-विश्व का सबसे ऊंचा राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए दर्जनों पेड़ों की दी गई बलि

-150 मीटर लंबा व 12 फीड रास्ता बनाने के लिए रौंद डाले कई पेड़

-दर्जन भर पेड़ों की जड़ें झांक रहीं, कभी भी गिर सकते हैं

RANCHI: पहाड़ी मंदिर पर विश्व का सबसे ऊंचा राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए दर्जनों पेड़ों की बलि दे दी गई, जो अब मिट्टी कटाव का प्रमुख कारण बन गई है। रांची पहाड़ी मंदिर के पूरब-उत्तर और पश्चिमी इलाके में सबसे ज्यादा मिट्टी का कटाव हो रहा है। पेड़ों की शहादत का नतीजा है कि पहाड़ी मंदिर के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। जियोलॉजिस्ट खतरे की आशंका जता रहे हैं, लेकिन पहाड़ी मंदिर को बचाने के लिए सरकार या अन्य किसी स्तर पर कोई पहल नहीं हो रही है।

फ्लैग पोस्ट ले जाने को रौंद डाले पेड़

फ्लैग पोस्ट के लिए जब निर्माण कार्य शुरू हुआ था, तो कंस्ट्रक्शन मैटेरियल और फ्लैग पोस्ट को निर्माणस्थल तक पहुंचाने के लिए वैकल्पिक रास्ता बनाया गया था। जिसमें दर्जनों पेड़ काटे गए। रास्ते को सुगम बनाने के लिए मशीन से धरती को रौंदा गया। ड्रिलर और हेवी मशीन की वजह से पूरे पहाड़ी इलाके की मिट्टी हिल गई। इसका असर पहली बारिश में ही दिखने लगा है। जड़ छोड़ चुकी मिट्टी का कटाव तेजी से हुआ है। पूरब-उत्तर रास्ते में निचले तल से ऊपरी सतह तक लगभग क्भ्0 मीटर लंबाई और क्ख् फीट चौड़ाई वाला रास्ता बनाया गया है। इस रास्ते में आने वाले दर्जनों पेड़ काट दिए गए। रास्ता बनाने के बाद किनारे खड़े पेड़ों के अस्तित्व पर भी संकट मंडराने लगा है। पेड़ की जड़ें साफ दिख रही हैं। कुछ पेड़ तो तिरछे हो गए हैं, जो कभी भी गिर सकते हैं।

खोंडालाइट है हरियाली की वजह

ख्म् एकड़ में फैले पहाड़ी पर सैकड़ों की संख्या में पेड़ हैं। खोंडालाइट पहाड़ी होने की वजह से पहाड़ी पर हरियाली बरकरार है। जियोलॉजिस्ट नितीश प्रियदर्शी का मानना है कि चट्टानों पर इतनी भारी मात्रा में हरियाली नहीं हो सकती है। मिट्टी पर ही पेड़ और पौधे उग सकते हैं। पहाड़ी मंदिर के चट्टान भ्00 मिलियन वर्ष यानी हिमालय से भी पुराने हैं। पहाड़ी मंदिर खोंडालाइट(जियोलॉजिकल नामक गारनेटिक फेरस सिलिमिनाइट ग्रेफाइट सिस्ट)का बना है। पहाड़ी मंदिर पर हरियाली इसकी सबूत है। केरल में शोध के बाद पता चला है कि खोंडालाइट के चट्टानों के चूर्ण को अम्लीय मिट्टी जिनमें नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की कमी थी, चूर्ण डालने के बाद मिट्टी की गुणवत्ता में काफी सुधार आया। इससे यह साफ पता चलता है कि पहाड़ी मंदिर की मिट्टी उपजाऊ भी है। खोंडालाइट में सिलिका और अल्युमिना की बहुतायत रहती है। अल्प मात्रा में कैल्शियम और सोडियम भी पाया जाता है। दक्षिण भारत में चट्टानों के समीप से बहने वाली नदियों के बालू में हीरे के महीन कण भी पाए गए हैं।

शैल चट्टान से निर्मित है पहाड़ी

भूवैज्ञानिकों नितीश प्रियदर्शी का मानना है कि पहाड़ी मंदिर के चट्टान कायान्तरित शैल चट्टानों से निर्मित हैं। इसकी आयु लगभग फ्भ्00 मिलियन वर्ष है। कुछ भूवैज्ञानिकों का मानना है कि इस पहाड़ की आयु 980 से क्ख्00 मिलियन वर्ष है। इस पहाड़ के चट्टान का भौगोलिक नाम गारनेटिफेरस सिलेमेनाइट शिष्ट है। इसे खोंडालाइट के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह के चट्टान ओडि़शा के पूर्वी घाट के पास पाए जाते हैं। रांची के दूसरे पहाड़ ग्रेनाइट नीस और शिष्ट के बने हैं। जो पहाड़ी के निर्माण काल के बाद के हैं। छोटानागपुर के सभी पहाड़ों का निर्माण अपरदन के फलस्वरूप हुआ है। यानी कि मुलायम भाग अपरदन के बाद समतल हो गया है और कठोर भाग खड़ा रह गया है। रांची पहाड़ी में जो खनिज पाए जाते हैं उसमें पोटाश फेल्सपार, ग्रेफाइट शिष्ट, गारनेट, सिलिमेनाइट और कुछ मात्रा क्वाटर््ज का है। गारनेट जो कम अपरदित होता है, यहां पर क्रिस्टल के रूप में कुछ जगहों पर दिखाई देता है। रांची पहाड़ी की तरह ही कोयंबटूर के कुछ भागों में भी चट्टान पाए जाते हैं। यह प्राचीन पहाड़ हिमालय से भी पुराना है। जिस पर शोध करने भ्00 साल पहले शोधार्थी आते थे।

कैसे होता है अपरदन

पहाड़ी मंदिर का निर्माण करोड़ों साल पहले हुआ। टेंप्रेचर फ्लेक्चुएशन, बारिश, हवा के दबाव से अपरदित हुआ और मिट्टी के रूप में परिवर्तित हो गया। चट्टानों के मिट्टी बनने का दूसरा प्रमुख कारण गर्मी, ठंड और बारिश भी रहे हैं।