हम जो सृष्टि के बारे में जानते हैं वह बहुत ही छोटा है, जो हम नहीं जानते उसके मुकाबले में। जो हम नहीं जानते वह बहुत अधिक है, और ध्यान उस अज्ञात ज्ञान का द्वार है। ध्यान हमें बहुत से लाभ देता है। पहला, यह बहुत शांति और प्रसन्नता लाता है। दूसरा, यह सर्वस्व प्रेम का भाव लाता है। तीसरा, यह सृजनशक्ति, अंतर्दृष्टि और इस भौतिक संसार के परे का ज्ञान लाता है।

शिशुओं के रूप में हम सब में कुछ विशेष तरंगें थीं। विश्व भर में सब जगह बच्चे आपको आकर्षित करते हैं। उनमें एक विशेष शुद्धता, एक विशेष कंपन होता है। वे विशिष्ट होते हैं। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, कहीं न कहीं हम उस ऊर्जा से, उस उत्साह से अलग हो जाते हैं, जिसके साथ हम जन्मे थे। क्या आप सबको ऐसा अनुभव हुआ है कि बिना कारण आपको कुछ लोगों के प्रति घृणा होती है, और किसी स्पष्ट कारण बिना ही आप कुछ लोगों की ओर आकर्षित होते हैं? क्या ऐसा नहीं हुआ आपके साथ? हर दिन यह होता है; हर समय। यह इसलिए होता है क्योंकि हमारा सारा जीवन कम्पनों पर आधारित है।

एक विशेष कंपन है जो हम में से हर व्यक्ति प्रस्फुटित करता है। हर व्यक्ति कंपन प्रस्फुटित कर रहा है। जब हमारा मस्तिष्क अटक जाता है, हमारी ऊर्जा नकारात्मक हो जाती है। जब मन स्वछंद होता है, तो यह ऊर्जा सकारात्मक होती है। ना घर, ना विद्यालय; कोई भी हमें नहीं सिखाता इस ऊर्जा को सकारात्मक कैसे बनाएं, है न? हमें सीखना है कैसे नकारात्मकता, क्रोध, ईष्र्या, लोभ, कुंठा, उदासीनता आदि को सकारात्मकता में बदलें। और यहां, सांस लेने की प्रक्रिया से सहायता होती है। कुछ सांस लेने की प्रतिक्रियाओं और ध्यान द्वारा, हम नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा बना सकते हैं और जब भी हम सकारात्मक और प्रसन्न होते हैं, हम अपने आस-पास प्रसन्नता फैलाते हैं।

यह एक स्तर है, ध्यान का सांसारिक और सबसे अनिवार्य लाभ। जैसा मैंने कहा, ध्यान के और भी लाभ हैं। जब हम अधिक सृजनात्मक, अंतज्र्ञानी होना चाहते हैं, और जब हम जानना चाहते हैं कि पांच से दस वर्ष बाद हमारे साथ क्या होने वाला है, तब ध्यान ही उत्तर है। जीवन को बड़े दृष्टिकोण से देखने के लिए थोड़ा अधिक प्रयत्न आवश्यक है, अर्थात, प्रयत्नहीन प्रयत्न (ध्यान)। बल्कि, यह प्रयत्न भी नहीं है, बस और समय की बात है। हमें एक सप्ताह से दस दिन तक का समय लेने की आवश्यकता है, जिसमें हम अपने जीवन के रहस्यमयी और आध्यात्मिक क्षेत्र में गहराई से जा सकें। मैं आपको बता सकता हूं, यह आपको इतना शक्तिशाली, शांत और संतुष्ट बना देगा।

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प्राचीन काल में लोग यह ध्यान का ज्ञान सब के साथ नहीं बांटते थे। वे इसको रहस्य रखते थे, और केवल कुछ विशेषाधिकृत लोगों के पास ही यह था। साधारणत: इसे राजस्वी और अति बौद्धिक लोगों को ही दिया जाता था। मैंने सोचा, यह संपत्ति सारी मानव जाति की है, और हर व्यक्ति को इसे सीखना चाहिए। यह किसी एक समाज, सभ्यता, धर्मं या राष्ट्र की संपत्ति नहीं है। फिर हमने इस सुंदर ज्ञान को विश्व में फैलाना शुरू किया। बीस वर्ष पहले, जब मैं यहां था, इतनी अनिश्चितता थी। लोग पूछ रहे थे, 'क्या होगा? हम एक बहुत नवीन राष्ट्र है।‘ मैंने कहा, 'चिंता मत करो, राष्ट्र उन्नति करेगा और बहुत सुदृढ़ हो जाएगा।‘ मैं जानता हंू, आज विश्व भर में घोर संकट है और मैं फिर आपको कह रहा हूं, चिंता मत करिए! हम इस कठिन समय को पार कर लेंगे, और फिर से उजाला होगा। मुझे लगता है यह मेरा स्वभाव बन गया है, जब कहीं कोई संकट हो, मुझे वहां जाकर कहना है, 'कोई संकट नहीं होगा। सब कुछ सुधर जाएगा’, और ऐसा होता भी है। सब कुछ सुधर जाता है।

— श्री श्री रविशंकर

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