आपके टिकट पर है ‘किसी’ की ‘नजर’

साकेत में रहने वाले बिजनेसमैन राकेश मिश्रा के बेटे शिवम् ने इस बार हाईस्कूल का एम्जाम दिया है। रिजल्ट अभी नहीं आया है। वो रोज सुबह उठते ही पापा यानि राकेश से कहता है कि इस बार हिल स्टेशन में घूमने जरूर चलूंगा। बताओ कहां चलोगे? थोड़ी देर उसको समझाने के बाद राकेश बोले, बेटा कैसे चलूं? रिजर्वेशन तो मिल जाए तभी तो चल पाऊंगा।

कैंसल करना पड रहा है प्लान

राकेश के बेटे की ही तरह कई पेरेंट्स को बाहर घूमने के सवाल पर बच्चों को ये ही जवाब देना पड़ता है। पर आखिर सिटी के पेरेंट्स को बच्चों को ये जवाब क्यों देना पड़ रहा है। जबकि रेलवे ने गर्मी की छुट्टियों को देखते हुए एक दो नहीं कई स्पेशल टे्रनें चला रखी हैं। वैसे भी किसी जगह जाने के लिए एक दो नहीं कई टे्रनें रेलवे ने पहले से ही चला रखी हैं। आखिर पैसेंजर के हक पर किसने कब्जा जमा रखा है। लाखों लोगों को टिकट्स न मिलने की वजह से अपना प्लान कैंसिल करना पड़ रहा है। आपकी इस प्रॉब्लम की वजह जानने के लिए आई नेक्स्ट ने पड़ताल की तो मालूम चला कि रेलवे एजेंट्स खासतौर पर अनऑथराइज्ड एजेंट्स ने पैसेंजर के हक पर कब्जा जमा रखा है। आइए आपको बताते है कि आपके टिकट और आपके बीच ये लोग कैसे कर रहे हैं ‘खेल’।

इनका नेटवर्क है बड़ा

गर्मी शुरू होते ही लोगों का बाहर घूमने का प्लान बनने लगता है। पर रेलवे रिजर्वेशन न मिल पाने की वजह से उनको ये प्लान चौपट हो जाता है। जब आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने मेरठ सिटी रेलवे स्टेशन का जायजा लिया तो ऐसे एक दो नहीं कई लोग मिले। आपका प्लान चौपट करने में सबसे बड़ा हाथ है रेलवे के ‘दलालों’ का। इनका बड़ा नेटवर्क है। अपने नेटवर्क के जरिए ये लोग रिजर्वेशन काउंटर पर बैठे इम्प्लाईज से सेटिंग कर टिकट्स करवा लेते हैं। और हम और आप ऐसे ही परेशान होते रहते हैं।

|

कैसे होता है ये ‘खेल’?

तत्काल हो या फिर साधारण रिजर्वेशन टिकट्स सब पर ये लोग बड़ी आसानी से कब्जा जमा लेते हैं। और फिर जो लोग मजबूरी में इनके पास आते हैं। उनसे ये लोग मनमाने पैसे वसूलते हैं। एक एजेंट्स ने न छापने की रिक्वेस्ट पर बताया कि रिजर्वेशन के खेल के पीछे एक बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है। इसमें रेलवे के इम्प्लाइज से लेकर ऑफिसर्स तक शामिल रहते हैं। दलाल बाबू से सेटिंग कर लेता है और बस फिर क्या है वो आराम से टिकट बनाकर उसको दे देता है। जबकि बाहर लाइन में खड़े लोगों को वापस जाना पड़ता है। टिकट के एवज में बाबू को भी पैसे देने पड़ते हैं। कई बार तो फोन पर ही डीलिंग करनी पड़ती है। फोन करके एजेंट्स रेलवे इम्प्लाइज से कह देता है कि इस जगह की दो टिकट्स बना दो, शाम को आदमी आएगा पैसे देकर टिकट ले लेगा। बस फिर क्या है विंडो के बाहर खड़े व्यक्ति अगर उस ट्रेन में उस डेट की टिकट मांगेगा तो बाबू मनाकर देगा। पर अपना काम कर लेगा। यानि की एजेंट्स का काम हो गया।

