DEHRADUN: धरना प्रदर्शनों से निकले राज्य में अपनी मांगों को लेकर आज भी कई संगठन लगातार धरना दिये जा रहे हैं। बेरोजगार और राज्य आंदोलनकारियों के कई संगठन हैं, जो पिछले कई सालों से धरना-प्रदर्शन में जुटे हुए हैं। आंदोलन करते-करते आंदोलनकारियों की एक उम्र बीत चुकी है, लेकिन सरकारी स्तर पर उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं दिखा।

 

 

जवानी गुजर गई धरनों में

चंडी प्रसाद जुयाल की उम्र 39 साल है। वे पौड़ी जिले के रहने वाले हैं। 2002 में गौचर से फार्मासिस्ट डिप्लोमा किया था। नौकरी नहीं मिली। केमिस्ट शॉप खोली, लेकिन नहीं चली। आखिरकार नौकरी की उम्मीद लेकर बेरोजगार डिप्लोमा फार्मासिस्ट एसोसिएशन के बैनर तले आंदोलन शुरू कर दिया। यह संघ 26 अक्टूबर 2014 से परेड ग्राउंड में रात-दिन धरना दे रहा है।

 

2005 से नहीं हुई भर्तियां

राज्य में फार्मासिस्ट्स के हजारों पद खाली हैं, लेकिन 2005 के बाद से कोई भर्ती नहीं हुई है। 2005 में 539 फार्मासिस्ट्स की भर्ती हुई थी। 2016 में 600 फार्मासिस्ट्स की भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई थी। लगभग 5000 फार्मासिस्ट ने 1000 रुपये फीस देकर आवेदन किया था, लेकिन इसके बाद भर्ती प्रक्रिया का कोई पता ही चला। इस मामले में हाईकोर्ट ने भी दखल दिया, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।

 

हर साल 1500 नये फार्मासिस्ट

चंडी प्रसाद जुयाल जैसे हजारों युवक नौकरी की उम्र पूरी करते जा रहे हैं, उधर राज्य के विभिन्न सरकारी और प्राइवेट संस्थानों से हर साल 1500 से ज्यादा नये फार्मासिस्ट पास आउट होकर नौकरी की लाइन में खड़े हो रहे हैं।

 

 

14 सालों से धरने प्रदर्शन

राज्य में सबसे लंबा आंदोलन करने वालों में एसएसबी गुरिल्ला भी शामिल हैं। राज्य में इनकी संख्या करीब 24000 है। ये वे बेरोजगार हैं, जिन्हें एसएसबी ने यह कहकर ट्रेनिंग दी थी कि जब भी भर्ती खुलेगी उन्हें प्रमुखता दी जाएगी। 2002 तक लगातार इस तरह की ट्रेनिंग दी जाती रही। गुरिल्ला प्रशिक्षण प्राप्त ये लोग नौकरी की उम्मीद में बैठे रहे, लेकिन नौकरी नहीं मिली। बाद में उन्हें विभिन्न विभागों में डेली वेजेज पर काम देने की बात कही गई, लेकिन इस तरह का काम भी कुछ ही लोगों को मिला। ऑल इंडिया एसएसबी वॉलेंटियर एसोसिएशन के बैनर तले गुरिल्ला 2004 से लगातार आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। देहरादून के परेड ग्राउंड के अलावा अल्मोड़ा और श्रीनगर में गुरिल्ला पिछले 164 दिन से धरना दे रहे हैं। वे अपने मांगों को लेकर पीएम आवास और जन्तर-मन्तर तक भी जा चुके हैं।

 

 

2006 से दे रहे धरना

विभिन्न संस्थानों से बीपीएड और एमपीएड की डिग्री लेकर राज्यभर के करीब 15 हजार युवक भी पिछले 12 साल से धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। नौकरी देने की मांग को लेकर इन युवकों ने 2006 में बीएड डिग्रीधारी युवकों के साथ मिलकर संघर्ष शुरू किया था। इनमें से कुछ को विशिष्ट बीटीसी के तहत नौकरी भी मिली, लेकिन 2010 में बीपीएड और एमपीएड डिग्री वाले युवकों को विशिष्ट बीटीसी के लिए अयोग्य मान लिया गया। तब से ये अपना अलग संगठन बनाकर आंदोलन कर रहे हैं।

 

राज्य आंदोलनकारी भी धरने पर

अलग राज्य के लिए संघर्ष करने वाले कई लोग भी पिछले कई सालों से आंदोलन कर रहे हैं। पिछले कई सालों से ये लोग कलेक्ट्रेट स्थित शहीद स्मारक में हर रोज जमा होते हैं और दिन भर धरना देकर शाम को घर लौट जाते हैं। ये संगठन राज्य स्थापना के बाद से ही संघर्ष करते रहे हैं। इनमें से कुछ राज्य आंदोलनकारी के रूप में चिन्हित होकर नौकरी कर रहे हैं या सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाएं पा रहे हैं। बाकी लोग अब भी खुद को आन्दोलनकारी के रूप में चिन्हित करने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। उत्तराखंड राज्य निर्माण सेनानी मंच के बैनर तले पिछले 245 दिनों से शहीद स्मारक पर लगातार धरना चल रहा है।