राजस्थान के जयपुर और चित्तौड़गढ़ से आदिवासी कारीगर लेकर आएं हैं पांच हजार कड़ाही

ALLAHABAD: आस्था की नगरी का आध्यात्मिक आकर्षण राजस्थान के कारीगरों को खींच कर ले आया है। पिछले वर्ष मकर संक्रांति स्नान पर्व से पहले कड़ाही की जमकर हुई खरीदारी के बाद माघ मेला क्षेत्र में लगातार दूसरे वर्ष राजस्थान के आदिवासी कड़ाही लेकर पहुंचे हैं। आम कल्पवासी हो या फिर प्रमुख स्नान पर्वो पर दूरदराज के क्षेत्रों से आने वाले श्रद्धालु। इस बार राजस्थान के जयपुर और चित्तौड़गढ़ जिले की कड़ाही की डिमांड बहुत ज्यादा हो गई है। यही वजह है कि चार दिनों में चार हजार से अधिक कड़ाही की खरीदारी श्रद्धालु कर चुके हैं।

मकर संक्रांति के बाद लौट जाएंगे

मेले में दस या बीस नहीं बल्कि पांच हजार कड़ाही लेकर पहली जनवरी को राजस्थान से संगम की रेती पर पहुंचे। बड़ी कड़ाही एक हजार रुपए, मझली पांच हजार और छोटे आकार की कड़ाही दो सौ से लेकर तीन सौ रुपए रुपए में बिक्री के लिए सजाकर रखी गई है। परेड ग्राउंड के दोनों पटरी के इर्दगिर्द जयपुर और चित्तौड़गढ़ से अलग-अलग परिवार के 27 लोग कड़ाही लेकर बैठे रहते हैं। यही नहीं सभी लोग मकर संक्रांति स्नान पर्व के बाद अपने-अपने गंतव्य स्थान को लौट भी जाएंगे।

मनोहर दास ने बताया कि मकर संक्रांति पर यहां सबसे ज्यादा कड़ाही पर पूड़ी छानी जाती है। इसका एहसास पिछले वर्ष हो गया था उस मेले में हम लोगों ने तीन हजार कड़ाही लाई थी और संक्रांति स्नान के दिन तक सभी कड़ाही बिक गई थी। इसीलिए इस बार पांच हजार पीस कड़ाही की लेकर आएं हैं।

एक महीने की तैयारी

माघ मेले में दूसरी बार पहुंचे आदिवासियों को पांच हजार कड़ाही बनाने में एक महीने का वक्त लगा था। आदिवासियों ने खुद लोहा खरीदकर उसे कड़ाही का आकार दिया है। दिलीप कुमार ने बताया कि परिवार के सात सदस्यों के साथ दिसम्बर के पहले सप्ताह से कड़ाही बनाना शुरू कर दिया था।