जाहिर है जब ऐसी व्यवस्था होगी तो कई तरह के नाजायज धंधे भी होंगे। वैसे अब सोचना पड़ेगा आखिर माइग्र्रेशन की जरूरत क्या है?

Migration के लिए लडऩी पड़ती है जंग

किसी यूनिवर्सिटी में एडमिशन से पहले माइग्रेशन सर्टिफिकेट मांगा जाता है। इस माइग्रेशन के पीछे एक कहानी होती है। कैसे किसी का भाई, दोस्त, या रिश्तेदार यूनिवर्सिटी या कॉलेज में जाकर माइग्रेशन सर्टिफिकेट बनवाता है। महीनों धक्के खाता है, दलालों के हाथों लुटता है। अधिकारियों से मिलने के चक्कर में चप्पल घिस जाती है, पर वो ईद का चांद मिलते ही नहीं। भीड़ से मिलता है migration

राजीव दिल्ली में रहते हैं। पहले सीसीएसयू से पढ़े लेकिन अब दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढऩा चाहते हैं। राजीव ने अपने दोस्त संजय से यूनिवर्सिटी से अपनी डिग्री और माइग्रेशन निकलवाने को कहा। संजय यूनिवर्सिटी पहुंचे। पता करके बैंक से माइग्रेशन फॉर्म खरीदा, भरकर जमा कर दिया। एक हफ्ते का समय दिया गया। लेकिन एक हफ्ते बाद आए तो माइग्रेशन मिलने की बजाए उनसे फॉर्म भर कर लाने को कहा गया। संजय फॉर्म की रसीद दिखाने लगे। हंगामा हुआ। बाबू ने रजिस्टर खोला, बोला कि यहां पर फॉर्म है ही नहीं। अगले दिन संजय अपने दस-पंद्रह दोस्तों के साथ फिर से पहुंचे। भीड़ को देखते हुए बाबू ने आधे घंटे के भीतर ही माइग्रेशन निकाल कर दे दिया.नीचे रख लेते हैं

यूनिवर्सिटी में अमूमन हर स्टूडेंट के साथ माइग्रेशन का खेल होता है। दरअसल विभाग के कुछ बाबू स्टूडेंट का माइग्रेशन निकाल कर अपनी टेबल के नीचे रख लेते हैं। जब स्टूडेंट अपनी डिग्री लेने पहुंचता है तो उसे बाकी के डॉक्यूमेंट पूरे करने को कहा जाता है। उस समय पता चलता है कि माइग्रेशन तो जमा ही नहीं हुआ (माइग्रेशन जमा तो किया था, लेकिन बाबू ने निकाल कर रख लिया)। मजबूरी का मारा स्टूडेंट कुछ ले देकर मामला सेटल करने के चक्कर में बाबू के झांसे में आ जाता है। एक से तीन हजार के बीच पैसे लेकर बाबू ओरीजनल माइग्रेशन लगा कर काम कर देता है।

आखिर migration क्यों

हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि अब माइग्रेशन को खत्म कर देना चाहिए। आखिर माइग्रेशन की जरूरत ही क्या है? बस यही तो साबित करना है कि स्टूडेंट यूनिवर्सिटी से दूसरी यूनिवर्सिटी में आ रहा है। इसके लिए कोई ऑनलाइन वैकल्पिक व्यवस्था खोजी जानी चाहिए। ताकि सब कुछ ऑनलाइन रहे और स्टूडेंट को धक्के ना खाने पड़ें। जब नगर निगम के बर्थ सर्टिफिकेट, तहसील का आय प्रमाण पत्र समेत तमाम डॉक्यूमेंट ऑनलाइन अवेलेबल हैं तो फिर माइग्रेशन को ऑनलाइन क्यों ऑपरेट नहीं किया जा सकता।

छपवा रखी है पूरी बुकलेट

माइग्रेशन सुनने में आसान भले ही लगे। लेकिन इसके पीछे भी बड़ा खेल होता है। यहां के कई छात्र नेता भी इस खेल में शामिल हैं। कई छात्रनेताओं ने तो माइग्रेशन सर्टिफिकेट के जैसी बुकलेट और यूनिवर्सिटी की स्टांप बनवा रखी हैं। जो भी स्टूडेंट माइग्रेशन के लिए आते हैं। उन्हें अपने गुर्गों के द्वारा पकड़ कर उनके सौ रुपए (जो कि जायज फॉर्म फीस है) लेकर शाम का समय दे देते हैं। शाम को अपनी बुकलेट में उसका नाम लिखकर (माइग्रेशन सर्टिफिकेट बनाकर) स्टूडेंट को दे दिया जाता है। क्योंकि माइग्रेशन का कोई वेरीफिकेशन नहीं होता, तो स्टूडेंट को आगे भी कोई दिक्कत नहीं होती है। इसी तरह से यूनिवर्सिटी के कई तथाकथित छात्र नेताओं की कमाई का जरिया भी है।

होता है लेन देन

आज जब आई नेक्स्ट टीम माइग्रेशन डिपार्टमेंट के हालात जानने के लिए यूनिवर्सिटी पहुंची तो वहां पर माइग्रेशन के लिए भटकते कई लोग घूमते हुए मिले। एक ने हम से हमारा नंबर मांगा। बाद में उस व्यक्ति ने फोन पर बताया कि ‘यहां पर दो बाबू हैं। जो माइग्रेशन के नाम पर एक से तीन हजार रुपए ले रहे हैं। दोनों बाबूओं की जेब में नोट इस कदर भरे हैं कि वो जेब से बाहर निकलने को तैयार हैं। जहां पर सीसीटीवी कैमरा लगा हैं वहां पर रिश्वत ना लेकर अंदर बने सीक्रेसी डिपार्टमेंट में बुलाया जाता है।

"जो भी कर्मचारी इस तरह की गतिविधियों में लिप्त पाया जाएगा। उसके खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। स्टूडेंट्स को परेशान किया जाए तो वो मुझ से शिकायत कर सकते हैं."

वीसी गोयल, कुलपति सीसीएसयू

National News inextlive from India News Desk