30 अगस्त  को  इंस्पेक्टर  विनोद पाल सिंह को सुभाषनगर का थाना प्रभारी बनाया गया। करीब दो महीने वर्क करने के बाद उन्हें 23 अक्टूबर को हटाकर बारादरी का इंस्पेक्टर बनाया गया। उनकी जगह एम एम खान को सुभाषनगर का प्रभारी बनाया गया। ठीक एक महीने बाद विनोद पाल सिंह को सुभाषनगर का प्रभारी बना दिया गया और उनकी जगह एमएम खान को बारादरी का प्रभारी बना दिया  गया।

ये दो केसेज तो सिटी पुलिस की वर्किंग की महज बानगी भर हैं, बीते कुछ दिनों से पुलिस डिपार्टमेंट में क्राइम कंट्रोल के नाम पर थानों में ट्रांसफर-ट्रांसफर खेला जा रहा है। आलम यह कि एसएचओ या चौकी इंचार्ज अपने पुलिस स्टेशन का जियोग्राफी, क्राइम केसेज या फिर इलाके के क्रिमिनल्स के बारे में खुद को जब तक अपडेट करते हैं तब तक उनको वहां से हटा दिया जाता है। इसका खामियाजा इलाके के लोगों को उठाना पड़ता है। दरअसल, प्रभारी भी अपना काम ठीक ढंग से नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें भी लगता है कि जब ट्रांसफर ही होना है तो काम क्यूं करें। इसी का परिणाम है कि बरेली में क्राइम का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। चोरी, लूट व मर्डर की वारदातें आम हो गई हैं। कई बड़े केसेस फाइलों में ही चल रहे हैं। मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आईजी आलोक शर्मा ने जनवरी से अब तक जिले में हुए ऐसे तबादलों का Žयौरा एसएसपी से तलब किया है।

कप्तान ने सेट किया record

बरेली में बेहतर लॉ एंड आर्डर और क्राइम कंट्रोल के लिए शासन से एसएसपी आकाश कुलहरि को बरेली भेजा गया था। एसएसपी ने गत फरवरी में ज्वॉइन किया था। एसएसपी को बरेली में दस महीने वर्क करते हुए हो गया है। इस लिहाज से उन्होंने बीते दस साल का पिछला रिकॉर्ड भी ब्रेक किया। इससे पहले कोई भी कप्तान यहां इतने दिन नहीं रुक सका। इस दौरान उनके द्वारा कई प्लानिंग भी की गईं । लॉ एंड आर्डर मैनटेन रखने में वो सफल भी रहे, लेकिन क्राइम कंट्रोल हाथ से फिसलता गया। ज्वानिंग के बाद शुरुआती दिनों में एसएसपी थानेदारों का ट्रांसफर करने के पक्ष में खुद नहीं दिखे, लेकिन उनका नजरिया बदल गया। कई एसएचओ तो अपने पद पर दो महीने से अधिक ही नहीं रह सके।

8 माह में 30 बार ट्रांसफर लिस्ट

पुलिस रिकॉर्ड पर ही गौर करें तो मई से दिसंबर माह तक आठ महीने में 30 बार से अधिक बार ट्रांसफर लिस्ट जारी की गई। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि महीने में चार बार ट्रांसफर लिस्ट जारी होती है। जो ऐवरेज वन वीक में ही हो जाती है। कईयों को क्राइम कंट्रोल ना कर पाने की वजह से ट्रांसफर कर दिया जाता है तो कई थानेदार आज तक खुद ही इस सवाल का जवाब खोज रहे हैं कि उन्हें हटाया क्यों गया।

Public को भी होती है problem

कुछ ही दिनों में ट्रांसफर होने से पŽिलक को भी प्राŽलम फेस करनी पड़ती है। इसके पीछे की वजह यह भी है कि जैसे कि अगर किसी के साथ कोई वारदात हो गई तो वह थाना में जाकर प्रभारी से मिलता है और उसे अपनी पूरी प्राŽलम बताता है। जब वह दूसरी बार थाना जाता है तो उसे प्रभारी चेंज मिलता है। इस पर उसे अपनी प्राŽलम दूसरे प्रभारी को बतानी पड़ती है। अगर किसी थाना के एरिया में रहने वाले शख्स से पूछा जाए कि उनका थाना प्रमुख और चौकी इंचार्ज कौन है तो शायद ही वह बता पाएगा। इसकी वजह बार-बार ट्रांसफर ही है।

Major effect on investigation

बार-बार थाना प्रभारी चेंज करने से असर क्राइम कंट्रोल पर भी पड़ता है। जब तक कोई थाना प्रभारी पहुंचकर वहां के हालात को जानता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। कई बार एसआईएस में तैनात इंस्पेक्टर या एसआई को भी प्रभारी बनाया जाता है, तो इससे भी काफी फर्क पड़ता है।

आजिज होकर छोड़ दिया जिला

जिले की मौजूदा ट्रांसफर नीति से परेशान होकर कई थाना प्रभारी जिला छोड़कर ही चले गए। इसमें बारादरी के इंस्पेक्टर रहे सत्यप्रकाश सिंह, एस केएस प्रताप सिंह, व एसएसपी के पीआरओ रजी अहमद व अन्य हैं। रजी अहमद को कई बार थाना का चार्ज दिया गया। इसके अलावा उन्हें दो बार पीआरओ भी बनाया गया। बार-बार ट्रांसफर से इतने परेशान हो गए कि इन सभी ने जिला छोडऩा ही बेहतर समझा.कई ऐसे हैं जो लंबे समय से कŽजा जमाए हुए हैं। अगर इनसे थाना का चार्ज छिन भी जाता है तो कुछ दिन बाद ये फिर से चार्ज पा लेते हैं।

चर्चाओं का बाजार गर्म

जिले में लगातार हो रहे ट्रांसफर को लेकर पुलिस व पŽिलक में तरह-तरह की चर्चाएं आए दिन होती रहती हैं। थानों से हटाए गए कई थानेदार दबी जुबान से इसे नफा-नुकसान से भी जोड़कर देखते हैं। हालंाकि कोई भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। वहीं पुलिस डिपार्टमेंट के सोर्सेज तबादलों को सियासी दबाव से भी जोड़कर देख रहे हैं। दरअसल, इंस्पेक्टर व एसआई किसी न किसी सत्ता पक्ष के लीडर से संपर्क में रहता है। वह थाना प्रभारी बनने के लिए अपने लीडर की सिफारिश लगाता है। इसके चलते प्रेशर में पहले से नियुक्त इंचार्ज का ट्रांसफर कर उसकी जगह सिफारिशी को इंचार्ज बना दिया जाता है।

और खराब काम पर भी इनाम

लगातार ट्रांसफर की वजह अधिकारी क्राइम कंट्रोल बताते हैं और इसके लिए अच्छे एसएचओ को पोस्ट करने की बात कहते हैं। लेकिन यदि जो एसएचओ या एसओ एक थाना में खराब काम की वजह से हटाया जाता है तो वह दूसरे थाना में अच्छा काम कैसे कर सकता है। इसलिए क्यों सोच समझकर थाना प्रभारी को पोस्ट नहीं किया जाता है। ऐसी नौबत क्यों आती है कि उसी थाना प्रभारी को दोबारा पोस्ट कर दिया जाता है। यह सवाल इन दिनों सबकी जुबां पर है।