नियमित करते थे रुद्राभिषेक

पंडित जी रोजाना वैदिक रीति-रिवाज से शिवालय जाकर भगवान शिव का रुद्राभिषेक करते थे। नियम से गंगा जल से शिवलिंग को स्नान, दूध, दही, शहद से धोना, बेल पत्र और तमाम नियमों के पालन के साथ वैदिक मंत्रोच्चार के बीच वे रुद्राभिषेक करते थे। नेम-टेम में जरा कोताही नहीं बरतते। मोहल्ले के लोग उनके शिवालय जाने के टाइम से अपनी घडि़यां मिलाया करते थे, टाइम के इतने पाबंद थे वे। शिव भक्ति में इतने व्यस्त रहते थे कि घर का जरूरी काम रह जाए पर भगवान की भक्ति में कोई कसर न रहे। पूजा के सामान की व्यवस्था करना या फिर स्नान-ध्यान में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ते थे।

भगवान का तिरस्कार था रूटीन

इधर नास्तिक व्यक्ति भी कम नहीं था। उसे पंडित जी ने मोहल्ले में पापी, व्यसनी न जाने क्या-क्या कहकर बदनाम कर रखा था। नास्तिक अकेले रहता था और पूजा-पाठ से दूर-दूर तक उसका कोई नाता नहीं था। पंडित जी से उसका छत्तीस का आंकड़ा था। जैसे ही पंडित जी शिवालय से रुद्रभिषेक करके निकलते नास्तिक वहां पहुंच कर शिवलिंग का तिरस्कार कर वापस आता। पंडित जी दांत पीसते उसे देखते रहते लेकिन उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाते। बिगाड़े भी तो कैसे वह नास्तिक उनसे डेढ़ गुना हट्टा-कट्टा भी तो था। बस वे उसे देख कर दांत ही पीस सकते थे और उसे मन ही मन श्राप सकते थे।

आ गई परीक्षा की घड़ी

एक दिन भोर से ही तेज आंधी-पानी के बीच घनघोर बारिश हो रही थी। पंडित जी अपने नियत टाइम पर शिव अराधना के लिए तैयार हुए। जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला जोरदार आंधी के झोंके से घर के सामने नीम के पेड़ की एक डाल टूट कर गिर गई। पंडित जी के हाथ पर चोट लगी और खून की धार बह निकली। उन्होंने देहरी से ही भोले बाबा को नमस्कार करके आज की पूजा न करने के लिए माफी मांगी और दरवाजा बंद कर लिया। इधर नास्तिक सब देख रहा था। उसने चिल्ला कर कहा पंडित शिवालय जा या न जा तेरे भगवान का तिरस्कार करने मैं आज भी जाऊंगा। इतना कह कर वह बाहर निकला ही था कि नीम की एक बड़ी डाल टूट कर उस पर गिर पड़ी। उसके सिर में गंभीर चोट आई। दोनों पैर टूट गए। एक हाथ भी टूट गया। ऐसा लग रहा था जैसे वहां बारिश का पानी कम उसका खून ज्यादा बह रहा था।

निरंतर प्रयास के बाद जो मिले वह भगवान

फिर भी नास्तिक ने हिम्मत नहीं हारी और दर्द से कराहते रेंगते-रेंगते किसी तरह शिवालय के कपाट तक पहुंचा। अभी उसने भगवान का तिरस्कार शुरु ही किया कि भोले बाबा प्रकट हो गए। उन्होंने उसे उठा कर गले लगा लिया। क्या अद्भुत नजारा था। भगवान और भक्त का मिलन। लेकिन कोई देखने वाला नहीं। नास्तिक आश्चर्यचकित उसने कहा भगवान आप हैं? भगवान ने कहा मैं तो सब जगह हूं। मैं सफलता हूं। हर परेशानी के बाद मिलने वाला सुख। मैं उसे ही मिलता हूं जो निरंतरता के साथ हर बाधा को पार करके मुझे साधता है। परीक्षा पास करनी है तो निरंतर पढ़ाई करनी होगी। नौकरी पानी है तो निरंतरता से उसके लिए प्रयास करने होंगे। निरंतर प्रयास के बाद जो मिलता है वही मैं हूं।