वे काफी थक चुके होते हैं। स्कूल और कोचिंग जैसा प्रेशर घर में भी फील होने लगा तो बच्चा डिप्रेशन में भी जा सकता है। बेहतर होगा कि बच्चों पर प्रेशर बनाने से पहले उसके एटीट्यूड सहित सभी पहलुओं पर विचार लें. 
डॉ। भूमिका, 
न्यूरो साइकोलॉजी विशेषज्ञ सीबीसीएस
Syllabus ही ऐसा है

यूपी बोर्ड हो या सीबीएसई या फिर आईसीएसई बोर्ड सभी का सिलेबस ही ऐसा है कि अच्छे माक्र्स के लिए बच्चों पर पढ़ाई का प्रेशर बनाना जरूरी हो गया है। बोर्ड ने ग्रेडिंग सिस्टम जरूर लागू कर दिया, लेकिन कोर्स में कोई तब्दीली नहीं की। नतीजा एग्जाम पास करने के लिए स्टूडेंट्स पर प्रेशर पहले की तरह ही है। सेंटर ऑफ बिहैवियरल एंड कॉग्नेटिव साइंस की न्यूरो साइकोलॉजी की एक्सपर्ट डॉ। भूमिका भी इस बात से इत्तेफाक रखती हैं। फिर भी वे बच्चों पर पढ़ाई के लिए प्रेशर बनाने से बचने का राय देती हैं।

पहले बच्चे का attitude समझें

डॉ। भूमिका पैरेंट्स को सजेस्ट करती हैं कि पूरी कोशिश करें कि बच्चे पर पढ़ाई का प्रेशर न बढ़े। वह एग्जाम की प्रिपरेशन किस तरह से कर रहा है? इसके लिए केवल उस पर नजर रखें। समय-समय पर उसे केवल सजेस्ट करें। ऐसा लगता है कि इससे काम नहीं चलेगा तो फिर पढ़ाई का प्रेशर बनाने से पहले बच्चे की पर्सनैलिटी व उसके एटीट्यूड को समझें। उसके बाद ही उस पर पढ़ाई का प्रेशर बनाएं। ऐसा भी हो सकता है कि उस पर निगेटिव इफेक्ट पड़े और उसके पेपर और खराब हो जाएं।

Friend बनें dictator नहीं 

स्कूल और कोचिंग में ज्यादातर टाइम बिताने के बाद बच्चे खुद इस स्थिति में नहीं रह जाते कि वे घर पर बहुत अधिक पढ़ाई कर सकें। ऐसे में एग्जाम टाइम में बच्चों की प्रिपरेशन अच्छे हो सके, इसके लिए उनके साथ खुद पैरेंट्स को इन्वॉल्व हो जाना चाहिए। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की प्रो। दीपा पुनेठा बताती हैं कि रिसर्च में भी ये प्रूव हुआ है कि ये स्थिति बच्चे के लिए एक बेहतर माहौल बनाता है। पढ़ाई के दौरान बच्चे के पास बैठ जाना, उसका बुक ठीक कर देना, खाने पीने पर विशेष ध्यान देना जैसे अन्य कई एक्टिविटी हैं, जिससे बच्चे की हेल्प करने के साथ ही उन्हें फील कराने के लिए काफी होती हैं कि बच्चे के साथ उसके खुद उसके पैरेंट्स भी मेहनत कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें मोरल सपोर्ट के साथ आत्मबल मिलता है, जो उन्हें मेंटली और भी हेल्दी बनाता है। इसके विपरीत उन पर घर में किताबों में उलझे रहने का प्रेशर बनाने, उन्हें रुटीन एक्टिविटी से दूर कर देने से उनका दिमाग डायवर्ट हो जाएगा। डिक्टेटर जैसा विहैब करने पर वे डिप्रेशन में भी जा सकते हैं जो ज्यादा खतरनाक स्थिति होती है। ऐसे में सबसे जरूरी है कि बच्चे की मानसिकता को पढऩे की कोशिश जाए और उसी के अनुसार उसे सपोर्ट दिया जाय ताकि वह वही काम खुशी-खुशी अपनी मर्जी से करे।

बच्चों पर पढ़ाई के लिए प्रेशर बनाने से बेहतर होगा कि पैरेंट्स एग्जाम की प्रिपरेशन के लिए बच्चे के साथ खुद इन्वॉल्व हो जाएं। ऐसे में बच्चा खुद ब खुद पढऩे लगेगा। पैरेंट्स की जरा सी चूक भी बच्चे के एग्जाम के लिए नुकसानदेय साबित हो सकती है।

प्रो। दीपा पुनेठा, साइकोलॉजिस्ट

घर में बच्चों के पास पढ़ाई के लिए बहुत कम टाइम बचता है। स्कूल और कोचिंग की पढ़ाई के बाद वे काफी थक चुके होते हैं। स्कूल और कोचिंग जैसा प्रेशर घर में भी फील होने लगा तो बच्चा डिप्रेशन में भी जा सकता है। बेहतर होगा कि बच्चों पर प्रेशर बनाने से पहले उसके एटीट्यूड सहित सभी पहलुओं पर विचार लें. 

डॉ। भूमिका, न्यूरो साइकोलॉजी विशेषज्ञ सीबीसीएस