1- विदेशी निवेशक वसूल रहे मुनाफा

पिछले दशक जो भी विदेशी निवेश देश में आया था अब मुनाफावसूली की भेंट चढ़ रहा है. ये मुनाफावसूली चौतरफा हो रही है. सिर्फ शेयर बाजार से ही नहीं बल्कि अलग-अलग स्तर पर किए गए निवेश मुनाफे के साथ वापस जा रहे हैं. इससे एकाएक डॉलर की डिमांड बढ़ गई है क्योंकि विदेशी निवेशक अपनी पूंजी और मुनाफा डॉलर में ले जा रहे हैं.

2- कच्चे तेल के आयात से नुकसान

भारत अपनी जरूरतों का करीब 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है. पिछले वित्त वर्ष ही हमने कच्चा तेल आयात करने के लिए 170 अरब डॉलर का भुगतान किया था. पिछले वित्त वर्ष के आंकड़ों पर गौर करें तो यह राशि कुल आयात का 35 फीसदी है. इसके लिए हमें अच्छी-खासी विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है. रुपये के गिरने की सबसे बड़ी वजह यही है. पेट्रोल-डीजल का उपयोग हम कम नहीं कर सकते इसलिए जितना पेट्रोल हम आयात करेंगे रुपया अभी और गिरेगा.

3- सोने के आकर्षण भी एक वजह

इतना ही नहीं हमारे कुल आयात का 24 फीसदी हिस्सा सोना, आभूषण और कीमती धातुओं के आयात पर खर्च होता है. इनका हमारी निजी जिंदगी में शोबाजी के अलावा उद्योगों की जरूरत के लिए बहुत कम पड़ती है. त्यौहारी मांग और शादी-ब्याह के कारण हमारे देश में सोने की मांग कम नहीं हो रही, जिसके कारण इनका आयात बढ़ता ही जा रहा है. यही वजह है कि रुपया अभी और कमजोर होगा.

उपाय

हम सुधरेंगे तो रुपया होगा मजबूत

यदि हम अपनी प्राइवेट कार या बाइक की बजाए कारपूल शुरू कर दें और पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें तो पेट्रोल-डीजल की मांग काफी कम हो जाएगी. इससे हमें कम विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ेगी. इस कदम से रुपये को काफी मजबूती मिल सकती है. इसी तरह हम शादी-ब्याह और त्यौहारों में सोने का प्रयोग बंद कर दें या काफी कम कर दें तो इससे भी रुपये को मजबूती मिलेगी. साथ ही सरकार घरेलू उद्योगों को सस्ती दर पर कर्ज मुहैया कराए जिससे वे अपना उत्पादन बढ़ा सकें. इसमें भी उन घरेलू उद्योगों को ज्यादा मदद देने की जरूरत है जो निर्यात करते हैं.

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