दैनिक जागरण आई नेक्स्ट एक्सक्लूसिव

-मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल में सुअरों का आतंक, मेन गेट पर ही बन गया बाड़ा

-फर्श पर मरीज और तीमारदार ओपीडी में नहीं मरीजों के बैठने की व्यवस्था

-अस्थमा, टीबी के गंभीर मरीजों का इलाज होता है यहां फिर भी हर तरफ इंफेक्शन का खतरा

KANPUR : अस्पताल में आप जाते हैं तो ठीक होने के लिए, लेकिन अस्पताल ही इंफेक्शन देने लगे तब क्या करेंगे? दरअसल, टीबी, अस्थमा और सीओपीडी जैसी घातक बीमारियों के एडवांस स्टेज के मरीजों का इलाज करने वाले मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल का हाल कुछ ऐसा ही है। अस्पताल के मेन गेट पर सुअर धमाचौकड़ी करते दिख जाएंगे। ओपीडी में मरीजों के बैठने की भी व्यवस्था नहीं है। वहीं अस्पताल में निर्माण कार्य की वजह से सीरियस इंफेक्शन वाले मरीजों को भी एक साथ ही रखा जा रहा है। कई बार तो अस्पताल में यह हाल होता है कि बेड की कमी के कारण मरीजों का फर्श पर लिटा कर इलाज करना पड़ता है।

सुअरों और कुत्तों का आतंक

मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल के मेन गेट के सामने ही सड़क से हट कर जाली के अंदर सुअरों का पूरा बाड़ा सा खुला हुआ है जोकि वहां पानी से भरे गड्ढे में आराम से लोटते रहते हैं। मरीज से लेकर तीमारदार यहां तक की डॉक्टर्स को भी यहां से मुंह ढक कर निकलना पड़ता है। अस्पताल के कर्मचारी सुअरों के आतंक के पीछे सुअर माफिया को वजह बताते हैं जोकि अनाधिकृत रूप से कॉलेज कैंपस में ही रहते हैं। नगर निगम से शिकायत के बाद भी यहां एक बार भी अभियान नहीं चला।

ओपीडी में फर्श पर पेशेंट्स

मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल की ओपीडी में मरीजों के लिए बैठने की कोई व्यवस्था नहीं होने की वजह से दमा से लेकर टीबी और चेस्ट से संबंधित कई गंभीर बीमारियों के मरीजों को फर्श पर ही बैठना पड़ता है। जो कुर्सियां पड़ी भी हैं वह भी बेहद सीमित हैं।

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पेशेंट्स में बढ़ा इंफेक्शन का खतरा

दरअसल, बीते 6 महीने से चेस्ट हॉस्पिटल के रेनोवेशन का काम चल रहा है। इस वजह से ग्राउंड फ्लोर प्लस दो स्टोरी अस्पताल की बिल्डिंग में अब मात्र तीन वार्ड ही हैं जबकि पहले 5 वार्ड थे, जिसमें सीओपीडी, टीबी के एमडीआर पेशेंट्स, अस्थमा के पेशेंट्स को अलग-अलग रखा जाता था। लेकिन अभी ज्यादातर पेशेंट्स तीन वार्डो में ही रखे जा रहे हैं डॉक्टर्स खुद मानते हैं कि यह सही नहीं है और इससे मरीजों में इंफेक्शन का खतरा बढ़ा है, लेकिन जगह नहीं होने की वजह से ऐसा करना पड़ रहा है।

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ैक्ट फाइल

-1969 में अस्पताल की शुरुआत

- 125 बेड का अस्पताल

- टीबी, अस्थमा, चेस्ट डिसीज का इलाज

- हर साल 5000 से ज्यादा मरीजों का इलाज

- प्रतिदिन 200 से ज्यादा मरीजों की ओपीडी

- 8 करोड़ की लागत से अस्पताल के रेनोवेशन का काम जारी

- 5 सीनियर कंसल्टेंट्स, 5 पीजी की सीटें

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वर्जन

- हॉस्पिटल में गंदगी और सुविधाओं का बेहद अभाव है। यहां तो मरीज लाए तो ठीक होने की बजाय वह नई बीमारी लेकर जाए।

- अंशुमान सिंह

चेस्ट हॉस्पिटल में डॉक्टर्स तो काफी अच्छे हैं लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है। आवारा जानवरों की वजह से और हालत खराब है।

- अमित पटेल

अस्पताल के गेट पर ही सुअर पड़े रहते हैं। ऐसे अस्पताल में कौन आना चाहेगा। मजबूरी में गरीब आदमी को इन्हीं हालातों में इलाज कराना पड़ता है। अधिकारियों को इससे कोई मतलब नहीं।

- अवनीश सैनी

यहां सुविधाओं के नाम पर कुछ है ही नहीं। एक्सरे तक बाहर से कराना पड़ता है अस्पताल में गंदगी भी बहुत है किसी नेता और अधिकारी की इस पर नजर नहीं जाती।

- पवन त्रिपाठी