कहानी :
थोड़ी सी क्रांति, थोड़ी सी पाइरेट्स ऑफ कैरेबियन, थोड़ी सी लगान, थोड़ी सी मंगल पांडे और दो गानों के लिए थोड़ी सी शीला की जवानी, साथ मे एकता कपूर ट्रेडमार्क एक दर्दनाक ट्विस्ट।

रेटिंग : 1 STAR

thugs of hindostan movie review : गधे पे सवार हैं,'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान'

समीक्षा :
साल की सबसे बड़ी फिल्म बता कर 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' इस हफ्ते आये हैं साल की सबसे बड़ी ठगी करने के लिए। कहानी मनोज कुमार की फिल्म क्रांति जैसी है, बस फर्क इतना है की इस फिल्म की हैप्पी ऐंडिंग है। फिल्म की राइटिंग इतनी इनकंसिस्टेंट है, पूछिये मत। ऐसा लगता है कि पूरी फिल्म के लिए कोई और बैठा है और आमिर खान के डायलॉग लिखने के लिए किसी और को बैठा दिया है। बस वही मोमेंट देखने लायक हैं जिसमे आमिर खान अवधी हिंदी में बकलोली करते हैं, अफसोस कि बात ये है कि ये मोमेंट बहुत कम हैं। स्टीरियोटाइप किरदार फिल्म की भजिया बना देते हैं। ऐसा बताया जा रहा है कि फिल्म 1839 में लिखे गए एक उपन्यास 'कन्फेशन ऑफ ठग' पर बेस्ड है, यदि हाँ तो मैं उस उपन्यास को जरूर पढ़ना चाहूंगा जो इतना समय से आगे का है, जैसे लेखक जानता हो कि कालांतर में कोई न कोई ठग इस नावेल पर फिल्म जरूर बनाएगा और ऑडिएंस का पैसा ठग कर ले जाएगा। फिल्म का आर्ट डायरेक्शन और सेट्स बेहद फर्जी दिखते हैं। फिल्म के वी एफ एक्स बेहद हास्यास्पद हैं और देख कर शक पैदा करते हैं कि वो किसी वी एफ एक्स स्कूल के बच्चों का प्रोजेक्ट न रहे हों, इस वजह से स्टंट भी फर्जी लगते हैं। फर्स्ट हाफ में ही फिल्म डूबने लगती है जिसको सेकंड हाफ में बचाया जा सकता था पर अफसोस फिल्म के राइटर्स कोशिश ही नहीं करते। फिल्म में फिजूल में ठूसे गए गाने और फालतू सीन फिल्म को अझेल होने के लेवल तक बोरिंग बना देते हैं। फिल्म के एडिटर भी जैसे फॉर्मूले के भक्त बने पड़े हुए हैं, हर क्लीशे फिल्म में देखने को मिल जाएगा।



अदाकारी :
आमिर खान इस फिल्म को बचाने की खूब कोशिश करते है पर जिस जहाजी के जहाज में ही दीमक लग जाये उसे कौन बचाये, एक वक्त पे आके आपको आमिर के चेहरे पर डेसपेरेशन साफ दिखने लगता है। छोटे छोटे रोलों में मोहम्मद जीशान (हीरो का साइड-किक पंडित) और इला अरुण (बेवड़ी वैध) इंप्रेस करते हैं, काश उनके पास बेहतर लिखे किरदार होते। कटरीना कैफ से ज्यादा काम इस फिल्म में आमिर के गधे का है, वो महज दो सीन और दो गानों के लिए फिल्म में किसलिये हैं मेरी ठगी गई बुद्धि समझ नहीं पा रही। सना शेख इस फिल्म में दंगल के एक्सटेंशन की तरह दिखती हैं, दो चार डायलॉग जो उनके हाथ आते हैं उनको वो अरुचि से बोल भर देती हैं। अंग्रेज़ जो भी कास्ट हैं वो भी बेहद रद्दी एक्ट करते हैं।

कुलमिलाकर, कनपुरिया ठग की ये कहानी बेहद खराब फिल्म है। न तो फिल्म मनोरंजक है और न ही रोमांचक। इतने बड़े बजट में बनी ये फिल्म बनाने से बेहतर होती कि अंधाधुन और बधाई हो जैसी अच्छी स्क्रिप्ट चुनकर दर्जन भर अच्छी फिल्में बना दी जातीं। मेरे कुछ कहने से कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं है। दीवाली के एक्सटेंडेड वीकेंड पे फिल्म बढ़िया बिजनेस करेगी ही पर क्या ये फिल्म आमिर और निर्देशक वी के आचार्य की पिछली फिल्मों की बॉक्स ऑफिस की बराबरी कर पाएगी, ये देखना अभी बाकी है। अगर आमिर और अमिताभ के परम भक्त हैं तो ही देखने जाएं ये फिल्म वर्ना आप खुद को ठगा महसूस करेंगे।

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