- मलिहाबाद में सामने आया टाइगर पहुंचा गया कानपुर

- गंगाबैराज के पास मिले पगमा‌र्क्स, वन विभाग की टीम सिर्फ लकीर पीट रही

LUCKNOW: फ्0 दिन बीत गए लेकिन बाघ वन विभाग की पकड़ से कोसों दूर है। लाख कोशिशों के बाद भी वन विभाग की टीम उसकी झलक तो पा सकी है लेकिन अब तक एक बार भी ऐसा मौका नहीं आ सका कि बाघ ट्रंक्यूलाइजिंग गन की रेंज में आया हो।

कई दिनों से है भूखा

बुधवार को वन विभाग की टीम ने यह तो स्पष्ट किया कि बाघ के पगमा‌र्क्स गंगा बैराज के पास मिले हैं। यह भी दलील दी कि जहां पर पगमा‌र्क्स मिले हैं वह जगह शहर से छह-सात किमी दूर है। लेकिन, वहां मौजूद पब्लिक ने बताया कि दो से तीन किमी की दूरी पर बाघ मौजूद है। वन विभाग की टीम ने गढ़ी सिलौली और गंगा बैराज से सटे तमाम इलाकों में कॉम्बिंग की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। मुख्य वन संरक्षक ईवा शर्मा ने भी मौके पर पहुंचकर बाघ की गतिविधियों की जानकारी ली। उन्होंने बताया कि बाघ के पगमा‌र्क्स भले ही वहां मिले हों लेकिन वह वापस गढ़ी सिलौली की तरफ लौट गया है। उसके पगमा‌र्क्स बता रहे हैं कि वह यहां पर नहीं है। खास बात है कि अभी तक इलाके में बाघ का एक भी किल नहीं मिला है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह कई दिनों से भूखा है। ऐसे में वह बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।

कभी आबादी में तो कभी जंगल में

बताते चलें कि लखनऊ के बॉर्डर पर क्9 अक्टूबर को बाघ ने कदम रखे थे। माल, मलिहाबाद और काकोरी के तमाम गांवों में उसने तीन से चार भैंस के बच्चों को अपना शिकार भी बनाया। लेकिन, वन विभाग की टीम इस बात से इनकार करती रही। इसके बाद बाघ रहमानखेड़ा पहुंचा। फिर कई दिनों तक बाघ की कोई लोकेशन नहीं मिली। वन विभाग के अधिकारी यह भी कहने लगे कि बाघ वापस दुधवा की ओर लौट गया है। अचानक एक दिन उन्नाव के गढ़ी सिलौली गांव में बाघ की लोकेशन ट्रेस आउट हुई। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार बाघ ने काफी दूर का सफर तो गोमती नदी के साथ तय किया। फिर उसके बाद कई इलाकों में आबादी के बीच से होते हुए गुजरा। इसका कारण है कि यहां पर लगातार तो जंगल नहीं है। जगह-जगह पर जंगल के छोटे-छोटे पैच जरूर मौजूद हैं।

गोमती नदी के साथ रहा

नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ के पूर्व सदस्य और वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ। राम लखन सिंह ने बताया कि टाइगर अगर अपने क्षेत्र से बाहर निकलता है तो वह भटकाव की स्थिति में होता है। इस टाइगर के साथ भी कुछ ऐसी ही कहानी है। यह टाइगर भी भटकते हुए गोमती नदी के साथ रहा। उन्होंने बताया कि यह बाघ की खाने की तलाश में बाहर आ गया है।

- ऐसे किया जाता है आदमखोर घोषित

उन्होंने बताया कि बाघ को आदमखोर घोषित करने का काम नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ का है। इस बोर्ड के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। उन्होंने बताया कि बाघ को आदमखोर घोषित करने से पहले तीन बातों को ध्यान में रखा जाता है, जिसके आधार पर ही उसे मैन ईटर डिक्लेयर किया जाता है। देश में बाघ की संख्या घट रही है। ऐसे में पहली कोशिश यह रहती है कि उस टाइगर को पकड़ा जाए और फिर उसे जू में बंद कर दिया जाए। मगर हालात गंभीर होते हैं तभी उसे मारने का आदेश जारी होता है।

तभी दिया जाएगा जान से मारने का आदेश

क्। टाइगर अपने रिजर्व क्षेत्र से बाहर निकल आया हो और वह जानवरों या मवेशियों पर हमला कर रहा हो।

ख्। अगर टाइगर ने किसी इंसान को मारा और फिर उसे खाया भी।

फ्। बाघ एक ही क्षेत्र में कई बार इंसानों पर अटैक कर रहा हो या उसे अपना शिकार बना रहा हो।

यूपी में आदमखोर टाइगर को मारने वाले शिकारी

क्। डॉ। राम लखन सिंह ने तीन आदमखोर टाइगर को मारा

ख्। महेंद्र प्रताप सिंह ने पांच टाइगर को मारा

फ्। अशोक सिंह ने एक टाइगर मारा

इसके पहले भी निकले हैं बाघ

क्। यूपी में ख्00भ् में फैजाबाद में आदमखोर हो चुकी बाघिन को सजा-ए-मौत सुनाई गई। वन विभाग को उसे पकड़ने में 7भ् दिन का समय लग गया था।

ख्। वर्ष ख्008 में यूपी के किशनपुर के जंगल से वन विभाग ने इंसानों पर हमला करने वाले टाइगर को पकड़ा। इसे चिडि़याघर में रखा गया है। किशनपुर से पकड़े जाने के कारण इसका नाम किशन पड़ा।

फ्। लखनऊ से सटे रहमानखेड़ा में ख्0क्क् बाघ सामने आया। इस बाघ को पकड़ने में वन विभाग की टीम को क्08 दिन का समय लगा और यह बाघ मार्च ख्0क्ख् में पकड़ा गया। जिसे वन विभाग ने दुधवा के जंगल में छोड़ उसे रिहैबिटेट किया।

बाघ की तलाश जारी है। हमारा टारगेट बाघ को बचाकर उसे जंगल में वापस पहुंचाना है। इसके लिए विशेषज्ञों की टीम लगी है। जब तक बाघ ट्रंक्यूलाइजिंग गन की रेंज में न आ जाए तब तक डॉट नहीं किया जा सकता। खास बात यह है कि डॉट भी सही जगह पर लगना चाहिए नहीं तो बाघ की जान खतरे में पड़ सकती है।

रूपक डे

प्रमुख वन सरंक्षक।