- टाइम पर खाना न मिले तो हो सकता है दिमाग कमजोर

- डायबिटीज के मरीज बच्चों को हर दो घंटे बाद खाना है बेहद जरुरी

- 13 से 18 की उम्र के बच्चों में बढ़ रही डायबिटीज की समस्या

Meerut: डायबिटीज से पीडि़त बच्चे वैसे तो पढ़ाई में आम बच्चों की तरह ही होते हैं, लेकिन एग्जाम में उनकी परफॉर्मेस अचानक से खराब हो जाती है। आईएमए की एक रिसर्च में पता चला है कि एग्जाम हॉल में टिफिन बॉक्स ले जाने की इजाजत नहीं होने की वजह से ऐसा होता है। ऐसे बच्चे इंसुलिन पर डिपेंड होते हैं और बॉडी में इंसुलिन कम नहीं हो, इसके लिए उन्हें हर दो घंटे में कुछ खाना पड़ता है।

क्या कहती है आईएमए की रिसर्च

आईएमए की रिसर्च ने ये रिसर्च में दिल्ली सहित चार अन्य शहरों में की है। जहां के फ् हजार परिवार में से आधे परिवारों के बच्चों में डायबिटीज की बीमारी पाई गई है। रिसर्च के अनुसार आम दिनों की तुलना में एग्जाम के दिनों में उनकी कार्य क्षमता व मेमोरी पॉवर भी पचास प्रतिशत कम पाई गई है। डॉक्टर्स का मानना है कि अगर एक नॉर्मल बच्चे को खाने को नहीं मिलता है तो उसका सबसे ज्यादा असर उसके दिमाग पर ही पड़ता है, लेकिन अगर यही कंडीशन डायबिटीज पीडि़त बच्चे के साथ हो तो हर दो घंटे में उसको कुछ खाने को न दिया गया तो उसका दिमाग कमजोर होने लगता है।

मेरठ में भी है बच्चों में डायबिटीज

सिटी में भी बच्चों को डायबिटीज की परेशानी बढ़ने लगी है। डॉक्टर्स के अनुसार हर रोज डायबिटीज के दस पेशेंट में से पांच से छह पेशेंट क्फ् से क्8 की उम्र के ही होते हैं। फिजिशियन डॉ। एसके जैन का कहना है कि उनके यहां आने वाले पेशेंट भी अधिकतर इसी उम्र के हैं। इनके पेरेंट्स को अक्सर उनकी बीमारी के कारण रिजल्ट बिगड़ने की शिकायत रहती है। डॉ। तनुराज सिरोही के अनुसार आजकल यूथ में ही डायबिटीज की शिकायत ज्यादा बढ़ रही है, हो न हो ये उनके लाइफ स्टाइल का ही असर है।

लापरवाही से जा सकती है मेमोरी

इस बीमारी में हर दो घंटे बाद खाना बेहद जरूरी है, लेकिन तीन-चार घंटे के एग्जाम में कुछ नहीं खाने मिलने से उनका शुगर लेवल कम होने लगता है। डॉ। आयुषी खन्ना के अनुसार शुगर के कम लेवल होने की वजह से उन पर हाइपोग्लेसीमिया का खतरा बढ़ जाता है और बच्चे एग्जाम में अपनी पूरी क्षमता नहीं लगा पाते हैं। उनका दिमाग काम करना बंद कर देता है और अगर इसी तरह से डायबिटीज के मरीज के साथ महीनों तक लापरवाही चलती रही तो जल्द ही उसकी मेमोरी भी जा सकती है।

हो जाता है रिजल्ट खराब

फिजिशयन डॉ। बीपी सिंह का कहना है कि आमतौर पर क्0वीं क्ख्वीं के एग्जाम टाइम तीन घंटे का होता है। बच्चे घर से सात साढ़े सात बजे खाकर निकलते हैं और इंसुलिन लेकर निकलते हैं। दो घंटे बाद इंसुलिन का असर कम होने लगता है। इसी वजह से बच्चे अपना एग्जाम पूरी क्षमता से नहीं दे पाते हैं। उनकी परफॉर्मेंस खराब हो जाती है। यही बच्चे जब कॉलेज में जाते हैं, तो उनका एग्जाम टाइम व क्लास टाइम चार-पांच घंटे का होता है। ऐसी स्थिति में इन्हें परेशानी आती है। इसलिए कई बार इंटेलिजेंट बच्चों का भी रिजल्ट खराब हो जाता है। डॉक्टरों का कहना है क्ब् नवंबर को व‌र्ल्ड डायबिटिक डे है। हम चाहते हैं कि सरकार डायबिटीज के शिकार बच्चों को एग्जाम में टिफिन ले जाने की इजाजत दे।

ये हैं लक्षण

-बेचैनी होने लगती है, शुगर लो होने लगती है

- घबराहट होने लगती है सिर दर्द शुरू हो जाता है

- धड़कन बढ़ जाती है, किसी किसी को बेहोशी आने लगती है

हेल्थ मिनिस्टर को भी लिखा गया खत

डायबिटीज रिसर्च सेंटर व फाउंडेशन ने अभी हाल फिलहाल में हेल्थ मिनिस्टर हर्षवर्धन व एजुकेशन मिनिस्टर स्मृति इरानी को लेटर लिखा है, ताकि इन बच्चों को एग्जाम हॉल में भी टिफिन ले जाने की इजाज मिले।

डायबटीज के मरीज को अक्सर थोड़े-थोड़े समय के बाद खाने की सलाह दी जाती है। अगर मरीज भूख लगने पर कुछ नहीं खाता है तो ऐसे में उसके दिमाग व शरीर पर गहरा असर पड़ता है।

डॉ। तनुराज सिरोही, फिजिशियन

इस तरह के केस आते हैं, जिनमें बच्चों में डायबटीज होने पर उसका सीधा असर उनके रिजल्ट पर पड़ता है। इसलिए डायबटीज वाले बच्चों का ख्याल रखना बेहद जरुरी है।

डॉ। सुनील गुप्ता, फिजिशियन