इन आँकड़ों से इस बात का अंदाजा लगया जा सकता है कि झारखंड में बलात्कार की कथित घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है. पिछले साल (2012) इन सात महीनों में 460 मामले दर्ज हुए थे.

रिपोर्ट के मुताबिक सुदूर इलाकों में आदिवासी लड़कियां कथित सामूहिक दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं. कई जगहों पर स्कूली छात्राओं के साथ कथित सामूहिक बलात्कार की घटनाएँ सामने आई हैं.

बलात्कार के बढ़ते आँकड़ों पर झारखंड पुलिस के एडीजी एस एन प्रधान (विधि व्यवस्था) का कहना है, "आँकड़ों में वृद्धि हुई है लेकिन एक बदलाव भी आया है. अब दुष्कर्म की शिकार पीड़िता या उनके घर वाले मामले जरूर दर्ज करा रहे हैं. पहले कई मामले बताए नहीं जाते थे. रिपोर्टिंग बढ़ी है तो पुलिस तत्काल कार्रवाई भी करती है. अधिकतर मामलों में पुलिस कथित आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी भी कर रही है."

इधर राज्य के आदिवासी कल्याण सचिव राजीव अरुण एक्का ने रामगढ़ जिले के घाटो ओपी क्षेत्र में बिरहोर आदिम जनजाति की युवती के साथ कथित दुष्कर्म के मामले में जिला कल्याण पदाधिकारी से रिपोर्ट तलब की है.

सचिव के मुताबिक अनुसूचित जाति और जनजाति अत्याचार निवारण योजना के तहत कथित दुष्कर्म की शिकार पीड़िता की सहायता की जाएगी.

उन्होंने बताया कि लिट्टीपाड़ा में पहाड़िया आदिम जनजाति की चार स्कूली लड़कियों के साथ हुई कथित बलात्कार की घटना में 60-60 हजार रुपए की सहायता भेजी गई है. दूसरी किश्त में और 60-60 हजार रुपए दिए जाएंगे.

कैसे बढ़ रहा है ग्राफ

झारखंड: सात महीने में बलात्कार के 818 मामले दर्ज

पुलिस के क्राइम रिकॉर्ड के आँकड़ें बताते हैं कि जनवरी में बलात्कार के 92, फरवरी में 67, मार्च में 93 मामले दर्ज हुए जबकि अप्रैल में दर्ज मामलों की संख्या 106 और मई में 138 हो गई.

जून में राज्य भर में कथित बलात्कार के 148 और जुलाई में 174 मामले दर्ज किए गए. रांची जिले में सात महीनों के दरम्यान कथित बलात्कार के 78 मामले रजिस्टर्ड हुए हैं.

"आँकड़ों में वृद्धि हुई है लेकिन एक बदलाव भी आया है. अब दुष्कर्म की शिकार पीड़िता या उनके घर वाले मामले जरूर दर्ज करा रहे हैं. पहले कई मामले बताए नहीं जाते थे. रिपोर्टिंग बढ़ी है तो पुलिस तत्काल कार्रवाई भी करती है. अधिकतर मामलों में पुलिस कथित आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी भी कर रही है"

-एस एन प्रधान, एडीजी

बलात्कार के बढ़ते आंकड़ों के बारे में पूछे जाने पर राँची ज़ोन के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) एम एस भाटिया कहते हैं, "हां, मामले ज्यादा दर्ज हो रहे हैं लेकिन एक बात रेखांकित करने लायक है कि दिल्ली कांड के बाद जागरूकता देखने को मिल रही है. पहले लोग लोकलाज के कारण भी मामले दर्ज नहीं कराते थे."

भाटिया ने कहा, "अब गाँवों में रहने वाले और कमजोर वर्ग के लोग पुलिस थाने पहुंच कर इस तरह की घटनाओं की जानकारी दे रहे हैं. सभी पुलिस अफसरों को महिला अत्याचार के मामलों में फौरी कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं. चार्जशीट समय पर दायर हो सके और कथित अभियुक्त को सजा मिले, इसकी भी समीक्षा की जा रही है."

दुष्कर्म के मामलों पर गौर करें तो साहेबगंज और पाकुड़ जैसे जनजातीय बहुल इलाकों में बलात्कार की कथित घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है.

इस साल के सात महीनों में साहेबगंज में दुष्कर्म के 116 मामले पुलिस थानों में दर्ज कराए गए हैं.

साहेबगंज के एसपी अवधबिहारी राम का कहना है, "ग्रामीण इलाकों में घटनाएं बढ़ी हैं. केस दर्ज होने पर तत्काल कार्रवाई की जा रही हैं. पिछले दिनों पाकुड़ के लिट्टीपाड़ा में पहाड़िया आदिम जनजाति की लड़कियों के साथ हुए कथित बलात्कार के मामले को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने गंभीरता से लिया था."

विशेष टास्क फोर्स

झारखंड: सात महीने में बलात्कार के 818 मामले दर्ज

आयोग ने राज्य के डीजीपी राजीव कुमार को एक पत्र भेजकर इस मामले में ठोस कार्रवाई करने के सुझाव भी दिए थे.

उधर झारखंड की महिला कल्याण मंत्री अन्नपूर्णा देवी का कहना है, "बलात्कार और महिला अत्याचार के बढ़ते मामले चिंताजनक हैं. जल्द ही पुलिस और प्रशासन के आला अफसरों के साथ बैठक कर संवेदनशील मामलों में जल्दी सुनवाई और सजा तय कराने के लिये आवश्यक कदम उठा जाएंगे. इसके लिए विशेष टास्क फोर्स के गठन पर भी विचार किया जा रहा है."

महिला कार्यकर्ता सरोजिनी बिष्ट पुलिस अफसरों के पक्ष से इत्तेफाक नहीं रखतीं. वे कहती हैं, "पुलिसिया कार्रवाई की नाकामी की वजह से घटनाओं में वृद्धि हो रही है. कई मामलों में कथित अभियुक्त महीने-साल भर में ही छूट जाते हैं. दिल्ली की घटना के बाद क़ानून को सख्त करने की कोशिश जरूर हुई लेकिन उसका खौफ नहीं दिखता. महिला संगठन बढ़ती घटनाओं का लगातार विरोध कर रहे हैं."

झारखंड में बढ़ती घटनाओं के बारे में रांची इंस्टीच्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्रिक्स एंड एलायड साइंस (रिनपास) के मनोवैज्ञानिक डॉक्टर के एस सिंगरका कहते हैं, "पर्सनैलिटी डिफेक्शन के मामले बढ़े हैं. मूल्यों में गिरावट आ रही है. इस तरह की खबरें भी लगातार सुर्खियां बन रही हैं. लिहाजा साइकोपैथिक पर्सनैलिटी से ग्रसित लोग बलात्कार की घटनाओं को अंजाम देने में सुखद महसूस करते हैं. यही वजह है कि पकड़े जाने के बाद भी उन्हें पछतावा नहीं होता."

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