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अनवरत विकास के लिए सिविल लाइंस की नामचीन तिरपाल वाली मस्जिद का मूल अस्तित्व सिमटा

dhruva.shakar@inext.co.in

ALLAHABAD: एक ऐसे वक्त में जब दुनियाभर में धार्मिक उन्माद फैला हुआ है, संगम सिटी ने गंगा-जमुनी की वो मिसाल पेश की है, जिसे जमाना सदियों तक सलाम करेगा। बात हो रही है 1912 में बनी सिविल लाइंस स्थित तिरपाल वाली मस्जिद के अस्तित्व को समेट दिए जाने की। और यह कदम महज इसलिए उठाया गया ताकि दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले के लिए शहर में चल रहे विकास कार्यो की श्रृंखला को बाधा न पहुंचे। खास बात यह है कि मस्जिद के मुतवल्ली अब्दुल कुद्दुर ने समाज के लोगों के साथ मिलकर खुद उसकी दीवार को ढहा दिया।

एडीए का सिरदर्द हो गया खत्म

कुंभ के लिए सुभाष चौराहे से नवाब यूसुफ रोड की सड़क का चौड़ीकरण होना था। इसके लिए अप्रैल के अंतिम सप्ताह में एडीए के वीसी भानुचंद्र गोस्वामी की ओर से यूको बैंक के ठीक सामने स्थित तिरपाल वाली मस्जिद को तोड़ने का निर्देश दिया गया। यह प्रशासन के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता था, क्योंकि आदेश के वक्त रमजान की तैयारियां शुरू हो गई थीं। मस्जिद तोड़ने पर बवाल हो सकता था, लेकिन मस्जिद के मुतवल्ली अब्दुल कुद्दूर ने पूर्व विधायक अनुग्रह नारायण सिंह के साथ मई के पहले सप्ताह में श्री गोस्वामी से मुलाकात कर खुद मस्जिद तोड़ने के लिए समय की मांग की।

खुद तोड़ने की इच्छा जताई

अस्सी वर्षीय अब्दुल कदूद की मानें तो ये लोग एडीए वीसी से मिले और कहा कि यदि उनकी ओर से कार्रवाई की गई तो माहौल बिगड़ सकता है। इसलिए हम खुद इसे तोड़ देंगे। तब वीसी ने सभी से इस पहल के लिए शुक्रिया कहा। इसके बाद पांच से लेकर दस मई के बीच मुस्लिम समुदाय के लोगों ने खुद हथौड़ा चलाकर मस्जिद की दीवार को तोड़ दिया।

आजादी के पहले बनवाई गई थी

शहर की पुरानी मस्जिदों में से एक तिरपाल वाली मस्जिद है। इसे मस्जिद के वर्तमान मुतवल्ली अब्दुल कुद्दूर के पूर्वजों ने आजादी से बहुत पहले वर्ष 1912 में बनवाया था।

कॉलिंग

यह बात सही है कि नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए लोगों को बांटने का काम किया है। इस मस्जिद के रखवालों ने अनोखी मिसाल पेश की है।

नजर इकबाल

मस्जिद के सामने रमजान के दौरान हजारों रोजेदार पांच वक्त की नमाज अदा करने के लिए आते हैं। अपनी तहजीब को बचाने की इससे अच्छी मिसाल नहीं हो सकती।

मो। हारिस

हमारी गुजारिश को एडीए ने स्वीकार किया था। हम सभी का फर्ज बनता है कि शहर की बहुसंस्कृति को संरक्षित करने में योगदान दें।

अब्दुल कदूद

शहर में जितने भी विकास कार्य हो रहे हैं उसका फायदा किसी एक धर्म के लिए तो नहीं होगा। मस्जिद को खुद तोड़कर हम लोगों ने यहां की तहजीब की आबोहवा को मजबूत किया है।

सरफराज आलम