तत्काल में भी गड़बड़

पिछले कुछ सालों में टिकट्स एजेंट्स की संख्या में कई गुने का इजाफा आया है। 2006 में सिटी में आईआरसीटीसी के छोटे बड़े करीब 220 एजेंट्स थे। पर अगर आज की बात की जाए तो इनकी संख्या 600 के आसपास पहुंच चुकी है। इसके अलावा सिटी में दस हजार से ज्यादा अनऑथराइज्ड एजेंट्स हैं। अब ऐसे में आप खुद गणित लगा लीजिए की कैसे आम आदमी को आसानी से रिजर्वेशन टिकट मिल पाएगा।

टाइम तो कम हो गया पर

हाल ही में रेलवे ने टिकट्स की ब्लैक मार्केटिंग को रोकने के लिए रिजर्वेशन टिकट कराने का टाइम 120 ये घटाकर 60 दिन कर दिया है। पर फिर भी इन एजेंट्स के खेल पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है। बस इतना हुआ है कि एजेंट्स को अपने गुर्गों को अलर्ट करना पड़ा है। उन्होंने गुर्गों को अलर्ट कर दिया है। अब वो सिटी के अलग-अलग रिजर्वेशन काउंटर पर अपनी पहुंच बनाकर काम को अमलीजामा पहना रहे हैं। आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर कई फर्जी आईडी से एजेंट्स कई एज गु्रप के टिकट््स कर लेते हैं। फिर जो पैसेंजर जिस उम्र में फिट बैठता है। उसको वो टिकट दे दिया जाता है।

तो फिर कैसे मिलेगा टिकट

आपको टिकट क्यों नहीं मिल पा रहा है। आइए इसका गणित भी आपको समझा देते हैं। मान लीजिए एक एजेंट्स दिन भर में दो टिकट्स बुक करता है। और करीब दस हजार के आसपास अनऑथराइज्ड एजेंट्स हैं तो फिर कुल हो गए ना बीस हजार टिकट्स। बाकी की गणित में ऑथराइज्ड एजेंट्स हिस्सा मार लेते हैं। यानि आप खुद समझ सकते हैं पूरा खेल। ऐसे में विंडो पर लाइन लगाने वाले पैसेंजर को कैसे रिजर्वेशन टिकट मिल सकता है।

वीआईपी कोटे में भी हेरफेर

ये जानकर आपके होश उड़ जाएंगे कि एजेंट्स का नेटवर्क के तार बहुत ऊपर तक जुड़े हुए हैं। मेरठ स्टेशन पर टिकट करा रहे एक एजेंट ने आई नेक्स्ट रिपोर्टर को बताया कि बड़े-बड़े एजेंट्स तो वीआईपी लोगों के लेटर पैड तक अपने पास रखते हैं। अगर आप ज्यादा पैसे खर्च कर सकते हैं तो ये लोग वीवीआईपी लोगों के लैटरपैड पर बड़ी आसानी से आपको टिकट कंफर्म करा देते हैं। ऐसा आसानी से इसलिए हो जाता है, क्योंकि वहां बैठने वाले इम्प्लाइज भी इन लोगों से सेट रहते हैं।

जरा ध्यान दीजिए

-2006 में एक दिन में करीब 5000 के आसपास रिजर्वेशन होते थे।

-अगर 2013 की बात करें तो एक दिन पर 50,000 से ज्यादा रिजर्वेशन होते हैं।

-एक कंपनी की ओर से कराए गए सर्वे में ये बात साफ हो चुकी है कि 50,000 रिजर्वेशन में से सिर्फ मात्र 12 परसेंट टिकट्स ही काउंटर्स से हो रहे हैं, बाकी के एजेंट्स के माध्यम से होते हैं।

-हर ट्रेन का तत्काल कोटा अलग-अलग होता है। पर फिर भी कम से कम ये 125 के आसपास जरूर होता है।

'पूरे इंडिया में एक ही नेटवर्क चल रहा है। मुझको लगता है कि आरोप लगाना गलत है। जो स्थिति काउंटर पर है वो ही दूसरी जगह भी होनी चाहिए.'

आरके त्रिपाठी, एसएस, मेरठ सिटी रेलवे स्टेशन