माघ मेले में चल रहे कई अन्न क्षेत्रों में दोनों समय होता है भोजन का नि:शुल्क वितरण

श्रद्धालुओं के साथ मेला घूमने आने वाले भी प्रसाद ग्रहण करना नहीं भूलते

ALLAHABAD: माघ महीने में संगम के तट पर हर साल आयोजित होने वाले माघ मेला की विशेषता सिर्फ पुण्य की डुबकी लगाने आने वाले या कल्पवासी ही नहीं है। यहां चलने वाले अन्न क्षेत्र भी यहां की विशेषता है। पूरे मेले के दौरान कोई यहां भूखा नहीं सोता। हर किसी के लिए भर पेट भोजन का इंतजाम नि:शुल्क किया जाता है। सुबह और शाम, दोनो वक्त हजारों की संख्या में लोग भोजन प्रसाद ग्रहण करते हैं। कुछ तो इसमें अपनी सेवाएं भी देते हैं।

भोजन के साथ ही चाय नास्ता भी

मेले में सिर्फ भोजन ही नहीं श्रद्धालुओं के लिए नास्ते की सुविधा भी उपलब्ध है। चरखी दादारी आश्रम में अन्न क्षेत्र की शुरुआत सुबह सात बजे से चाय और नास्ते से होती है। दोपहर में 12 बजे भोजन का प्रसाद वितरित किया जाता है। जहां पंगत में लगभग एक से हजार से अधिक लोगों को बैठाकर भोजन कराया जाता है। शाम को फिर से चाय आदि का वितरण किया जाता है। पांच बजे से लेकर सात बजे तक भोजन का प्रसाद दिया जाता है। इसी प्रकार साकेत धाम आश्रम बड़ा भक्तमाल में भी नियमित रूप से भंडारा संचालित किया जाता है। यहां भी वर्तमान में एक हजार से अधिक लोगों को चाय नाश्ता और भोजन का प्रसाद दोनों समय वितरित किया जाता है। आश्रम के महंत श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर रामसुभग दास जी महाराज ने बताया कि शिविर में सुबह आठ बजे बाल भोग, 12 बजे भोजन और उसके बाद रात्रि साढ़े सात बजे रात्रि का भोजन प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाता है। खाक चौक के पास स्थित कोल्हू नाथ खालसा के अलावा ओम नम: शिवाय आश्रम समेत अन्य कई आश्रमों की ओर से भी पूरे मेला में अनवरत अन्न क्षेत्र का संचालन किया जाता है।

खर्च का हिसाब नहीं

आश्रमों में चलने वाले अन्न क्षेत्र का प्रतिदिन का खर्च भी हजारों रुपए में होता है। चरखी दादरी आश्रम में ही प्रतिदिन भोजन प्रसाद व नास्ते का खर्च 30 से 35 हजार रुपए है। साकेत धाम आश्रम बड़ा भक्तमाल में प्रतिदिन का खर्च लगभग 30 हजार रुपए है। आश्रम के संचालकों की मानें तो पौष पूर्णिमा के बाद श्रद्धालुओं व संतों की संख्या बढ़ेगी तो खर्च और बढ़ जाएगा।

महाराज हर्षवर्धन के समय से परंपरा

माघ मेला क्षेत्र में चलने वाले अन्न क्षेत्र का इतिहास और परम्परा सैकड़ों साल पुरानी है। चरखी दादरी आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी ब्रम्हाश्रम जी महाराज ने बताया कि यह परम्परा महाराजा हर्षवर्धन के समय से चली आ रही है। महाराजा हर्षवर्धन माघ में लगातार अन्न क्षेत्र का संचालन करने के साथ ही दान आदि करते थे। पुराणों में भी अन्न दान के महत्व को बताया गया है। पुराणों के अनुसार कलिकाल में अन्न मय प्राण माना गया था। कलयुग में अन्नदान को प्राण दान के बराबर की संज्ञा दी गई है। इसी कारण आज भी इस परम्परा का निर्वाह किया जा रहा है।

अन्न में जीव का वास है। जीव की तृप्ती से फल की प्राप्ति होती है। इसी कारण आज भी अन्न क्षेत्र का संचालन किया जाता है। माघ मेले में साकेत धाम आश्रम बड़ा भक्तमाल की ओर से 23 सालों से अन्न क्षेत्र का संचालन किया जाता है।

राम सुभग दास जी महाराज

श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर, साकेतधाम आश्रम बड़ा भक्तमाल

माघ में अन्न दान का महत्व पुराणों में भी है। जीव परमात्मा का ही अंश है। इसलिए माघ में जीव को भोजन कराकर तृप्त करने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं। कलयुग में अन्नमय प्राण होता है। इसलिए इसका महत्व अधिक है।

-स्वामी ब्रम्हाश्रम जी महाराज

पीठाधीश्वर चरख दादरी आश्रम