क्या हर बार मौत पेशेंट या तीमारदार की गलती होती है? बहुत सारे सवाल हैं, जो डॉक्टर्स के भरोसे को तोड़ते हैं। मूवी अंकुर अरोरा मर्डर केस इस बात का खुलासा करती है कि किस तरह डॉक्टर्स पेशेंट्स की लाइफ से अधिक अपने शेड्यूल और बिल की परवाह करते हैं। अपने शहर में भी ऐसे डॉक्टर्स की कमी नहीं है

बिल पे हो जाए, जान जाती है तो जाए

डॉक्टर्स की लापरवाही के किस्से तो हम आए दिन सुनते ही रहते हैं। कभी ये लापरवाही इस हद तक बढ़ जाती है कि मरीज की मौत तक हो जाती है। अब तक न जाने कितने ही मामलों में डॉक्टर की लापरवाही ने मरीजों की जान भी ले ली है। इसके बावजूद लापरवाही के लिए किसी डॉक्टर पर आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या का केस नहीं दर्ज होता।

डॉक्टर का शेड्यूल

सिटी के डॉक्टर्स का शेड्यूल काफी बिजी रहता है। इनकी रुटीन सुबह काफी जल्दी शुरू हो जाती है। अमूमन डॉक्टर्स अपने घर से आठ बजे निकल जाते हैं। सिटी के हॉस्पिटल्स में भर्ती पेशेंट्स को देखते हैं। हॉस्पिटल विजिट में हर डॉक्टर को दो से तीन घंटे लगते हैं। 10-11 बजे डॉक्टर अपने क्लीनिक पर पहुंचते हैं। ओपीडी के बाद 3-4 बजे तक फ्री होते हैं। कुछ देर घर में रेस्ट कर शाम को फिर अपने क्लीनिक पर बैठते हैं। लेट नाइट करीब 12 बजे तक डॉक्टर्स दोबारा हॉस्पिटल्स में भर्ती अपने मरीजों को देखने जाते हैं। इस बीच ट्रीटमेंट के दौरान किसी पेशेंट की मौत हो जाती है तो डॉक्टर्स के खिलाफ हंगामा हो जाता है।

मकसद है पैसा

14 जून को रिलीज हुई फिल्म अंकुर अरोरा मर्डर केस में पैसा कमाने की मशीन बन चुके ऐसे ही डॉक्टर की कहानी को दिखाया है, जिसमें एक सेवन स्टार हॉस्पिटल में अंकुर नाम के एक बच्चे को भर्ती कराया जाता है। टेस्ट के बाद उस बच्चे को एपेंडिक्स की प्रॉब्लम डिटेक्ट होती है। वहां के सुप्रिमो डॉक्टर अस्थाना उस बच्चे का बेहद मामूली सा एपेंडिक्स का ऑपरेशन करते हैं। बच्चे की मां को बताया जाता है कि ऑपरेशन से पहले तक बच्चे को कुछ खाने के लिए नहीं देना है। मगर मां की नजर बचते ही बच्चा चार बिस्किट खा लेता है। मगर पैसा कमाने की मशीन बन चुके डॉ। अस्थाना ये कहकर ऑपरेशन करते हैं कि चार बिस्किट की वजह से ऑपरेशन नहीं टाला जा सकता। डॉक्टर ऑपरेशन करते हैं और ऑपरेशन के दौरान ही बच्चे की मौत हो जाती है।

सिटी में भी कम नहीं ‘डॉक्टर अस्थाना’

6-4-2013 : कंकरखेड़ा निवासी अनीता नंगलाताशी में एक डॉक्टर से इलाज करा रही थी। डॉक्टर ने महिला को बताया कि उसका बच्चा बेहद कमजोर है। इसलिए वो एबॉर्शन करवा ले। एबॉर्शन के दौरान ही डॉक्टर से अनीता की आहार नाल कट गई और यूट्रेस में भी जख्म हो गए। अनीता की हालत को बिगड़ती देख डॉक्टर ने अनीता को कंकरखेड़ा के एक हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया और खुद गायब हो गई। महिला की बाद में मौत हो गई।

30-6-2012 : जिला अस्पताल में  निशात के यूट्रेस में रसौली थी। जिसका ऑपरेशन कराने निशात को ये नहीं पता था कि अब वो अपने घर कभी नहीं जा पाएंगी। परिजनों का आरोप था कि निशात की मौत एनेस्थिसिया की ओवर डोज से हुई। परिजन बार-बार डॉक्टर्स पर कार्रवाही करने की बात कहते रहे मगर कुछ नहीं हुआ।

कहां करें शिकायत

अक्सर शहर के अस्पतालों में ऐसे हंगामे होते रहते हैं जिनमें डॉक्टर्स पर लापरवाही का आरोप लगाया जाता है। ऐसे में मृतक के परिजन हॉस्पिटल में हंगामा और तोडफ़ोड़ भी करते हैं। जबकि इस तरह से कानून को अपने हाथ में लेना नहीं चाहिए। अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए हर कोई कंज्यूमर फोरम का सहारा ले सकता है। इस समय कंज्यूमर फोरम में डॉक्टर्स और हॉस्पिटल्स की लापरवाही के कई मामले चल रहे हैं।

"डॉक्टर्स की लापरवाही के किस्से तो अक्सर सुनने को मिल जाते हैं। कई बार तो इनकी लापरवाही मरीज की जान ले लेती है। कितने ही मरीज मर जाएं डॉक्टर की प्रैक्टिस में कोई खलल नहीं पड़ता."

-विनोद सिंह, बिजनेसमैन

"डॉक्टर हमेशा अपनी तरफ से कोशिश करता है कि उसका पेशेंट बिल्कुल फिट हो जाए। मगर कई बार पेशेंट की हालत नाजुक होती है और कोशिशों के बाद भी डॉक्टर उसे नहीं बचा पाता। लापरवाही के अधिकतर मामले झोलाछाप डॉक्टरों के ही होते हैं."

-डॉ। एसएम शर्मा, प्रेसीडेंट इंडियन मेडिकल एसोसिएशन