योजना शुरू होने के बाद अब तक नहीं किया किसी ने भी आवेदन

बुजुर्ग और दिव्यांग पेंशन योजना में ही कवर हो रहे सारे पेंशनर्स

देहरादून। जागर, मांगल, पुरोहित और तीलू रौतेली पेंशन योजनाएं सिर्फ नाम के लिए रह गई हैं। ढाई वर्ष में एक भी आवेदन इन योजनाओं के लिए समाज कल्याण विभाग के पास नहीं पहुंचा है। ऐसे में ये योजनाएं फाइलों में ही गुम हो गई हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि इन योजनाओं के तहत लाभान्वित होने वाले पहले से बुजुर्ग और दिव्यांग पेंशन योजना में कवर हो चुके हैं।

ये थी योजनाएं

जागर-मांगल पेंशन योनजा

लोक संस्कृति के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए जागर, मांगल पेंशन योजना शुरू की गई थी। उन महिला, पुरुषों को यह पेंशन दी जानी है जो जागर या मांगल गीतों में निपुण हों और 60 वर्ष की आयु पूरी कर चुके हों।

पुरोहित पेंशन योजना

इस योजना के तहत वे पुरोहित कवर किए जाने हैं, जो पर्वतीय क्षेत्रों में पूजा अनुष्ठान आदि करके अपनी गुजर-बसर कर रहे हों और 60 वर्ष की उम्र पूरी कर चुके हों।

तीलू रौतेली पेंशन योजना

तीलू रौतेली पेंशन योजना के तहत कृषि व्यवसाय या चारा-पत्ती लेने के दौरान हादसाग्रस्त होकर दिव्यांग होने वाली महिला-पुरुषों को पेंशन दी जानी है।

योजनाओं में अलग कुछ नहीं

दरअसल नई पेंशन योजनाओं में बुजुर्ग और दिव्यांग पेंशन योजना से अलग कुछ नहीं था। दिव्यांग और बुजुर्ग पेंशन योनजा के तहत भी एक हजार रुपए मासिक पेंशन मिलती है, और इन सभी योजनाओं के तहत भी इतनी ही पेंशन दी जानी है। इसीलिए नई योजनाओं के प्रति किसी ने रुचि नहीं ली।

योजनाओं में पेंशन का प्रावधान

बुजुर्ग पेंशन योजना- 60 वर्ष या उससे अधिक, 1000 रुपये

जागर-मांगल पेंशन- आयु 60 वर्ष या उससे अधिक, 1000 रुपये

पुरोहित पेंशन- आयु 60 वर्ष या उससे अधिक, 1000 रुपये

दिव्यांग पेंशन, 18 वर्ष से अधिक, 1000 रुपये

तीलू रौतेली- 18 वर्ष से अधिक, 1000 रुपये

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पुरोहित की परिभाषा में परेशानी

विभाग की ओर से पुरोहित पेंशन योजना शुरू करते समय भी परेशानी हुई थी। दरअसल कैटेगिरी में कौन पुरोहित शामिल होंगे, यह क्लियर नहीं हो पाया। हालांकि, इस पर पंडितों की राय भी ली गई थी। योजना के लिए जब कोई आवेदन ही नहीं मिला तो विभाग ने इस पर ज्यादा कसरत नहीं की।

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आवेदन नहीं आने की वजह से ये योजनाएं शुरू नहीं हो पाईं। इन योजनाओं के लिए कोई आवेदन आएगा तो उसी हिसाब से बजट भी शासन से स्वीकृत कराया जाएगा।

- दीपांकर घिल्डियाल, सहायक समाज कल्याण अधिकारी