बहुत मशहूर हुआ था स्वामी का चरित्र
इस धारावाहिक में मुख्यपात्र स्वामी के किरदार में बाल कलाकार मंजुनाथ उस समय घर घर में बेहद जाना पहचाना चहरा ही नहीं बल्कि देश के हर परिवार का हिस्सा हो गये थे। इसी पाप्युलैरिटी के चलते उन्हें फिल्म अग्निपथ में अमिताभ बच्चन के बचपन की भूमिका निभाने का मौका भी मिला था। हालाकि बड़े होने पर वे अभिनय की दुनिया में नजर नहीं आये।

मालगुडी डेज के अलावा दो और कहानियां थी धरावाहिक का हिस्सा
इस धारावाहिक में आरके नारायण के उपन्यास मालगुडी डेज के अलावा उनकी दो और रचनाओं को सीरियल का हिस्सा बनाया गया था। जिसमें से एक थी "स्वामी एंड फ्रेंड्स" और दूसरी "वेंडर ऑफ स्वीट्स" जो एक मिठाई बेचने वाले जगन की कहानी थी जो विदेश से लौटे अपने बेटे के साथ पटरी बिठाने के प्रयास करता नजर आता है। जगन की भूमिका में कन्नड़ और हिन्दी फिल्मों के जाने माने अभिनेता अनंत नाग नजर आये थे।
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ऐसे थे "स्वामी एंड फ्रेंड्स"
धरावाहिक में मंजुनाथ ने दस बरस के स्वामीनाथन, जिसे उसके दोस्त स्वामी पुकारते हैं, की भूमिका निभायी थी। स्वामी को स्कूल जाना ज़रा भी पसंद नहीं था। उसे तो अपने दोस्तों के साथ मालगुडी में यहां वहां घूमना फिरना ही भाता था। स्वामी को सरकारी नौकरी करने वाले अपने पिता, जिनका किरदार गिरीश कर्नाड ने निभाया था, से बसे ज्यादा डर लगता था। स्वामी के दो करीबी दोस्त थे, मणि और चीफ पुलिस सुपरीटेंडेंट के पुत्र राजम। वैसे एक और लड़का उसके करीब था शंकर जो स्कूल का सबसे इंटैलिजेंट बच्चा था।
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आइए मिलते हैं आरके नारायन के मालगुड़ी डेज के स्‍वामी और उसके दोस्‍तों से


मिलिए मणि से
स्वामील सबसे ज्यादा प्रभावित था मणि का जो वैसे तो ‘न काम का न काज का’ कहा जाता था पर स्कूल का बाहुबली था। क्लास में सब लड़कों पर उसका दबदबा था। वह न तो कभी किताबें लाता था और न होमवर्क की उसने कभी चिंता की थी। स्वामीनाथन को उसकी दोस्ती पर गर्व था। वह इसी में खुश था कि जहां दूसरे लड़के उससे डर कर रहते थे, लेकिन वह उसे मणि कहकर बुलाता था उसकी पीठ पर हाथ रख चलता था।
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राजम का हाल
वहीं राजम क्योंकि पुलिस अधीक्षक का बेटा था तो उसका साथ स्वामी को सम्मान और कांफीडेंस दिलाता था। उसके पिता का रुतबा राजम को स्कूल में अध्यापकों के कहर से बचा कर रखता था और उसके साये में स्वामी को भी कुछ राहत मिल जाती थी। हालाकि राजम को इस दोस्ती में अपने फायदे नजर आते थे। राजम स्वामी की सकूल क्रिकेट टीम का कप्तान भी था।
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भोला भाला शंकर
शंकर, स्वामी की क्लास का का सबसे होशियार बच्चा था। वह किसी भी सवाल को पांच मिनट में हल कर सकता था और हमेशा 90 प्रतिशत के आसपास अंकों से पास होता था।  स्वामीनाथन उससे बेहद प्रभावित था। वह उस समय बहुत खुश हुआ था जब मणि ने शंकर को अपनी मंडली में शामिल किया था। मणि उसे अपने ढंग से पसंद करता था और जब कभी वह अपना प्यार जताना चाहता वह शंकर की पीठ पर अपना भारी मुक्का दे मारता था। फिर सिर खुजला कर पूछता था कि अरे गधे, तुम्हारी इस दुबली-पतली काया में इतना दिमाग कहां से आया, क्या तुम इसमें से कुछ दूसरों को नहीं दे सकते?

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