होटल जेपी में नेपकॉन कॉन्फ्रेंस में जुटे देश-विदेश के डॉक्टर्स

डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुरूप नहीं दी जा रही टीबी की दवा

आगरा। भले ही आज देश को विकास के रथ पर सवार बताया जा रहा हो। दुनिया के विकसित देशों की कतार में खड़े होने के दावे किए जा रहे हों। लेकिन, आज भी देश में तीन लाख लोगाें की मौत इलाज उपलब्ध होने के बावजूद टीबी से हो रही है। वहीं, दुनिया में हर मिनट तीन मौतें इस रोग की चपेट में आने से हो रही हैं। यह बातें शुक्रवार को होटल जेपी पैलेस में आयोजित नेशनल कॉन्फ्रेंस नेपकॉन में डाक्टरों ने कहीं।

ढाई हजार डॉक्टर जुटे

चार दिवसीय कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन टीबी के रोकथाम पर चर्चा की गई। कॉन्फ्रेंस में देश-विदेश के लगभग 2500 टीबी एवं चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स जुटे हैं। नेपकॉन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं केजीएम मेडिकल कॉलेज, अलीगढ़ के प्रो.डॉ। संतोष ने बताया कि इस ऐतिहासिक कॉन्फ्रेंस से मोदी पॉलिसी बदल जाएगी।

डब्ल्यूएचओ की नहीं मानी

डॉ। सूर्यकांत बताते हैं कि टीबी से हो रही मौत के लिए लोगो में जागरुकता की कमी और सरकारी लापरवाही जिम्मेदार है। वह बताते हैं हमारे यहां तीन दिन दवा दी जाती है। सोमवार, बुधवार और शुक्रवार, जबकि डब्ल्यूएचओ ने 2010 में तय किया था कि टीबी रोगी को प्रतिदिन दवा दी जाए। ताकि टीबी को जल्द से जल्द कंट्रोल में किया जा सके। वह बताते हैं आज देश में हर साल तीन लाख लोगों की मौत टीबी से हो रही है।

'हम क्यों नही दे सकते रोज दवा'

शुक्रवार को कॉन्फ्रेंस में टीबी पर एक डिबेट भी रखी गई। इसमें डॉक्टरों ने पॉजीटिव और नेगेटिव विचार रखे। वह बताते हैं कि एक ओर पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देश प्रतिदिन टीबी पेशेंट को दवा दे रहे हैं, तो हम क्यों नहीं दे सकते।

लापरवाही से बढ़ रहे मरीज

डॉ। सूर्यकांत बताते हैं कि समय से उपचार नहीं लेने पर टीबी मरीजों में इंफेक्शन बढ़ जाता है। इससे उसके संपर्क में आने वाले लोगों में भी टीबी का संक्रमण फैलने की आशंका पैदा हो जाती है।

एचआईवी नेगेटिव को रोज दवा

उन्होंने बताया कि बच्चों और एचआईवी पॉजीटिव के लिए तो प्रतिदिन टीबी की दवा लेना लागू कर दिया गया है। जल्द ही अन्य टीबी मरीजों को भी प्रतिदिन दवा देने की कवायद चल रही है।

मुनाफा के लिए आंखें बंद कर बैठी सरकार

डॉ। सूर्यकांत बताते हैं कि मेडिकल रिसर्च के अनुसार फैफड़ों को सबसे अधिक खतरा तंबाकू से होता है। डॉक्टरों की मांग थी कि तंबाकू प्रोडक्ट की बिक्री पर रोक देनी चाहिए। लेकिन, सरकार के कुछ अर्थशास्त्रियों इससे सहमत नहीं थे। सरकार को प्रतिवर्ष 24 हजार करोड़ रुपये की इस कारोबार से आमदनी जो होती है। रिसर्च के अनुसार कैंसर 40 तरीके के एवं अन्य 25 तरीके की फैफड़ों से संबंधित बीमारियां होती है। इनमें से तीन बीमारियाें का खर्चा प्रतिवर्ष 27 हजार करोड़ रुपये आता है। अन्य को भी जोड़ा जाए तो आंकड़ा तय करना भी मुश्किल हो जाएगा।