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जुलाई को चार्तुमास प्रारंभ होगा। उसी दिन हरिशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु शयन निद्रा में जाएंगे

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नवम्बर को देवोत्थानी एकादशी पर उन्हें शयन कक्ष से जगाकर पूजन-अर्चन किया जाएगा

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दिसंबर तक शुक्र ग्रह के अस्त होने की वजह से मुहूर्त का अभाव रहेगा

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दिसम्बर को अंतिम मुहूर्त के बाद खर मास प्रारंभ हो जाएगा

मांगलिक कार्यो के लिए सोलह जुलाई तक तीन तो उसके बाद दिसम्बर में शादी विवाह के तीन मुहूर्त

ALLAHABAD: शादियों का सीजन आता है तो घर से लेकर गेस्ट हाउस तक खुशियां छा जाती हैं। इस समय भी सहालग का दौर चल रहा है लेकिन शहनाई की गूंज का सिलसिला सोलह जुलाई के बाद समाप्त हो जाएगा। हालांकि चतुर्मास व्रत 23 जुलाई से प्रारंभ हो रहा है लेकिन शुभ मुहूर्त के अभाव की वजह से दस, ग्यारह और सोलह जुलाई के बाद से लेकर नौ दिसम्बर तक मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इसके बाद वर्ष के अंतिम महीने की सोलह तारीख तक ही शादियों के लिए मुहूर्त है।

चार महीने तक चतुर्मास की साधना

चतुर्मास में विवाह संस्कार, गृह प्रवेश जैसे मंगल कार्य नहीं किए जाते हैं, बल्कि भगवान विष्णु के शयन निद्रा की वजह से चार महीने तक शुभ कार्यो का अभाव हो जाता है। ज्योतिषाचार्य पं। विद्याकांत पांडेय की मानें तो चतुर्मास में संत-महात्मा व्रत व पूजन-अर्चन जैसे कार्य करते हैं। विधि-विधान से पूजन करके भगवान विष्णु को शयन के लिए भेजा जाता है। इसका समापन 19 नवम्बर को देवोत्थानी एकादशी के दिन होगा।

पांच वर्ष बाद मांगलिक कार्यो का अभाव

चतुर्मास के समापन पर भगवान विष्णु को देवोत्थानी एकादशी पर शयन निद्रा से उठाया जाता है और उनका पूजन-अर्चन किया जाता है। इसके साथ ही मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं, लेकिन पांच वर्षो के बाद एकादशी पर ऐसा नहीं होगा। पं। विनय कृष्ण तिवारी ने बताया कि सोलह अक्टूबर को शुक्र ग्रह अस्त हो जाएगा जिसका उदय पांच दिसम्बर को होगा। उसके बाद मांगलिक कार्यो के लिए दस, पंद्रह व सोलह दिसम्बर को शुभ मुहूर्त बना हुआ है।

ग्रह नक्षत्रों के संयोग से इस वर्ष दिसम्बर तक सिर्फ छह शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। चतुर्मास और शुक्र ग्रह के अस्त होने की वजह से पांच वर्ष बाद देवोत्थानी एकादशी पर भी मांगलिक कार्य नहीं होंगे।

पं। दिवाकर त्रिपाठी पूर्वाचली, निदेशक, उत्थान ज्योतिष संस्थान